परिचय:
यह मामला पटनाः उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता, सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, अपनी पेंशन और सेवा अवधि से संबंधित विवाद को लेकर न्यायालय में आए। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि उनकी नियुक्ति में हुई देरी के कारण उनकी पेंशन की गणना प्रभावित हुई, जिससे उन्हें पूर्ण पेंशन का लाभ नहीं मिल सका।
मामले की मुख्य बातें:
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याचिकाकर्ताओं की स्थिति:
याचिकाकर्ता बारहू प्रसाद, खेड़न प्रसाद, और लाल बहादुर, जो क्रमशः हाजीपुर, बेतिया और बगहा में एसीजेएम और सब-जज के रूप में कार्यरत थे, सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन में कटौती के कारण न्यायालय की शरण में आए। उनका कहना था कि उन्होंने सेवा की न्यूनतम अवधि पूरी कर ली थी, और इसलिए उन्हें पूर्ण पेंशन मिलनी चाहिए। -
याचिका का आधार:
याचिकाकर्ताओं ने दो प्रमुख तर्क रखे:- नियुक्ति में देरी: उनकी सेवाओं में हुई देरी को सेवा के योग्य वर्षों में शामिल किया जाना चाहिए।
- पेंशन कटौती: पेंशन में कटौती का निर्णय अवैध है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
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प्रमुख दस्तावेज और नियम:
- वित्त विभाग द्वारा जारी संकल्प संख्या 11859 (28.12.2011) और 1529 (11.02.2019)।
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश (26.07.2010) के अनुसार, पूर्ण पेंशन के लिए 20 वर्षों की न्यूनतम सेवा आवश्यक है।
न्यायालय के निर्णय की मुख्य बातें:
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सेवा अवधि की गणना पर तर्क:
- न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति में हुई देरी से संबंधित मामला पुराना हो चुका है और इसे अब चुनौती नहीं दी जा सकती।
- सेवा अवधि की गणना करते समय, केवल वास्तविक सेवा अवधि को ध्यान में रखा जाएगा, न कि नियुक्ति में हुई देरी को।
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पेंशन कटौती का औचित्य:
- न्यायालय ने राज्य सरकार के संकल्पों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि पेंशन की गणना में न्यूनतम 20 वर्षों की सेवा अवधि का पालन किया गया है।
- 10 से 20 वर्षों की सेवा करने वाले न्यायिक अधिकारियों को आनुपातिक पेंशन देने का प्रावधान विधि-सम्मत है।
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याचिकाकर्ताओं के तर्कों पर प्रतिक्रिया:
- याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट के मामले “नरेश कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया” का हवाला दिया, लेकिन न्यायालय ने कहा कि वह मामला केवल वरिष्ठता पुनर्निर्धारण से संबंधित था और वर्तमान मामले पर लागू नहीं होता।
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न्यायालय का निष्कर्ष:
- न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए संकल्प वैध हैं और उनके खिलाफ कोई कानूनी आधार नहीं है।
- याचिका को अस्वीकार कर दिया गया।
निर्णय का प्रभाव:
इस मामले में, न्यायालय ने पेंशन और सेवा अवधि से संबंधित नियमों की वैधता को बरकरार रखा। इस निर्णय ने स्पष्ट किया कि न्यायिक अधिकारियों को पूर्ण पेंशन का अधिकार तभी है, जब वे न्यूनतम 20 वर्षों की सेवा पूरी करें। यह मामला सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन नियमों की व्याख्या का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTQ1ODgjMjAxOSMxI04=-Ic2q95ClCIc=