भूमिका
यह केस बिहार के वैशाली जिले के एक गांव की उस दुखद घटना से जुड़ा है, जिसमें एक युवक की हत्या केवल इस कारण कर दी गई कि वह एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था। मृतक युवक का नाम सुबोध कुमार था, जो एक हिंदू परिवार से था। आरोप है कि सुबोध की मुस्लिम युवती सोनी खातून से दोस्ती और बातचीत उसके परिवार को नागवार गुज़री और इस आपत्ति का परिणाम निकला — एक सुनियोजित हत्या।
पटना हाईकोर्ट ने इस केस में आरोपी मोहम्मद अलाउद्दीन की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि यह एक ऐसे केस का उदाहरण है जिसमें परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी दोष सिद्धि संभव है।
1. घटना की पृष्ठभूमि
दिनांक: 19 अप्रैल 2015 (रात्रि 1:45 बजे)
स्थान: गांव चक अल्लाहदाद, थाना वैशाली, जिला वैशाली
घटना: सुबोध कुमार अपने घर के कोठरी में सोया हुआ था। उसी समय उसकी चीख-पुकार सुनकर उसके माता-पिता (गजेंद्र ठाकुर और सुशीला देवी) वहां पहुंचे और देखा कि मोहम्मद अलाउद्दीन और मोहम्मद युनूस “छपर” (एक तेज धार वाला हथियार) लिए वहां से भाग रहे हैं। सुबोध की गर्दन पर गहरी चोट थी और वह खून से लथपथ मृत पड़ा था।
2. अभियोजन की कहानी
सुबोध की मां ने पहले भी सोनी खातून और सुबोध के बीच फोन पर बातचीत का विरोध किया था और इसके लिए सोनी के परिवार को चेतावनी दी थी। इसके बावजूद बातचीत चलती रही। अभियोजन का दावा था कि यही कारण बना कि अलाउद्दीन (सोनी का भाई), युनूस (परिवार का रिश्तेदार) और खुद सोनी ने मिलकर इस हत्या की साजिश रची।
एफआईआर और जांच
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एफआईआर संख्या: वैशाली थाना कांड संख्या 111/2015
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आरोप: भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34/120बी (हत्या, साझा अपराध और षड्यंत्र)
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चार्जशीट: 16 जुलाई 2015
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ट्रायल: सेशन ट्रायल संख्या 446/2015
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आरोपी: मोहम्मद अलाउद्दीन (मुख्य आरोपी), मोहम्मद युनूस और सोनी खातून (नाबालिग होने के कारण बाल न्याय बोर्ड को भेजे गए)
3. ट्रायल कोर्ट का फैसला
ट्रायल कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:
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माता-पिता गवाह: पीड़ित के माता-पिता (PW-7 और PW-8) ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने अलाउद्दीन और युनूस को भागते हुए देखा, जिनके हाथ में खून से सना हुआ छपर था।
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डॉक्टर का बयान (PW-10): मृतक की गर्दन पर धारदार हथियार से गहरी चोट थी और मौत अत्यधिक रक्तस्राव और शॉक के कारण हुई।
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मकसद: परिवार और गांव वालों की गवाही से यह साबित हुआ कि मृतक और आरोपी की बहन के बीच प्रेम संबंध थे, जिससे आरोपी नाराज़ था।
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निर्णय: ट्रायल कोर्ट ने अलाउद्दीन को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास और ₹50,000 जुर्माने की सजा दी।
4. हाईकोर्ट में अपील और बचाव पक्ष की दलीलें
बचाव पक्ष ने तर्क दिया:
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कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था; माता-पिता ने केवल आरोपी को भागते हुए देखा, हत्या करते नहीं।
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फोरेंसिक साक्ष्य जैसे कि खून के निशान, हथियार की जब्ती, आदि नहीं मिले।
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पुलिस को सूचना देर से दी गई, जिससे एफआईआर में देरी हुई और पहला बयान दबाया गया।
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धारा 313 CrPC में आरोपी से पर्याप्त सवाल नहीं पूछे गए, जिससे उसे सफाई देने का उचित अवसर नहीं मिला।
5. अभियोजन पक्ष का जवाब
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हत्या रात्रि में हुई थी और मृतक के माता-पिता ही प्राकृतिक गवाह थे जो मौके पर मौजूद थे।
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यह स्पष्ट था कि अपराध का कारण पीड़िता और आरोपी की बहन के बीच संबंध थे, जिसे आरोपी परिवार ने स्वीकार नहीं किया।
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पुलिस स्टेशन की दूरी (12 किमी) और रात का समय था, इसलिए एफआईआर में थोड़ी देर स्वाभाविक थी।
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साक्ष्य में कोई गंभीर विरोधाभास नहीं है और माता-पिता के बयान भरोसेमंद और सुसंगत हैं।
6. हाईकोर्ट का विचार और निर्णय
पटना उच्च न्यायालय ने बचाव पक्ष के सभी तर्कों की विस्तार से समीक्षा की और निम्नलिखित आधारों पर ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया:
(1) माता-पिता के साक्ष्य पूर्णतः विश्वसनीय
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PW-7 (मां) और PW-8 (पिता) के बयान में कोई विरोधाभास नहीं था।
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उन्होंने आरोपी को भागते हुए देखा और उनकी गवाही पर कोई प्रभावी जिरह नहीं हुई।
(2) प्रेम संबंध से उपजा मकसद
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पूरे गांव और परिवार में यह चर्चा थी कि मृतक और सोनी खातून के बीच संबंध थे।
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यह संबंध आरोपी को अस्वीकार्य था, और इसी से हत्या का मकसद उत्पन्न हुआ।
(3) परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ी पूर्ण
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित ‘पंचशील सिद्धांत’ (Sharad Birdhichand Sarda केस) के सभी बिंदु इस मामले में सिद्ध हुए:
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साक्ष्य पूरी तरह स्थापित,
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केवल आरोपी को दोषी ठहराने वाले,
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और कोई अन्य संभव व्याख्या नहीं।
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(4) धारा 313 CrPC का अनुपालन
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आरोपी को सभी आरोपों की जानकारी दी गई और उन्होंने बस “नहीं” कहा।
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कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ।
7. निष्कर्ष और फैसला
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि:
“इस केस में अभियोजन पक्ष ने सभी जरूरी कड़ियों को जोड़कर आरोपी की दोषसिद्धि साबित की है। कोई अन्य संभावित संदेह नहीं बचता। ट्रायल कोर्ट ने कोई गलती नहीं की।”
इसलिए, अपील खारिज की जाती है और आजीवन कारावास की सजा बरकरार रहती है।
न्यायिक महत्व
यह फैसला दर्शाता है कि:
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परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी पर्याप्त हो सकते हैं यदि वे विश्वसनीय और पूर्ण हों।
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पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के नाम पर की गई हिंसा को अदालतें सख्ती से देखती हैं।
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तकनीकी चूकें जैसे कि एफआईआर में थोड़ी देरी, अगर परिस्थितियों से स्पष्ट हो, तो वह दोषसिद्धि को प्रभावित नहीं करतीं।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSM3ODgjMjAxOCMxI04=-DOR0BUb1mjc=