मामले का परिचय
यह मामला रघुनाथपुर थाना कांड संख्या 212/2015 से संबंधित है, जिसमें तीन आरोपियों – केदार सिंह, हरनारायण सिंह, और धनंजय सिंह को हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया। मामले की पृष्ठभूमि में मृतक प्रमचंद सिंह की हत्या है, जिसमें आरोपियों पर उनके परिवार के सदस्य द्वारा व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण गोली मारने का आरोप था।
एफआईआर और अभियोजन का मामला
एफआईआर में, मृतक के पुत्र राकेश कुमार सिंह ने बताया कि 13 नवंबर 2015 को शाम 4:30 बजे जब उनके पिता अपने दुकान के पास खड़े थे, आरोपियों ने एक मोटरसाइकिल से आकर उन पर गोलियां चलाईं। इसके पीछे, अभियोजन ने आरोप लगाया कि राकेश कुमार सिंह ने धनंजय सिंह की बेटी से प्रेम विवाह किया था, जिससे आरोपी नाराज थे। हत्या के बाद, प्रमचंद सिंह को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई।
ट्रायल और सजा
सत्र न्यायालय ने तीनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 और शस्त्र अधिनियम की धारा 27/35 के तहत दोषी ठहराया। उन्हें आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई।
हाईकोर्ट में अपील
अपील में आरोपियों ने तर्क दिया कि:
- स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति: घटना बाजार में हुई, लेकिन कोई स्वतंत्र गवाह प्रस्तुत नहीं किया गया।
- परिवारिक गवाहों का पक्षपाती होना: अभियोजन पक्ष के गवाह मृतक के परिजन थे।
- विसंगतियां: मेडिकल और चश्मदीद गवाहियों में विरोधाभास थे, जैसे गोली लगने की संख्या और गोली चलाने की दूरी।
- अनियमित जांच: पुलिस ने कई महत्वपूर्ण सबूत जैसे खून से सनी मिट्टी और कारतूस को फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा।
हाईकोर्ट का निर्णय
पटना हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए अभियोजन के पक्ष को मजबूत पाया।
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गवाहों की विश्वसनीयता: कोर्ट ने कहा कि परिवार के गवाहों की गवाही को मात्र इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वे मृतक के रिश्तेदार हैं। उनके बयान घटनास्थल, समय, और परिस्थितियों से मेल खाते थे।
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मेडिकल और चश्मदीद गवाही: मेडिकल रिपोर्ट में मामूली विसंगतियों को गंभीर नहीं माना गया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाओं में मानसिक आघात के कारण गवाहों की स्मृतियों में भिन्नता स्वाभाविक है।
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जांच में खामियां: कोर्ट ने माना कि पुलिस की लापरवाही से जांच में खामियां थीं, लेकिन यह अभियोजन के मामले को कमजोर नहीं करती, क्योंकि मुख्य गवाही और सबूत मजबूत थे।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने दोषियों की अपील खारिज करते हुए सत्र न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
यह फैसला यह संदेश देता है कि न्यायालय का कर्तव्य है कि वह गवाहों की साक्ष्य को सावधानीपूर्वक परखे और मामूली विसंगतियों के आधार पर मामले को खारिज न करे। यह कानून के प्रति जनता के विश्वास को और मजबूत करता है।