निर्णय का सरल विश्लेषण
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के विरुद्ध जारी विभागीय दंड आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश मध्याह्न भोजन योजना में गड़बड़ी और पद का दुरुपयोग करने के आरोपों पर आधारित था। न्यायालय ने कहा कि ऐसी किसी भी विभागीय कार्रवाई में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य है।
याचिकाकर्ता 2005 से 2007 तक पटना जिले के एक स्कूल में प्रभारी प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत थे और मध्याह्न भोजन योजना की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के पास थी। उनकी उस स्कूल से स्थानांतरण के वर्षों बाद, वर्ष 2016 में एक शिकायत के आधार पर उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें निलंबित किया गया, तीन वेतन वृद्धियाँ रोकी गईं, और ₹1,17,384 की कटौती उनके वेतन से की गई।
न्यायालय ने जांच प्रक्रिया में कई गंभीर खामियाँ पाईं:
- आरोपपत्र के साथ साक्ष्य और गवाहों की सूची नहीं दी गई।
- कोई मौखिक सुनवाई नहीं हुई और न ही कोई गवाह प्रस्तुत किया गया।
- जांच पदाधिकारी ने स्वयं जाकर “स्पॉट वेरिफिकेशन” किया और याचिकाकर्ता को उसका सामना करने का मौका नहीं दिया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये सभी बातें बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली, 2005 के नियम 17 और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन हैं।
सुप्रीम कोर्ट के और खुद पटना हाईकोर्ट के कई पुराने निर्णयों के आधार पर न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि बिना उचित प्रक्रिया और साक्ष्यों के आधार पर दिया गया दंड आदेश कानूनन मान्य नहीं हो सकता।
न्यायालय ने आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को न केवल राशि वापस लौटाने का निर्देश दिया, बल्कि वेतन और अन्य लाभ भी बहाल करने को कहा। साथ ही राज्य सरकार को यदि आवश्यक समझे, तो सभी नियमों का पालन करते हुए पुनः जांच करने की छूट दी।
निर्णय का महत्व
यह निर्णय उन सभी सरकारी कर्मियों के लिए राहत भरा है जिनके खिलाफ बिना उचित प्रक्रिया के विभागीय कार्रवाई होती है। विशेषकर प्राथमिक शिक्षकों और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए यह एक मिसाल बन सकता है।
सरकार और उसके अधिकारियों को यह निर्णय यह याद दिलाता है कि यदि वे दंडात्मक कार्रवाई करना चाहते हैं, तो कानूनी प्रक्रिया और पारदर्शिता का पालन आवश्यक है।
न्यायालय के समक्ष उठे मुख्य कानूनी प्रश्न व निर्णय
- क्या विभागीय जांच में प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ?
✅ हां। कोई गवाह प्रस्तुत नहीं किया गया और दस्तावेज़ों को याचिकाकर्ता से छिपाया गया। - क्या बिना निष्पक्ष जांच के वेतन कटौती और दंड वैध है?
❌ नहीं। बिना निष्पक्ष जांच के ऐसा कोई भी आदेश अवैध है। - क्या याचिकाकर्ता को धनवापसी और अन्य लाभ मिलने चाहिए?
✅ हां। न्यायालय ने समस्त लाभ लौटाने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत निर्णय
- Arjun Mishra v. Bihar School Examination Board, 2007 (3) PLJR 700
- Choudhary Murli Manohar Prasad Roy v. State of Bihar, 2008 (4) PLJR 315
न्यायालय द्वारा संदर्भित निर्णय
- Anil Kumar v. Presiding Officer, AIR 1985 SC 1121
- Kumar Upendra Singh Parimar v. State of Bihar, 2000 (3) PLJR 10
- S.K. Verma v. State of Bihar, 2000 (1) PLJR 116
वाद शीर्षक
रमेश्वर पासवान बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
वाद संख्या
CWJC No. 3042 of 2018
सन्दर्भ (Citation)
2020 (1) PLJR 1
पीठ
माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
अधिवक्ता
याचिकाकर्ता की ओर से: सुश्री महास्वेता चटर्जी
प्रतिवादियों की ओर से: श्री एम. पी. यादव, सरकारी अधिवक्ता-23, एवं श्री अरविन्द कुमार, सहायक
निर्णय की लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMzA0NyMyMDE4IzIjTg==-k5K45egvjj0=