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15 साल बाद पेंशन में कटौती और वेतन वापसी का आदेश रद्द – पटना हाई कोर्ट ने दी सेवानिवृत्त रेलकर्मी को राहत

 

परिचय

यह मामला राम लखन सिंह नामक एक सेवानिवृत्त रेलवे सुरक्षा बल (RPF) के अधिकारी से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी सेवा पूरी कर 30 नवम्बर 2018 को सब-इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्ति ली। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उनका वेतनमान घटा दिया गया और 94,416 रुपये की वसूली का आदेश भी पारित कर दिया गया। इस अन्याय के विरुद्ध उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में याचिका (CWJC No. 2850 of 2021) दाखिल की। न्यायालय ने इस आदेश को “अवैध, अन्यायपूर्ण और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध” करार देते हुए रद्द कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

राम लखन सिंह वर्ष 1978 में कांस्टेबल के पद पर रेलवे सुरक्षा बल में नियुक्त हुए थे। उन्होंने कई स्थानों पर सेवा दी और क्रमशः हेड कांस्टेबल, असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर, और अंततः सब-इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत हुए। 30 नवम्बर 2018 को वे अपने अंतिम पद से सेवानिवृत्त हुए, उस समय उनका मूल वेतन ₹50,500/- था।

लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उनके पेंशन का निर्धारण ₹49,000/- के आधार पर किया गया, जो कि 17 महीने पुराने वेतन पर आधारित था। इससे न केवल उनकी पेंशन में कटौती हुई, बल्कि ₹94,416/- की वसूली का भी आदेश पारित कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने इसे मनमाना और अन्यायपूर्ण बताते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की मुख्य दलीलें

  1. बिना नोटिस वेतन घटाया गया – सेवा अवधि के दौरान कभी भी उन्हें अतिरिक्त वेतन दिए जाने की सूचना नहीं दी गई, न ही उनसे कोई स्पष्टीकरण मांगा गया।

  2. 17 महीने पुराने वेतन पर पेंशन निर्धारण – यह न केवल नियमों के विरुद्ध है, बल्कि स्पष्ट वित्तीय क्षति भी है।

  3. 94,416 रुपये की कटौती – सेवानिवृत्ति के बाद इतनी बड़ी राशि की कटौती से याचिकाकर्ता को भारी मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ।

  4. प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन – कोई शो-कॉज नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।

  5. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला

    • State of Punjab v. Rafiq Masih (2015) – 5 वर्षों से अधिक पुराने अतिरिक्त भुगतान की वसूली सेवानिवृत्त कर्मचारियों से नहीं की जा सकती।

    • Thomas Daniel v. State of Kerala (2022) – 10 वर्षों से अधिक समय तक अतिरिक्त वेतन मिलने पर भी वसूली गैरकानूनी मानी गई।

    • Jagdish Prasad Singh v. State of Bihar (2024) – बिना सुनवाई और नोटिस के पेंशन में कटौती और वसूली अवैध।

सरकारी पक्ष की दलीलें

  1. वर्ष 2003 में दोहरी वेतन वृद्धि (डबल इन्क्रीमेंट) – याचिकाकर्ता को गलती से दो बार इन्क्रीमेंट दे दिया गया जिससे बाद के वर्षों में उनका वेतन अधिक हो गया।

  2. सेवानिवृत्ति के समय गलती पकड़ी गई – पेंशन निर्धारण के समय फाइनेंस विभाग ने इस गलती को पकड़ा और पुनः वेतन निर्धारण किया।

  3. याचिकाकर्ता को अतिरिक्त वेतन का पता था – उनका तर्क था कि याचिकाकर्ता को मालूम था कि वे अधिक वेतन पा रहे हैं और उन्होंने कभी सुधार नहीं कराया।

  4. वसूली न्यायोचित है – सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से यह कहा गया कि यदि कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान की जानकारी थी, तो वसूली जायज़ है।

पटना हाई कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

  1. 15 साल पुरानी गलती की अब वसूली अनुचित – कोर्ट ने माना कि 2003 की गलती का पता 2018 में चला और तब वसूली का आदेश दिया गया, जो कि Rafiq Masih मामले के विरुद्ध है।

  2. बिना सुनवाई आदेश पारित करना अवैध – याचिकाकर्ता को न कोई नोटिस मिला और न ही अपना पक्ष रखने का अवसर, जिससे यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध ठहराया गया।

  3. अतिरिक्त वेतन धोखे या गलत प्रस्तुति से नहीं मिला था – रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगे कि याचिकाकर्ता ने जानबूझ कर अधिक वेतन प्राप्त किया।

  4. मानवता और न्याय का संतुलन – सेवानिवृत्त कर्मचारी से 15 साल पुरानी गलती की कीमत वसूलना अनुचित, असंवेदनशील और कठोर कृत्य माना गया।

  5. उपयुक्त उदाहरणों का सहारा – सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को आधार बनाकर कोर्ट ने यह आदेश पारित किया।

अंतिम निर्णय

  • याचिकाकर्ता की पेंशन ₹50,500/- के आधार पर पुनः बहाल करने का आदेश।

  • ₹94,416/- की वसूली रद्द की गई।

  • उक्त राशि याचिकाकर्ता को 8 सप्ताह के भीतर लौटाने का निर्देश।

  • लीव एनकैशमेंट की शिकायत के समाधान की पुष्टि।

निष्कर्ष

यह निर्णय न्यायपालिका के उस मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता है जो तकनीकी गलती के लिए वर्षों तक सेवा देने वाले कर्मचारियों को दंडित करने के विरुद्ध खड़ा होता है। यह फैसला विशेष रूप से सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए मार्गदर्शक है कि सेवानिवृत्ति के बाद बिना पूर्व सूचना और न्यायसंगत प्रक्रिया के कोई भी वित्तीय दंड स्वीकार्य नहीं है।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjg1MCMyMDIxIzEjTg==-lX22pKgGSMM=

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