मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला बिहार पुलिस बल में कार्यरत इंदुभूषण कुमार से जुड़ा है, जिन्हें बिना ठोस सबूतों के अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट याचिका (C.W.J.C. No. 2950/2021) दायर की थी।
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि बर्खास्तगी अवैध है, क्योंकि अनुशासनात्मक जांच में कोई साक्ष्य नहीं मिला। न्यायालय ने न केवल बर्खास्तगी को रद्द किया, बल्कि 100% वेतन और अन्य लाभ देने का आदेश भी दिया।
मामले की संक्षिप्त रूपरेखा
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आरोप:
- 23 नवंबर 2016 को इंदुभूषण कुमार को बिहार सैन्य पुलिस-4, दुमरांव (BMP-4) से पटना में तैनात किया गया।
- उसी दिन, वह आरा रेलवे स्टेशन से विभूति एक्सप्रेस में सफर कर रहे थे, जब उन्हें AC कोच में बिना टिकट चढ़ने और यात्रियों से दुर्व्यवहार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
- उनके खिलाफ आरा रेल थाना कांड संख्या 112/2016 दर्ज किया गया, जिसमें बिहार मद्यनिषेध (Excise) अधिनियम और रेलवे अधिनियम की धाराएं लगाई गईं।
- इसके बाद, उन्हें पद से निलंबित कर अनुशासनात्मक जांच शुरू की गई।
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बर्खास्तगी का आदेश:
- 10 दिसंबर 2016 को उनके खिलाफ चार्जशीट जारी की गई।
- 3 मई 2017 को अनुशासनात्मक जांच रिपोर्ट आई, जिसमें उन्हें अपराध का दोषी बताया गया।
- 29 मार्च 2019 को BMP-4 के कमांडेंट ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।
- 1 जनवरी 2020 को डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (D.I.G.) ने उनकी अपील खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता (इंदुभूषण कुमार) के तर्क
- अनुशासनात्मक जांच में कोई सबूत नहीं मिला कि वह शराब के नशे में थे।
- उनके खून और मूत्र की फॉरेंसिक रिपोर्ट में शराब की मात्रा शून्य (0%) पाई गई।
- AC कोच के यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों में से किसी की भी गवाही नहीं ली गई।
- एफआईआर दर्ज कराने वाले अधिकारी को भी गवाही के लिए नहीं बुलाया गया।
- जांच रिपोर्ट में स्पष्ट था कि उनके खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
राज्य सरकार (बिहार पुलिस) का पक्ष
- कोर्ट को जांच रिपोर्ट में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
- पुलिसकर्मी अनुशासनहीनता के दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने बिना टिकट यात्रा की।
- उन्हें AC कोच अटेंडेंट से झगड़ा करते देखा गया था।
- बर्खास्तगी के आदेश में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है।
पटना हाई कोर्ट का फैसला
- बिहार पुलिस द्वारा की गई अनुशासनात्मक जांच में भारी खामियां थीं।
- अनुशासनात्मक जांच में कोई सबूत नहीं था कि याचिकाकर्ता शराब के नशे में थे।
- रेलवे कोच के यात्रियों, रेलवे कर्मचारियों, या मेडिकल रिपोर्ट से कोई गवाही नहीं मिली।
- बिना सबूतों के की गई बर्खास्तगी अवैध है।
- अनुशासनात्मक जांच रिपोर्ट को गैरकानूनी करार देते हुए बर्खास्तगी के आदेश को रद्द किया।
- याचिकाकर्ता को सेवा में पुनः बहाल करने और 100% वेतन व अन्य लाभ देने का आदेश दिया।
निष्कर्ष
- यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के महत्व को दर्शाता है।
- बिना ठोस सबूतों के किसी भी कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता।
- अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पुलिस प्रशासन गलत तरीके से कार्रवाई करता है, तो उसे सुधारा जाएगा।
- इस फैसले ने सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूत किया है।
पूरा
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjk1MCMyMDIxIzEjTg==-oHfg6BXb0–am1–c=