भूमिका:
पटना उच्च न्यायालय में सैयद अबू दोजाना बनाम दिलीप राय (निर्वाचन याचिका संख्या 20/2020) में न्यायमूर्ति सुनील कुमार पंवार द्वारा 5 जुलाई 2024 को सुनाया गया निर्णय, भारतीय लोकतंत्र में चुनावों की पारदर्शिता, प्रत्याशी की ईमानदारी और मतदाताओं के अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
इस याचिका में याचिकाकर्ता अबू दोजाना (राजद प्रत्याशी) ने आरोप लगाया कि निर्वाचित प्रत्याशी दिलीप राय (जदयू) ने वर्ष 2020 में 26, सुरसंड विधानसभा क्षेत्र, जिला सीतामढ़ी से चुनाव लड़ते समय अपने और अपनी पत्नी की अचल संपत्तियों और आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाई थी। साथ ही, मतगणना प्रक्रिया में भी अनियमितता का आरोप लगाया गया था।
याचिकाकर्ता के मुख्य आरोप:
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संपत्ति की जानकारी छिपाना:
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प्रत्याशी दिलीप राय और उनकी पत्नी शकुंतला देवी के नाम पर कई करोड़ की संपत्तियाँ थीं, जिनका उल्लेख नामांकन पत्र के साथ दिए गए फॉर्म 26 में नहीं किया गया।
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इसमें विशेष रूप से 12 से अधिक प्लॉट्स की रजिस्ट्री, जिनमें से कई सीतामढ़ी, बेलसंड, और मुजफ्फरपुर स्थित हैं, का जिक्र किया गया।
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अपराध संबंधी जानकारी का प्रकाशन नहीं:
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प्रत्याशी पर दो आपराधिक मामले लंबित थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के निर्देशानुसार इनकी सूचना प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तीन बार प्रसारित नहीं की गई।
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मतगणना में अनियमितता:
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डाक मतपत्रों की गिनती अंतिम में की गई, जो चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन था।
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लगभग 206 डाक मत बिना कारण बताए रद्द कर दिए गए, जबकि कुल डाक मतों की संख्या 891 थी।
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प्रतिवादी (दिलीप राय) का पक्ष:
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उन्होंने कहा कि:
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सभी संपत्तियों की जानकारी दी गई थी या वे संपत्तियाँ नामांकन से पूर्व ही बेची जा चुकी थीं।
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उनकी आपराधिक जानकारी प्रभात खबर अखबार में तीन बार प्रकाशित हुई थी (25, 30 अक्टूबर व 4 नवम्बर 2020) और काशिश न्यूज़ चैनल पर प्रसारित भी हुई थी।
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मतगणना में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई और जीत का अंतर 8,876 मतों का था, जो डाक मतों से कई गुना अधिक था।
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न्यायालय द्वारा उठाए गए मुख्य प्रश्न:
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क्या संपत्ति की जानकारी छुपाना चुनाव को रद्द करने के लिए पर्याप्त है?
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क्या प्रत्याशी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप आपराधिक जानकारी का प्रचार-प्रसार किया?
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क्या मतगणना में हुई कथित गड़बड़ी चुनाव परिणाम को प्रभावित करती है?
न्यायालय का निष्कर्ष:
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संपत्ति के संबंध में:
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न्यायालय ने पाया कि कुछ प्लॉट्स की स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी, परंतु कुल भूमि क्षेत्र का उल्लेख कर दिया गया था।
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कई संपत्तियाँ पहले ही बेंची जा चुकी थीं या बिक्री के लिए अनुबंधित थीं, जो प्रत्याशी ने दस्तावेज़ी साक्ष्यों द्वारा सिद्ध किया।
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अपराध की जानकारी के बारे में:
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प्रत्याशी ने तीन बार अखबार में विज्ञापन दिया था, जिसे न्यायालय ने पर्याप्त माना।
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“काशिश न्यूज़” चैनल पर प्रसारण का बिल भी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।
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मतगणना प्रक्रिया:
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न्यायालय ने यह माना कि डाक मतों की गिनती अंत में की गई, परंतु इससे चुनाव परिणाम “materially affected” नहीं हुआ।
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जीत का अंतर बहुत अधिक था, इसलिए डाक मतों की संख्या से परिणाम नहीं बदल सकता था।
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निर्णय:
न्यायालय ने सभी तथ्यों, साक्ष्यों और कानूनों की समीक्षा के बाद यह पाया कि याचिकाकर्ता यह सिद्ध नहीं कर सका कि:
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प्रत्याशी द्वारा जानबूझकर संपत्ति या अपराध संबंधी जानकारी छिपाई गई हो।
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या यह कि इन कारणों से चुनाव परिणाम “materially affected” हुआ हो।
अतः निर्वाचन याचिका खारिज कर दी गई।
निष्कर्ष: पारदर्शिता बनाम तकनीकी अपूर्णता
इस मामले में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि केवल तकनीकी रूप से कुछ जानकारियों की कमी, जब तक वे चुनाव परिणाम को “वास्तव में प्रभावित” न करें, तब तक चुनाव को अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता।
इस फैसले से यह सीख मिलती है कि:
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प्रत्याशियों को हर जानकारी पारदर्शिता से देनी चाहिए।
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लेकिन न्यायालय किसी प्रत्याशी की सफलता को सरल त्रुटि के आधार पर नहीं पलटेगा, जब तक यह यह प्रमाणित न हो कि वह त्रुटि मतदाता को गुमराह करने की मंशा से की गई थी और उसने चुनाव परिणाम को प्रभावित किया।