यह मामला प्रवेश सिंह बनाम भारत सरकार (रक्षा विभाग) से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (Annual Performance Assessment Report – APAR) में सुधार और पदोन्नति की माँग की थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि 2014-15 की उनकी APAR रिपोर्ट में गलत टिप्पणियाँ की गईं, जिसके कारण उनकी उप-कमांडेंट (Deputy Commandant) के पद पर पदोन्नति (Promotion) प्रभावित हुई।
मामले की पृष्ठभूमि
प्रवेश सिंह सीमा सुरक्षा बल (BSF) में सहायक कमांडेंट (Assistant Commandant) के पद पर कार्यरत थे।
- 30 अप्रैल 2015 को 2014-15 की APAR रिपोर्ट तैयार की गई।
- इस रिपोर्ट के कॉलम 10 में टिप्पणी की गई कि याचिकाकर्ता स्वतंत्र निर्णय लेते हैं और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह नहीं लेते, हालांकि उनकी व्यावसायिक योग्यता अच्छी है।
- 22 नवंबर 2015 को याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया गया कि क्यों इन टिप्पणियों को नकारात्मक टिप्पणी (Adverse Remarks) न माना जाए।
- याचिकाकर्ता ने 11 जनवरी 2016 को अपना उत्तर प्रस्तुत किया, लेकिन इसे 05 जून 2016 को खारिज कर दिया गया।
इस नकारात्मक टिप्पणी के कारण 2018 और 2019 में याचिकाकर्ता को उप-कमांडेंट पद पर पदोन्नति नहीं मिली।
याचिकाकर्ता के मुख्य तर्क
- APAR रिपोर्ट में गलत टिप्पणियाँ – 2014-15 की रिपोर्ट में कुछ टिप्पणियाँ गलत तरीके से शामिल की गईं, जिससे उनका करियर प्रभावित हुआ।
- पदोन्नति में बाधा – 2018 और 2019 में उप-कमांडेंट (Deputy Commandant) पद पर उनकी पदोन्नति रोक दी गई, जबकि उनकी बाकी रिपोर्टें अच्छी थीं।
- मनमानी तरीके से निर्णय – उन्होंने 2016 में APAR रिपोर्ट में किए गए बदलाव को अनुचित बताया और कहा कि बिना उचित मूल्यांकन के नकारात्मक टिप्पणी जोड़ दी गई।
- अन्य अधिकारियों से भेदभाव – उन्होंने दावा किया कि दूसरे अधिकारियों को पदोन्नति दी गई, लेकिन उन्हें जानबूझकर रोका गया।
सरकार (BSF) का पक्ष
- APAR में टिप्पणियाँ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित मूल्यांकन के बाद दी गईं – याचिकाकर्ता स्वतंत्र निर्णय लेते थे और वरिष्ठ अधिकारियों से बिना सलाह लिए कार्य करते थे, जिससे उनकी कार्यशैली पर सवाल उठे।
- कारण बताओ नोटिस के बाद निर्णय लिया गया –
- उन्हें 22 नवंबर 2015 को नोटिस दिया गया।
- 11 जनवरी 2016 को उनका उत्तर मिला।
- 05 जून 2016 को वरिष्ठ अधिकारियों ने उत्तर को अस्वीकार कर दिया।
- 2016 में लिए गए निर्णय को याचिकाकर्ता ने कभी चुनौती नहीं दी –
- अगर उन्हें APAR रिपोर्ट में आए बदलाव से आपत्ति थी, तो उन्हें 2016 में ही कोर्ट जाना चाहिए था।
- चार साल बाद 2020 में याचिका दायर करना अनुचित है।
- पदोन्नति योग्यता के आधार पर दी जाती है –
- पदोन्नति केवल APAR रिपोर्ट के आधार पर ही नहीं, बल्कि पूरी कार्यशैली, अनुभव और वरिष्ठ अधिकारियों के फीडबैक के आधार पर मिलती है।
न्यायालय का निर्णय
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याचिका खारिज की गई –
- कोर्ट ने कहा कि APAR रिपोर्ट में बदलाव 2016 में हुआ था और इसे कभी चुनौती नहीं दी गई।
- चार साल बाद इस मुद्दे को उठाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
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2016 के निर्णय को चुनौती दिए बिना पदोन्नति की माँग स्वीकार्य नहीं –
- अगर याचिकाकर्ता APAR में बदलाव से असहमत थे, तो उन्हें 2016 में इसे चुनौती देनी चाहिए थी।
- जब 2016 का आदेश वैध है, तो उसके आधार पर की गई पदोन्नति अस्वीकृति भी वैध मानी जाएगी।
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कोर्ट ने BSF के निर्णय को सही ठहराया –
- पदोन्नति कोई मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है।
- यह योग्यता, अनुशासन और वरिष्ठ अधिकारियों के मूल्यांकन पर निर्भर करता है।
इस फैसले के प्रभाव
- सरकारी सेवाओं में APAR की महत्ता बढ़ेगी –
- अधिकारियों को APAR में दी गई टिप्पणियों को गंभीरता से लेना होगा।
- अगर कोई APAR से असंतुष्ट है, तो उसे तत्काल कानूनी कदम उठाने होंगे।
- पदोन्नति विवादों को समय पर निपटाने की आवश्यकता –
- इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि लंबे समय तक विवाद टालने से न्यायालय राहत नहीं देगा।
- BSF और अन्य अर्धसैनिक बलों के लिए स्पष्ट संदेश –
- APAR रिपोर्ट के आधार पर पदोन्नति के मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप करने से बचेगा।
निष्कर्ष
पटना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि APAR रिपोर्ट में दी गई टिप्पणियाँ पदोन्नति को प्रभावित कर सकती हैं और यदि कोई अधिकारी इससे असंतुष्ट है, तो उसे तुरंत कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी। चार साल बाद याचिका दायर करना अनुचित माना गया और इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।
इस फैसले से BSF और अन्य सरकारी विभागों में APAR रिपोर्ट की विश्वसनीयता को और मजबूती मिलेगी, जिससे योग्यता और अनुशासन के आधार पर पदोन्नति की प्रक्रिया निष्पक्ष बनी रहेगी।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjYxMCMyMDIwIzEjTg==-840fclR1qVs=