यह मामला पटना उच्च न्यायालय में राम दत्ता प्रसाद शर्मा बनाम बिहार राज्य सरकार का है। इसमें याचिकाकर्ता (राम दत्ता प्रसाद शर्मा) पर विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही चलाई गई थी, जिसमें उन पर नियमों का उल्लंघन करके अधिक भुगतान करने, सुरक्षा राशि जारी करने तथा अन्य वित्तीय अनियमितताओं के आरोप थे।
मामले की मुख्य बातें:
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विभागीय कार्रवाई:
याचिकाकर्ता पर यह आरोप था कि उन्होंने सरकारी नियमों का उल्लंघन कर अनुचित भुगतान किया। विभाग ने जांच कर 30 मई 1995 को एक रिपोर्ट तैयार की, लेकिन यह रिपोर्ट याचिकाकर्ता को नहीं सौंपी गई। इसके बावजूद, 13 फरवरी 1998 को उनके खिलाफ दंडादेश पारित कर दिया गया, जिसमें तीन वेतनवृद्धियां रोक दी गईं और ₹1.06 लाख की वसूली का आदेश दिया गया। -
पहली अपील और पुनः दंडादेश:
याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती दी, और मामला पुनः संबंधित विभाग को भेजा गया ताकि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। लेकिन विभाग ने पहले जैसे ही दंडादेश दोबारा पारित कर दिया। -
सरकारी अपील में असफलता:
याचिकाकर्ता ने सरकार के समक्ष एक अभ्यावेदन दिया, जिसे सरकार ने अपील मानकर खारिज कर दिया। यह निर्णय 9 अगस्त 2000 को पारित हुआ और याचिकाकर्ता को 4 जुलाई 2002 को सूचित किया गया। -
मुख्य दलीलें और न्यायालय का निर्णय:
- याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विभागीय और अपीलीय प्राधिकारी ने उनकी आपत्तियों पर विचार नहीं किया।
- न्यायालय ने जांच रिपोर्ट और साक्ष्यों की समीक्षा करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पर्याप्त रूप से सिद्ध हो चुके हैं।
- चूंकि विभागीय कार्यवाही में सभी औपचारिकताओं का पालन किया गया था, इसलिए न्यायालय ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और अपील को खारिज कर दिया।
निष्कर्ष:
इस मामले में न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई उचित थी और उन्होंने अपने बचाव में उचित अपील दाखिल नहीं की। इसलिए न्यायालय ने उनकी अपील को अस्वीकार कर दिया और मूल दंडादेश को बरकरार रखा।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxNDU4IzIwMTgjMSNO-DaUjLJBWcGI=