यह मामला बिहार राज्य सरकार और याचिकाकर्ता मोहम्मद सदफ कमरान के बीच का है, जिसमें याचिकाकर्ता को स्पेशल सर्वे अमीन (Special Survey Amin) के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके अलावा, सरकार ने उनके वेतन की वसूली करने और उनके खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने का भी आदेश दिया था।
मामले की मुख्य बातें:
1. याचिकाकर्ता की शिकायत और माँगें
याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में एक वृहत रिट याचिका (Writ Petition) दायर की, जिसमें निम्नलिखित राहतें माँगी गईं:
- बर्खास्तगी को रद्द किया जाए – सरकार द्वारा जारी किए गए 15 दिसंबर 2021 के आदेश (पत्र संख्या- 4468) को रद्द किया जाए, जिसमें उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया और वेतन की वसूली तथा प्राथमिकी का आदेश दिया गया।
- वेतन वसूली रोकी जाए – सरकार द्वारा 6 जनवरी 2022 के आदेश (पत्र संख्या- 808) को रद्द किया जाए, जिसके तहत उनसे ₹4,42,032/- (चार लाख बयालीस हजार बत्तीस रुपये) की वसूली का आदेश दिया गया था।
- फर्जी प्रमाणपत्र की निष्पक्ष जाँच की जाए – सरकार द्वारा उनके डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग प्रमाणपत्र को फर्जी बताने की निष्पक्ष और विस्तृत जाँच की जाए।
- फिर से नियुक्ति दी जाए – यदि उनकी योग्यता सही पाई जाती है, तो उन्हें फिर से बहाल किया जाए।
- एफआईआर दर्ज न की जाए – अदालत के निर्णय तक उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही न की जाए।
2. सरकार का पक्ष और कार्रवाई
बिहार सरकार ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने नकली डिप्लोमा प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था, जिससे उन्होंने विभाग को गुमराह किया। इस आधार पर:
- उनकी नौकरी समाप्त कर दी गई।
- उनके वेतन की वसूली का आदेश दिया गया।
- उनके खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने की तैयारी की गई।
हालाँकि, सरकार ने कोई विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही (Departmental Inquiry) शुरू नहीं की।
न्यायालय का निर्णय और निर्देश
पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी. बी. बजंथ्री ने सरकार को फटकार लगाते हुए यह निर्णय सुनाया:
- अनुशासनात्मक जाँच आवश्यक है – बिना विभागीय जांच किए किसी कर्मचारी को बर्खास्त करना गलत है।
- सरकार को जाँच पूरी करनी होगी – न्यायालय ने बिहार सरकार को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर अनुशासनात्मक जाँच (Departmental Inquiry) पूरी करे।
- जाँच तक याचिकाकर्ता की बहाली नहीं होगी – जब तक जाँच पूरी नहीं हो जाती, याचिकाकर्ता को ड्यूटी पर वापस नहीं लिया जाएगा।
- भविष्य की नौकरी पर असर पड़ सकता है – अगर याचिकाकर्ता का प्रमाणपत्र फर्जी साबित होता है, तो यह उनके भविष्य के रोजगार के लिए भी बाधा बन सकता है।
निष्कर्ष
- सरकार बिना जाँच किए किसी को बर्खास्त नहीं कर सकती।
- याचिकाकर्ता को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार है।
- तीन महीने में विभागीय जाँच पूरी करनी होगी।
- अगर प्रमाणपत्र सही पाया जाता है, तो बहाली की संभावना है।
यह मामला सरकारी नौकरी में फर्जी प्रमाणपत्रों और सरकारी विभागों की जाँच प्रक्रियाओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTUyMiMyMDIyIzEjTg==-VFWKdujC1tY=