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“एक टायर बना मुसीबत: बालू ढुलाई में वैध चालान के बावजूद जब्त ट्रक पर पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला”

 

भूमिका

बालू खनन को लेकर बिहार में अक्सर विवाद और कानूनी कार्रवाई की खबरें सामने आती हैं। एक ओर राज्य सरकार अवैध खनन पर लगाम लगाने की कोशिश में है, वहीं दूसरी ओर, कई बार ईमानदार और वैध खनन से जुड़े व्यवसायी भी कार्रवाई की चपेट में आ जाते हैं। डैशरथ यादव का मामला इस द्वंद्व का प्रतीक बनकर उभरा, जहां वैध चालान के बावजूद उनके ट्रक को जब्त कर लिया गया। लेकिन पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में न्यायिक संतुलन दिखाते हुए एक अहम फैसला सुनाया।


मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला Durgawati P.S. Case No. 113 of 2023 से संबंधित है। डैशरथ यादव, उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के निवासी हैं, जो बालू के वैध खनन और परिवहन के काम से जुड़े हुए हैं। उन्होंने 22 अप्रैल 2023 को शाम 5:44 बजे एक वैध चालान प्राप्त किया था, जिसकी वैधता 12 घंटे के लिए थी, यानी 23 अप्रैल 2023 को सुबह 5:44 बजे तक।

इस चालान के तहत उन्हें रोहतास जिले के प्रभु घाट से बालू उठाने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने वहां से समय रहते बालू लोड कर लिया और अपने गंतव्य स्थल करमनाशा के लिए निकल पड़े। लेकिन रास्ते में ट्रक का टायर पंक्चर हो गया, और ईद की छुट्टी के कारण मैकेनिक मिलने में देरी हुई। इस बीच सुबह 9 बजे के आसपास वाहन को ज़ब्त कर लिया गया।


आरोप और प्राथमिकी का आधार

खनन विभाग और पुलिस की ओर से आरोप था कि:

  • डैशरथ यादव चालान की वैधता अवधि समाप्त हो जाने के बाद बालू लेकर जा रहे थे।

  • 9 बजे वाहन के ज़ब्त होने तक चालान का समय समाप्त हो चुका था, जिससे यह अवैध खनन के दायरे में आता है।

प्राथमिकी बिहार खनिज (रियायत, अवैध खनन की रोकथाम, परिवहन और भंडारण) संशोधन नियमावली, 2021 की धारा 56(1) और 56(2) के अंतर्गत दर्ज की गई।


याचिकाकर्ता की दलीलें

डैशरथ यादव की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा:

  • चालान वैध था और वाहन ने समय सीमा के भीतर बालू लोड कर लिया था।

  • रास्ते में तकनीकी बाधा (टायर पंक्चर) आई, जो दुर्भाग्यपूर्ण थी और किसी भी तरह से अवैधता का प्रमाण नहीं है।

  • उन्हें जानबूझकर अवैध खनन करने वाला घोषित करना अनुचित है।

  • जब्त ट्रक को छोड़ने के लिए उन्होंने Cr.P.C की धारा 451 के तहत आवेदन दिया था, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया।

उन्होंने कोर्ट से अपील की कि ट्रक को छोड़ दिया जाए और अगर आवश्यक हो तो compounding fee वे “प्रोटेस्ट के तहत” भरने को तैयार हैं, इस शर्त के साथ कि अगर वह मुकदमे में बरी होते हैं तो राशि ब्याज सहित लौटाई जाए।


खनन विभाग की दलीलें

खनन विभाग की ओर से पेश अधिवक्ता ने यह तर्क दिया:

  • चालान वैधता सिर्फ 12 घंटे के लिए थी।

  • सिर्फ बालू लोड करना ही काफी नहीं, बल्कि चालान की अवधि के भीतर उसे गंतव्य तक पहुँचाना भी अनिवार्य था।

  • 9 बजे ट्रक पकड़ा गया, जो स्पष्ट रूप से तय समय से बाहर था।

  • इसलिए यह माना गया कि अवैध रूप से बालू ढोया जा रहा था।


कोर्ट का विश्लेषण

न्यायमूर्ति सत्यव्रत वर्मा की एकलपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों को गंभीरता से सुना और निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:

  1. डैशरथ यादव के पास वैध चालान था, और उन्होंने समय पर बालू लोड कर लिया था।

  2. ट्रक का पंक्चर होना एक यथार्थ समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

  3. निचली अदालत का ट्रक न छोड़ने का आदेश तर्कहीन और कठोर प्रतीत होता है।

  4. नियमों का उद्देश्य अवैध खनन पर नियंत्रण है, न कि वैध खनन में लगे लोगों को दंडित करना।


कोर्ट का आदेश

पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा 05.07.2023 को पारित आदेश को रद्द (quash) कर दिया और ट्रक को सशर्त रूप से छोड़ने का निर्देश दिया। मुख्य शर्तें निम्नलिखित हैं:

  1. याचिकाकर्ता ₹3,00,000 की व्यक्तिगत बांड और एक समान राशि की सॉल्वेंट गारंटी प्रस्तुत करेंगे।

  2. ट्रक की मालिकाना साबित करने के बाद उसे छोड़ा जाएगा।

  3. ट्रक की चेसिस नंबर, इंजन नंबर और रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज कराकर याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर के साथ रिकॉर्ड पर लिया जाएगा।

  4. ट्रक की स्थिति में कोई परिवर्तन या छेड़छाड़ नहीं की जाएगी

  5. ट्रक पर किसी तीसरे पक्ष का अधिकार नहीं बनाया जाएगा

  6. यदि कोई शर्तों का उल्लंघन होता है, तो संबंधित पक्ष कोर्ट में पुनर्विचार के लिए आवेदन कर सकते हैं।

साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि डैशरथ यादव प्रोटेस्ट के तहत compounding fee जमा कर सकते हैं, जो उनके बरी होने की स्थिति में ब्याज सहित लौटाई जा सकती है।


निष्कर्ष

यह मामला उस जमीनी सच्चाई को सामने लाता है, जिसमें तकनीकी नियमों के अंधानुकरण के कारण एक वैध व्यवसायी को अनावश्यक रूप से परेशान किया गया। न्यायपालिका ने इस केस में न्याय और विवेक का संतुलन स्थापित किया है।

पटना हाई कोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि कानून का उद्देश्य न्यायपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करना है, न कि केवल नियमों के कठोर पालन से लोगों को सज़ा देना।

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM1NDgzOSMyMDIzIzEjTg==-2yQm3ekSWUU=

 

 

Abhishek Kumar

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