परिचय
यह मामला बिहार पुलिस विभाग में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त सात लोगों से जुड़ा है, जिनकी सेवाएं 18 जनवरी 2003 को समाप्त कर दी गई थीं। यह याचिका उन कर्मचारियों और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा दायर की गई थी, जो मानते थे कि उनकी बर्खास्तगी अवैध थी।
मुद्दे और दलीलें
याचिकाकर्ताओं की मुख्य माँगें निम्नलिखित थीं:
- बर्खास्तगी आदेश को रद्द किया जाए – 18 जनवरी 2003 को जारी आदेश, जिसमें कहा गया कि उनकी नियुक्ति अवैध थी, को खत्म करने की माँग की गई।
- फिर से नियुक्ति – बर्खास्त कर्मियों को वापस पुलिस सेवा में बहाल करने और उनका लंबित वेतन देने का अनुरोध किया गया।
- मृत कर्मचारियों के उत्तराधिकारियों को लाभ – दिवंगत कर्मियों की पत्नियों और कानूनी उत्तराधिकारियों को आर्थिक लाभ देने की माँग की गई।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति की प्रक्रिया अवैध थी, क्योंकि यह बिना उचित चयन प्रक्रिया और नियमों के उल्लंघन में की गई थी। सरकार ने दावा किया कि अवैध नियुक्तियाँ रद्द करने का पूरा अधिकार उनके पास है।
न्यायालय का निर्णय
पटना उच्च न्यायालय ने मामले की गहराई से समीक्षा की और निम्नलिखित महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले:
- पूर्व में बर्खास्तगी आदेश को पहले ही खारिज किया जा चुका था – न्यायालय ने पाया कि इससे पहले 30 अगस्त 2018 को इसी मामले में एक आदेश पारित किया गया था, जिसमें बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया गया था।
- सरकार ने दोबारा कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया – कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार को बर्खास्तगी को सही ठहराना था, तो उसे उचित अनुशासनात्मक प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी, जिसमें कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलता।
- मृत कर्मचारियों के उत्तराधिकारियों को लाभ मिलना चाहिए – चूँकि बर्खास्तगी आदेश पहले ही रद्द हो चुका था, इसलिए मृत कर्मचारियों के परिवारजनों को उनके सेवाकाल के बकाया वेतन और अन्य लाभ मिलने चाहिए।
न्यायालय का निर्देश
- बर्खास्तगी आदेश (15 अप्रैल 2019) को अवैध घोषित किया गया – कोर्ट ने इस आदेश को खारिज कर दिया और सरकार को निर्देश दिया कि वह कर्मचारियों की नियुक्ति को बहाल करने पर विचार करे।
- उत्तराधिकारियों को आर्थिक लाभ दिया जाए – मृत कर्मचारियों के परिवारजनों को उनके हक का वेतन और अन्य आर्थिक लाभ दिया जाए।
- सरकार उचित प्रक्रिया अपनाए – सरकार को निर्देश दिया गया कि वह इन मामलों की समीक्षा करे और उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई करे, लेकिन बिना किसी कर्मचारी को पहले से दोषी माने।
- तीन महीने के भीतर निर्णय लें – न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर मामले का निपटारा करे और तय करे कि याचिकाकर्ताओं को कितनी आर्थिक सहायता दी जाएगी।
निष्कर्ष
इस निर्णय में पटना उच्च न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया का पालन करने और मनमाने ढंग से कर्मचारियों को बर्खास्त न करने की सख्त हिदायत दी। इसके साथ ही, मृत कर्मचारियों के परिवारों के अधिकारों को भी मान्यता दी गई। यह फैसला सरकारी नौकरी से जुड़े उन सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है, जो बर्खास्तगी से पीड़ित हैं।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTUyODkjMjAxOSMxI04=-Bz5OLJmHwOc=