पटना हाईकोर्ट ने एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन) को एम.पी.एड के समकक्ष मानने से किया इनकार – Samvidalaw

पटना हाईकोर्ट ने एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन) को एम.पी.एड के समकक्ष मानने से किया इनकार

 

निर्णय का सरल विश्लेषण

इस मामले में याचिकाकर्ता ने बिहार सरकार के शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याता (शारीरिक शिक्षा) की भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन संख्या 03/2016 के तहत अपने चयन को रद्द किए जाने को चुनौती दी थी। विवाद इस बात को लेकर था कि क्या याचिकाकर्ता की योग्यता—एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन)—एम.पी.एड के समकक्ष मानी जा सकती है या नहीं।

याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और साक्षात्कार के लिए भी बुलाया गया था। लेकिन अंतिम परिणाम में उनका नाम नहीं आया और उनकी उम्मीदवारी को शिक्षा विभाग के एक पत्र के आधार पर रद्द कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि उनकी डिग्री विज्ञापन के अनुरूप नहीं है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनकी डिग्री यूजीसी से मान्यता प्राप्त है और इसे एम.पी.एड के समकक्ष माना जाना चाहिए। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों का हवाला भी दिया, जिसमें एम.ए. (एजुकेशन) और एम.एड को समकक्ष माना गया था। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में किसी भी संस्थान में एम.पी.एड की पढ़ाई नहीं होती, इसलिए इस योग्यता की अनिवार्यता अव्यावहारिक है।

हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विज्ञापन में केवल एम.पी.एड की डिग्री को अनिवार्य योग्यता के रूप में उल्लेख किया गया था और समकक्ष डिग्री का कोई उल्लेख नहीं था। चूंकि किसी विशेषज्ञ समिति ने भी एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन) को एम.पी.एड के समकक्ष नहीं माना, इसलिए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

निर्णय का महत्व

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि किसी भी सरकारी भर्ती प्रक्रिया में विज्ञापन में निर्धारित योग्यता की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह शासन को समान मानकों के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित करने में मदद करता है। अभ्यर्थियों को यह सीख मिलती है कि आवेदन करने से पहले अपनी योग्यता की उपयुक्तता को अवश्य जांचें। यह भी संकेत है कि न्यायालय विशेषज्ञों की राय के बिना नियमों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

विवादित कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन) को एम.पी.एड के समकक्ष माना जा सकता है?

    • निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि एम.ए. (फिजिकल एजुकेशन) को एम.पी.एड के समकक्ष नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि या विशेषज्ञ समिति की सिफारिश नहीं थी।

  • क्या याचिकाकर्ता को गलत तरीके से चयन सूची से बाहर किया गया?

    • निर्णय: नहीं। चयन प्रक्रिया विज्ञापन में निर्धारित योग्यता के अनुरूप ही की गई थी।

याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत निर्णय

  • संतोष डागर बनाम दिल्ली सरकार (दिल्ली उच्च न्यायालय)

  • परवेज़ अहमद पारी बनाम जम्मू कश्मीर राज्य (2015) 17 SCC 709

  • आनंद यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, सिविल अपील संख्या 2850/2020

न्यायालय द्वारा संदर्भित निर्णय

  • आनंद यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, सिविल अपील संख्या 2850/2020 (पर विचार किया गया, लेकिन अनुपयुक्त पाया गया)

मामले का शीर्षक

ममता कुमारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

मामला संख्या

सिविल रिट युरिस्डिक्शन केस संख्या 1971/2021

संदर्भ- 2024(4) PLJR (616)

पीठ एवं न्यायाधीशों के नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण

अधिवक्ताओं के नाम

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बृस्केतु शरण पांडेय

  • राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता

  • बीपीएससी की ओर से: श्री संजय पांडेय, श्री निशांत कुमार झा

  • एनसीटीई की ओर से: श्री सुनील कुमार सिंह

निर्णय की लिंक


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