"अधिकारी की व्यावसायिक बाध्यताओं और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन - एक न्यायिक दृष्टिकोण"

“अधिकारी की व्यावसायिक बाध्यताओं और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन – एक न्यायिक दृष्टिकोण”

 

पटना उच्च न्यायालय में दायर इस आपराधिक मिसेलेनियस याचिका (क्रमांक 57101/2019) में तीन याचिकाकर्ताओं – सचिदानंद मिश्रा, रविंद्र कुमार और कौटिल्य – ने एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की। ये सभी याचिकाकर्ता महिंद्रा एंड महिंद्रा के कर्मचारी थे और उन्हें नालंदा थाने में दायर एक शिकायत मामले (849/2016) में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग थी।

मामले की पृष्ठभूमि में, इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत मामला दर्ज किया गया था। मूल न्यायालय ने उनकी धारा 205 के अंतर्गत दायर याचिका को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट और वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति मांगी थी। न्यायालय ने इस याचिका को केवल इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि उनके खिलाफ पहले से ही गैर-जमानती वारंट जारी किया जा चुका था।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता श्री चित्रंजन सिन्हा ने न्यायालय में कई महत्वपूर्ण तर्क दिए। उन्होंने यह बताया कि न तो मूल समन की तामील हुई थी और न ही वारंट की तामील की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि बिना तामील के वारंट जारी करना स्वयं में एक अनुचित कार्रवाई है। साथ ही, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गैर-जमानती वारंट जारी होना धारा 205 के तहत आवेदन पर विचार करने में बाधक नहीं हो सकता।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी विशेष परिस्थितियों का भी उल्लेख किया। वे महिंद्रा एंड महिंद्रा के कर्मचारी हैं, जिनमें से एक ने पहले ही नौकरी छोड़ दी है और अन्य लगातार कार्य के सिलसिले में विभिन्न स्थानों पर यात्रा करते रहते हैं। उन्होंने न्यायालय को आश्वासन दिया कि वे जब भी आवश्यक होगा, न्यायिक प्रक्रिया में पूरी तरह से सहयोग करने के लिए उपस्थित होंगे।

न्यायाधीश बिरेंद्र कुमार ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। उन्होंने राम हर्ष दास बनाम बिहार राज्य के पहले के एक निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि जब प्रारंभिक समन जारी किए गए हों, तो धारा 205 के तहत आवेदन पर विचार किया जा सकता है।

न्यायालय ने मूल आदेश को निरस्त कर दिया और मामले को निचली अदालत को वापस भेज दिया, ताकि वह कानून के अनुसार उचित आदेश पारित कर सके। न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रेट को हमेशा यह अधिकार है कि वह आरोपी से न्याय की प्रगति के लिए आवश्यकतानुसार किसी भी तिथि पर उपस्थित होने को कह सकता है।

इस निर्णय का महत्व यह है कि यह न्यायिक प्रक्रिया में लोगों के व्यावसायिक और व्यक्तिगत दायित्वों को ध्यान में रखते हुए लचीलापन प्रदान करता है। साथ ही, यह स्पष्ट करता है कि न्याय प्रक्रिया को किसी भी व्यक्ति के लिए अनावश्यक कठिनाई नहीं बनाया जाना चाहिए।

अंत में, याचिका स्वीकार कर ली गई और मामला पुनर्विचार के लिए निचली अदालत को वापस भेज दिया गया।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM1NzEwMSMyMDE5IzEjTg==-d4Co2V–am1–vaE0=

Abhishek Kumar

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