"जिला निवासी न होने के आधार पर परचा रद्द करना असंवैधानिक: पटना हाईकोर्ट ने अफ्रीका राय को दी ज़मीन पर कब्ज़ा बहाल करने की राहत"

“जिला निवासी न होने के आधार पर परचा रद्द करना असंवैधानिक: पटना हाईकोर्ट ने अफ्रीका राय को दी ज़मीन पर कब्ज़ा बहाल करने की राहत”

 

भूमिका

यह मामला अफ्रीका राय उर्फ अशोक राय नामक एक व्यक्ति से संबंधित है, जिन्हें बिहार सरकार द्वारा वर्ष 2000-01 में खगड़िया ज़िले के परबत्ता अंचल में 10 डिसमिल ज़मीन का परचा (भूमि पट्टा) दिया गया था। कई वर्षों बाद स्थानीय अधिकारियों ने यह कहकर उनका परचा रद्द कर दिया कि वे खगड़िया ज़िले के निवासी नहीं हैं, बल्कि भागलपुर ज़िले के निवासी हैं। इस परचा रद्दीकरण को चुनौती देते हुए अफ्रीका राय ने पटना हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जहां से उन्हें बड़ी राहत मिली।


मामले की पृष्ठभूमि

  • भूमि आवंटन (2000-01): अफ्रीका राय को परबत्ता अंचल के रहिमपुर मौजा में 10 डिसमिल ज़मीन का परचा दिया गया था।

  • नामांतरण और रसीद: ज़मीन पर उनका नाम दर्ज हुआ और नियमित किराया रसीद भी उनके नाम पर निर्गत हुई।

  • अवैध कब्ज़ा (2009-10): पड़ोसी (उत्तरदायी संख्या 8, 9, 10) ने कथित रूप से ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया और अफ्रीका राय को बेदखल कर दिया।

  • विभिन्न स्तरों पर अपील:

    • सर्किल अधिकारी को अर्जी → डीसीएलआर, गोगरी को रेफर किया गया।

    • डीसीएलआर ने याचिका यह कहकर खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता स्थानीय निवासी नहीं हैं।

    • प्रथम अपीलीय अधिकारी (एडीएम, खगड़िया) ने आदेश दिया कि ज़मीन पर कब्जा बहाल किया जाए।

    • द्वितीय अपीलीय अधिकारी (जिलाधिकारी, खगड़िया) ने आदेश को पलटते हुए परचा को रद्द कर दिया।

  • अंत में पटना हाईकोर्ट में याचिका (CWJC No. 8684/2018) दायर हुई।


याचिकाकर्ता का तर्क

  • याचिकाकर्ता को वैधानिक रूप से परचा मिला था, जिसे कभी किसी अधिकारी ने अमान्य नहीं ठहराया।

  • परचा के बाद नामांतरण और किराया रसीद जारी होना यह दर्शाता है कि यह कानूनी रूप से मान्य था।

  • याचिकाकर्ता के पिता का नाम 1966 की वोटर लिस्ट में परबत्ता क्षेत्र में दर्ज है, जिससे स्थानीयता प्रमाणित होती है।

  • जिलाधिकारी ने सिर्फ सर्किल अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर आदेश पारित किया, जबकि अपीलीय अधिकारियों के आदेशों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।


राज्य पक्ष का तर्क

राज्य सरकार का एकमात्र तर्क यह था कि याचिकाकर्ता भागलपुर ज़िले का निवासी है, इसलिए उसे खगड़िया ज़िले में परचा नहीं दिया जा सकता।


विधिक प्रावधानों का विश्लेषण

बिहार विशेष वर्ग गृहस्थ किरायेदारी अधिनियम, 1947 (Bihar Privileged Persons Homestead Tenancy Act, 1947):

  1. धारा 2(i): ‘विशेष वर्ग’ वह व्यक्ति होता है जिसके पास एक एकड़ से अधिक भूमि नहीं होती और वह कोई ज़मींदार, महाजन, टेनेंसी होल्डर आदि नहीं होता।

  2. धारा 4: परचा उन्हीं को दिया जा सकता है जो उस भूमि पर कम से कम एक वर्ष से निवास करते हों।

  3. धारा 8: केवल दो ही आधारों पर परचा रद्द किया जा सकता है:

    • भूमि का दुरुपयोग

    • दो वर्षों तक किराया न देना

कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि परचा इस आधार पर रद्द किया जा सकता है कि व्यक्ति उस ज़िले का निवासी नहीं है।


पटना हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकल पीठ ने 22 नवंबर 2022 को दिए गए फैसले में कहा:

  • परचा रद्द करने का आधार असंवैधानिक: केवल जिला निवासी न होने के आधार पर किसी को भूमि अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

  • परचा विधिसम्मत है: याचिकाकर्ता अधिनियम की धारा 4 और 2(i) के तहत ‘विशेष वर्ग’ में आता है, इसलिए उसका परचा वैध है।

  • जिलाधिकारी का आदेश रद्द: जिलाधिकारी, खगड़िया द्वारा 17.01.2018 को पारित आदेश को खारिज कर दिया गया।

  • ज़मीन पर कब्जा बहाल करने का निर्देश: यदि याचिकाकर्ता को ज़मीन से बेदखल किया गया है, तो एक माह के भीतर कब्जा बहाल किया जाए।


न्यायिक टिप्पणियाँ

  • सरकार की इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि ‘जिला निवासी’ का आधार अधिनियम में कहीं नहीं है।

  • विशेष वर्ग को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है और उनके अधिकारों को केवल वैधानिक आधारों पर ही छीना जा सकता है।

  • किसी भी योग्य व्यक्ति को ‘स्थानिकता’ के बहाने से परचा से वंचित करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।


निष्कर्ष

यह फैसला गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के भूमि अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संदेश है। अफ्रीका राय को मिली राहत यह सिद्ध करती है कि सरकार और अधिकारियों द्वारा किए गए मनमाने फैसले अदालत की निगाह में नहीं टिक सकते, जब तक वे विधिक प्रावधानों और न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप न हों।

यह निर्णय विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें अक्सर स्थानीयता या “बाहरी” कहकर बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ज़मीन देने के लिए सिर्फ ‘विशेष वर्ग’ और ‘वास्तविक निवास’ ही मायने रखता है, न कि जिलों की सीमाएँ।

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODY4NCMyMDE4IzEjTg==-HV9igqNfva4=

Abhishek Kumar

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