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30 साल सेवा के बाद भी पेंशन से वंचित! – पटना हाई कोर्ट ने दिया पुरानी पेंशन योजना का लाभ, 1997 से सेवा अवधि मानी

 

परिचय

यह मामला एक साधारण कर्मचारी, सुबाष ठाकुर, की असाधारण संघर्ष की कहानी है, जिन्होंने वर्ष 1990 से एक महाविद्यालय में प्रयोगशाला प्रभारी (Laboratory Incharge) के रूप में कार्य किया, लेकिन नियमित नियुक्ति उन्हें 22 साल बाद 2012 में मिली। 2016 में सेवानिवृत्त होने के बाद जब उन्हें पेंशन से वंचित कर दिया गया, तब उन्होंने पटना हाई कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई।

इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई व्यक्ति वर्षों तक लगातार एक स्वीकृत पद पर सेवा देता है, तो उस सेवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अंततः कोर्ट ने उन्हें 1997 से सेवा अवधि मानते हुए पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) का लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता: सुबाष ठाकुर, भौतिकी विभाग, के.वी.एस. कॉलेज, उच्चैठ, बेनीपट्टी, मधुबनी में प्रयोगशाला प्रभारी

  • नियुक्ति की शुरुआत: 09 मार्च 1990 को एक स्वीकृत पद पर नियुक्ति, लेकिन बिना नियमित चयन प्रक्रिया के।

  • नियमित नियुक्ति: अगस्त 2012 में हुई।

  • सेवानिवृत्ति: 31 जनवरी 2016 को।

  • पेंशन विवाद: विश्वविद्यालय ने पेंशन लाभ देने से इनकार कर दिया क्योंकि नियमित सेवा केवल 4 साल की थी, जबकि न्यूनतम आवश्यकता 10 साल है।

कोर्ट में उठे प्रमुख प्रश्न

  1. क्या 1990 से दी गई सेवा को “योग्य सेवा (qualifying service)” माना जा सकता है?

  2. क्या सुबाष ठाकुर को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए?

  3. क्या 2016 में सेवानिवृत्ति के बाद 2021 में दाखिल याचिका विलंबित मानी जाएगी?

मुख्य कानूनी तर्क एवं कोर्ट की राय

🟠 विश्वविद्यालय का पक्ष:

  • नियमित नियुक्ति 2012 में हुई, सेवा केवल 4 साल की।

  • पेंशन का हक तभी बनता है जब कम से कम 10 वर्षों की नियमित सेवा हो।

  • याचिका सेवानिवृत्ति के 5 वर्ष बाद दायर की गई।

🔵 याचिकाकर्ता का पक्ष:

  • 1990 से लगातार सेवा दी गई, और सभी आदेशों के बावजूद विश्वविद्यालय ने नियमित प्रक्रिया में देरी की।

  • यह देरी याचिकाकर्ता की गलती नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की उदासीनता का परिणाम थी।

  • सुप्रीम कोर्ट के Direct Recruit Case (1990) 2 SCC 715 का हवाला:
    “यदि कोई व्यक्ति स्वीकृत पद पर लंबे समय तक कार्य करता है और बाद में नियमित किया जाता है, तो पूरी सेवा को योग्यता सेवा माना जाना चाहिए।”

कोर्ट का निर्णय

1990 से 1997 तक की सेवा मान्य नहीं

  • 1996 और 1997 के बीच दायर याचिकाओं में नियमितीकरण को खारिज कर दिया गया था।

  • इसलिए 1997 से पहले की सेवा को योग्यता सेवा नहीं माना जा सकता।

09 नवम्बर 1997 से सेवा मानी जाएगी

  • 1997 में कोर्ट ने 6 महीने में चयन प्रक्रिया पूरा करने का निर्देश दिया था, जिसे विश्वविद्यालय ने नहीं माना।

  • यदि चयन समय से हुआ होता, तो याचिकाकर्ता को नियमित नियुक्ति मिल जाती।

  • इसलिए 09.11.1997 से उनकी सेवा को पेंशन हेतु मान्य माना गया।

पुरानी पेंशन योजना लागू

  • सेवा 1997 से मानी गई, जिससे कुल सेवा अवधि 18 साल से अधिक हो जाती है (1997–2016)।

  • अतः Old Pension Scheme के तहत पेंशन लाभ दिया जाए।

पेंशन का एरियर (arrears) केवल 3 वर्ष का

  • याचिका 2021 में दायर हुई, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के Tarsem Singh (2008) के अनुसार केवल पिछले 3 वर्षों का एरियर मिलेगा।

  • यानि एरियर भुगतान 06.01.2018 से होगा।

कोर्ट का निष्कर्ष

“नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी अगर नियोक्ता की गलती है, तो कर्मचारी को उसका खामियाजा नहीं भुगतना चाहिए।”

पटना हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  • विश्वविद्यालय की देरी के कारण याचिकाकर्ता को नियमित नियुक्ति नहीं मिल सकी।

  • याचिकाकर्ता लगातार स्वीकृत पद पर कार्यरत रहे।

  • इसलिए उन्हें पुरानी पेंशन योजना का पूरा लाभ मिलना चाहिए।

प्रभाव और महत्व

✅ यह फैसला ऐसे हजारों अस्थायी या अनुबंध आधारित कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है जो वर्षों से स्वीकृत पदों पर सेवा कर रहे हैं लेकिन नियमितीकरण या पेंशन से वंचित हैं।

✅ यह न्यायालय की यह मान्यता दर्शाता है कि सरकार या संस्थान की देरी से कर्मचारी का भविष्य नहीं बिगड़ना चाहिए।

✅ यह निर्णय शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय प्रशासन की अनियमितताओं पर भी टिप्पणी है, जहां चयन प्रक्रिया जानबूझकर टाली जाती है।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM1NTQjMjAyMyMxI04=-aZ1wfpX5wtw=

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