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पटना उच्च न्यायालय ने खाद्यान्न घोटाले के मामले में cognizance आदेश को रद्द किया

 

न्याय और सादी भाषा में निर्णय का सारांश

28 मार्च 2024 को पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण आदेश में निचली अदालत द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी) और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत संज्ञान लिया गया था। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत द्वेषपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से दायर की गई थी।

मामले के तथ्य इस प्रकार हैं: याचिकाकर्ता बिहार राज्य खाद्य निगम (SFC) में सहायक प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे, जबकि शिकायतकर्ता भारतीय खाद्य निगम (FCI) में गोदाम प्रबंधक के रूप में कार्यरत थे। आरोप था कि अगस्त 2010 से दिसंबर 2010 के बीच याचिकाकर्ता ने 62,82,212.50 रुपये का भुगतान कर 58928.25 क्विंटल चावल उठाया, लेकिन बाढ़ राहत कार्य के दौरान शिकायतकर्ता की व्यस्तता का फायदा उठाकर याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त 11322 क्विंटल चावल भी उठा लिया।

बाद में जांच में यह स्पष्ट हुआ कि इस पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी, जिसमें शिकायतकर्ता को दोषी पाया गया और उनके विरुद्ध चार्जशीट दायर की गई, जबकि याचिकाकर्ता को मात्र एक गवाह के रूप में सूचीबद्ध किया गया।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि यह शिकायत दुर्भावनापूर्ण थी और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित थी। अतः यह मामला स्पष्ट रूप से उस श्रेणी में आता है जहां सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भजन लाल बनाम हरियाणा राज्य [(1992) Supp (1) SCC 335] के दिशा-निर्देशों के तहत संज्ञान आदेश को रद्द किया जा सकता है।

न्यायिक महत्व और आम जनता के लिए निहितार्थ

यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा झूठे मामलों और प्रक्रियात्मक दुरुपयोग के विरुद्ध कठोर रुख अपनाने का स्पष्ट उदाहरण है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सरकारी अधिकारी या कोई भी नागरिक झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोपों के कारण अनावश्यक कानूनी प्रक्रिया में न फंसे। यह आम जनता के लिए एक संदेश है कि उन्हें विधिसम्मत सुरक्षा प्राप्त है और न्याय प्रणाली उनके अधिकारों की रक्षा करेगी।

न्यायालय द्वारा तय किए गए मुख्य मुद्दे और निर्णय

  • क्या शिकायत प्रथम दृष्टया अपराध को सिद्ध करती है? नहीं

  • क्या शिकायत दुर्भावनापूर्ण थी? हाँ

  • क्या उच्च न्यायालय को धारा 482 सीआरपीसी के तहत मामले को रद्द करने का अधिकार है? हाँ

  • निष्कर्ष: 16.03.2013 का संज्ञान आदेश और इसके सभी परिणामी कार्यवाहियाँ रद्द की गईं

न्यायालय द्वारा संदर्भित निर्णय:

  • हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल [(1992) Supp (1) SCC 335]

मामले का शीर्षक: रवि शंकर दुबे बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

मामला संख्या: क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या 16400/2016

उद्धरण: 2024 (4) PLJR 566

पीठ और न्यायाधीश: माननीय श्री न्यायमूर्ति चंद्र शेखर झा

अधिवक्ताओं के नाम:

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मुकेश कांत, अधिवक्ता

  • राज्य की ओर से: श्री मो. आरिफ, अपर लोक अभियोजक

  • विपक्षी संख्या 2 की ओर से: श्री लोकेश कुमार सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक: 

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMxNjQwMCMyMDE2IzEjTg==-yuICWm4stLg=

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