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“भूमि स्वामित्व विवाद: पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

 

                                             

परिचय:

यह मामला पटनाः उच्च न्यायालय के समक्ष क्रिमिनल मिसलेनियस नंबर 21579/2014 के तहत प्रस्तुत किया गया। याचिकाकर्ता, फादर जोसेफ पुलिकल, ने फौजदारी प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की। यह मामला भूमि स्वामित्व और कब्जे से संबंधित था, जिसमें याचिकाकर्ता पर फसलों को नष्ट करने और भूमि पर अवैध कब्जा करने का आरोप था।


मामले की पृष्ठभूमि:

  1. भूमि का स्वामित्व विवाद:

    • विवादित भूमि, सर्वे प्लॉट नंबर 1282, 1283, और 1284, 1942 और 1944 में पंजीकृत बिक्री विलेखों के माध्यम से पटना डायोसिसन कॉर्पोरेशन को हस्तांतरित की गई थी।
    • प्रतिवादी पक्ष ने दावा किया कि भूमि का स्वामित्व मूल विक्रेता के पास नहीं था और कॉर्पोरेशन ने इसे अवैध रूप से खरीदा।
  2. मूल आरोप:

    • शिकायतकर्ता, लाल बाबू राय के पिता, ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने पुलिस की मदद से उनकी भूमि को जबरन जोत दिया और 15,000 रुपये का नुकसान पहुंचाया।
    • यह मामला 2006 में दायर किया गया था, और 2014 में याचिकाकर्ता ने इसे खारिज करने की मांग की।
  3. पहले के कानूनी फैसले:

    • 1986 में उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट, आरा, ने एक आदेश में कहा कि विवादित भूमि पर कॉर्पोरेशन का कब्जा वैध है।
    • यह आदेश 1990 में एक पुनरीक्षण याचिका के बाद रद्द कर दिया गया था, लेकिन कब्जे की पुष्टि वाले दस्तावेज अभी भी चुनौती नहीं दिए गए।

याचिकाकर्ता की दलीलें:

  1. मुकदमे की वैधता पर सवाल:

    • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मामला दुर्भावना और दबाव बनाने के उद्देश्य से दायर किया गया है।
    • भूमि कॉर्पोरेशन की है और इस पर कब्जा दस्तावेजों द्वारा समर्थित है।
  2. फौजदारी मामला बनाने की वैधता:

    • याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि भूमि कॉर्पोरेशन की है, तो फसल जोतने का कोई आपराधिक अपराध नहीं हो सकता।
    • उन्होंने भूमि पर अपना स्वामित्व साबित करने के लिए पंजीकृत बिक्री विलेख और पहले के अदालती आदेशों का हवाला दिया।

प्रतिवादी की दलीलें:

  1. फसल नष्ट करने का आरोप:

    • प्रतिवादी ने कहा कि भूमि पर उनकी फसल थी, जिसे याचिकाकर्ता ने नष्ट कर दिया।
    • उनका दावा था कि उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट द्वारा 1990 में दिया गया आदेश कॉर्पोरेशन के दावे को कमजोर करता है।
  2. भूमि स्वामित्व पर विवाद:

    • प्रतिवादी ने कहा कि 1942 और 1944 के बिक्री विलेख विवादित हैं और इन्हें टाइटल सूट नंबर 526/2001 में चुनौती दी गई है।

न्यायालय का विश्लेषण:

  1. दुर्भावना और दुर्भावनापूर्ण मुकदमा:

    • न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला दुर्भावनापूर्ण है और यह दबाव बनाने के लिए दायर किया गया।
    • अदालत ने कहा कि भूमि पर कॉर्पोरेशन का स्वामित्व और कब्जा पहले के आदेशों और दस्तावेजों द्वारा समर्थित है।
  2. फौजदारी मामला बनाने की अनुपयुक्तता:

    • न्यायालय ने कहा कि जब भूमि कॉर्पोरेशन की है, तो फसल जोतने का कोई आपराधिक मामला नहीं बनता।
    • प्रतिवादी का दावा कि उन्होंने भूमि पर फसल लगाई थी, कानूनी तौर पर अस्थिर और अविश्वसनीय पाया गया।
  3. भूस्वामित्व और अधिकार की सुरक्षा:

    • अदालत ने जोर देकर कहा कि कॉर्पोरेशन के अधिकार और स्वामित्व को बिना किसी वैध चुनौती के मान्यता दी जानी चाहिए।
    • न्यायालय ने संविधान के तहत ऐसे स्वामित्व की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया।

निर्णय:

  1. मामला खारिज:
    • न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामले को दुर्भावनापूर्ण और अनुचित बताते हुए रद्द कर दिया।
  2. स्वामित्व की पुष्टि:
    • अदालत ने कहा कि जब तक टाइटल सूट में कोई विपरीत निर्णय नहीं आता, भूमि का स्वामित्व कॉर्पोरेशन के पास ही रहेगा।

निष्कर्ष:

यह मामला कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग रोकने और वैध स्वामित्व की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल दुर्भावना के आधार पर किसी के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता।

                                         पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMyMTU3OSMyMDE0IzEjTg==-smDE–am1–JHw6xs=

 

Abhishek Kumar

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