पृष्ठभूमि
पटना उच्च न्यायालय में श्याम प्यारी देवी बनाम बिहार राज्य और अन्य के मामले में याचिकाकर्ता श्याम प्यारी देवी ने परिवार पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ की मांग की। उनके पति, स्वर्गीय बालकृष्ण, ने 1962 से 1982 तक बिहार सरकार और बिहार राज्य हथकरघा और हस्तशिल्प निगम लिमिटेड में सेवा की थी।
मुख्य विवाद और याचिका
याचिकाकर्ता ने अदालत में निम्नलिखित मांगें प्रस्तुत की:
- उनके पति को 14 जून 1962 से 19 सितंबर 1982 तक स्थायी सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए और उनकी सेवा अवधि को पेंशन और अन्य लाभों के लिए मान्यता दी जाए।
- परिवार पेंशन और मृत्यु उपरांत सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान किए जाएं।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने निम्नलिखित तर्क दिए:
- याचिकाकर्ता के पति की सेवा 22 सितंबर 1975 को निगम को स्थानांतरित कर दी गई थी। अतः उनकी सरकारी सेवा समाप्त हो गई थी।
- उन्होंने 15 वर्ष की न्यूनतम सेवा पूरी नहीं की, जो पेंशन लाभ पाने के लिए आवश्यक है।
- सरकार ने 2009 और 2000 के निर्देशों के अनुसार, ऐसे कर्मचारियों को पेंशन लाभ देने से इनकार किया, जिनकी सेवाएं निगम को स्थानांतरित कर दी गई थीं।
अदालत का अवलोकन
न्यायालय ने याचिका पर विचार करते हुए निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:
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सेवा की निरंतरता:
- याचिकाकर्ता के पति की सेवा 1962 से उनकी मृत्यु (1982) तक जारी रही। उनका स्थानांतरण निगम में किया गया था, लेकिन उनकी सेवा समाप्त नहीं मानी जा सकती।
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पिछले निर्णयों का प्रभाव:
- अदालत ने उच्चतम न्यायालय द्वारा कमल बंश नारायण सिंह और अन्य मामलों में दिए गए निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह तय हुआ था कि राज्य सरकार के स्थानांतरित कर्मचारियों की सेवाओं को उनकी प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि से गिना जाना चाहिए।
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परिवार पेंशन का अधिकार:
- अदालत ने यह माना कि याचिकाकर्ता अपने पति की सेवाओं के आधार पर परिवार पेंशन और अन्य लाभ पाने की हकदार हैं।
न्यायालय का निर्णय
- याचिकाकर्ता को उनके पति की 1962 से 1982 तक की सेवा के आधार पर परिवार पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ देने का निर्देश दिया गया।
- राज्य सरकार को यह लाभ तीन महीने के भीतर प्रदान करने और देरी के लिए 18% वार्षिक ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया गया।
- अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ कोई दान नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारियों का अधिकार हैं।
निष्कर्ष
यह निर्णय सरकारी सेवाओं के स्थानांतरण और पेंशन लाभों से संबंधित विवादों में एक महत्वपूर्ण दृष्टांत प्रस्तुत करता है। अदालत ने सुनिश्चित किया कि याचिकाकर्ता को उनके अधिकार से वंचित न किया जाए और सरकार को इस मामले में जवाबदेह ठहराया।