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अगर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है तो पेंशन नहीं रोकी जा सकती: पटना हाईकोर्ट

 


परिचय

पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट याचिका संख्या 13557/2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। यह फैसला बिहार पेंशन नियम, 1950 के तहत सरकारी कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभों पर न्यायिक और विभागीय कार्यवाही के प्रभाव को स्पष्ट करता है। विशेष रूप से, अदालत ने यह निर्णय दिया कि क्या सेवानिवृत्ति के समय पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य लाभ रोके जा सकते हैं, जब कोई न्यायिक या विभागीय कार्यवाही लंबित हो।


मामले का विवरण
याचिकाकर्ता, जो मोतीहारी इंजीनियरिंग कॉलेज में कार्यरत थे, 31 जुलाई 2019 को सहायक प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनके खिलाफ 2018 में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में सतर्कता (विजिलेंस) मामला दर्ज किया गया था। इस कारण, उनकी ग्रेच्युटी, 10% पेंशन, और अवकाश नकदीकरण रोक दिए गए।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि:

  1. पेंशन और ग्रेच्युटी का अधिकार: यह कोई उपहार नहीं बल्कि सेवा के बदले में कर्मचारी का अधिकार है।
  2. नियम 43(d) का उपयोग: पेंशन या ग्रेच्युटी रोकने के लिए न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत होना आवश्यक है, जो तभी मानी जाएगी जब चार्जशीट दायर हो।

अदालत के महत्वपूर्ण निर्णय

  1. न्यायिक कार्यवाही का आरंभ:
    बिहार पेंशन नियम, 1950 के नियम 43(d) के तहत, न्यायिक कार्यवाही तभी शुरू मानी जाएगी जब किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट दायर हो। केवल एफआईआर दर्ज करना पर्याप्त नहीं है।

  2. ग्रेच्युटी और पेंशन पर रोक:
    अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना चार्जशीट दायर हुए ग्रेच्युटी या 10% पेंशन रोकना नियम 43(d) का उल्लंघन है।

  3. अवकाश नकदीकरण पर निर्णय:
    यह सरकार के प्रशासनिक आदेशों के तहत आता है। यदि किसी मामले में वित्तीय अनियमितता का गंभीर आरोप है, तो इसे रोका जा सकता है।

  4. नियमों का प्रतिगामी प्रभाव:
    नियम 43(d) और इसके संशोधन 2019 में लागू हुए। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ये नियम पिछली तारीखों से लागू नहीं हो सकते।


अदालत का आदेश

  • याचिकाकर्ता को 10% पेंशन और पूरी ग्रेच्युटी भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
  • अवकाश नकदीकरण का निर्णय विभाग को गंभीरता से पुनर्विचार कर उचित आदेश जारी करने के लिए कहा गया।

निष्कर्ष
यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। पेंशन और ग्रेच्युटी जैसे लाभ कर्मचारी का अधिकार हैं, और इन्हें रोकने के लिए स्पष्ट नियमों का पालन करना अनिवार्य है। यह निर्णय न केवल कानून की व्याख्या को मजबूत करता है, बल्कि कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा भी सुनिश्चित करता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Abhishek Kumar

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