परिचय
यह मामला बिहार पुलिस कांस्टेबल विजय कुमार @ विजय कुमार सिंह से संबंधित है, जिन्हें कथित रूप से झूठी जन्मतिथि प्रस्तुत करने और गलत नाम लिखने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने पटना हाई कोर्ट में यह याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपने निलंबन और बर्खास्तगी को रद्द करने और सेवा में पुनः बहाली की मांग की थी।
पटना उच्च न्यायालय ने इस मामले में यह पाया कि जांच प्रक्रिया में कई तकनीकी खामियां थीं और उचित दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए। इसलिए, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को पुनः बहाल करने का आदेश दिया लेकिन मध्यवर्ती अवधि (13.09.2013 से बहाली की तिथि तक) के लिए कोई वित्तीय लाभ नहीं देने का फैसला किया।
मामले की पृष्ठभूमि
1. याचिकाकर्ता की सेवा और विवाद की उत्पत्ति
- विजय कुमार को 7 अगस्त 1989 को होम गार्ड के रूप में नियुक्त किया गया था।
- उन्होंने अपनी जन्मतिथि 20 अक्टूबर 1968 दर्ज कराई थी।
- बाद में, बिहार पुलिस में कांस्टेबल की भर्ती निकली, जिसके लिए उन्होंने आवेदन किया।
- इस आवेदन में उन्होंने 02 जून 1975 जन्मतिथि दी, जो उनके मैट्रिक प्रमाणपत्र में अंकित थी।
- उनका चयन 09 मई 2008 को हुआ और दस्तावेजों की जांच 04 जुलाई 2008 को पूरी हुई।
- लेकिन 18 जुलाई 2008 को एक एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें आरोप था कि उन्होंने दो अलग-अलग जन्मतिथियाँ प्रस्तुत की हैं।
- इस आरोप के आधार पर 4 नवंबर 2011 को उन्हें निलंबित कर दिया गया और विभागीय जांच शुरू की गई।
2. विभागीय जांच और बर्खास्तगी
- 13 नवंबर 2011 को उन्हें चार्जशीट जारी की गई।
- उन्होंने 25 जनवरी 2012 को अपना जवाब दाखिल किया।
- 11 जुलाई 2013 को जांच अधिकारी ने उन्हें दोषी ठहराया और यह माना कि उन्होंने जानबूझकर दो जन्मतिथि प्रस्तुत की हैं।
- इसके बाद, 5 अगस्त 2013 को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ और
- 13 सितंबर 2013 को उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
- उनकी अपील भी 27 जून 2014 को खारिज कर दी गई।
3. याचिकाकर्ता के तर्क
विजय कुमार के वकील अरुण कुमार ने कोर्ट में तर्क दिया कि:
- होम गार्ड में नियुक्ति के लिए शैक्षणिक योग्यता सिर्फ 8वीं पास थी, इसलिए उस समय उन्होंने स्थानीय स्कूल प्रमाणपत्र के आधार पर जन्मतिथि दी थी (20.10.1968)।
- बाद में, 25 नवंबर 1992 को उन्होंने मैट्रिक पास किया, जिसमें उनकी जन्मतिथि 02.06.1975 दर्ज थी।
- कांस्टेबल की नौकरी के लिए मैट्रिक प्रमाणपत्र आवश्यक था, इसलिए उन्होंने आवेदन में वही जन्मतिथि दी।
- इसमें कोई गलत इरादा नहीं था, बल्कि दोनों नौकरियों की पात्रता अलग-अलग होने के कारण यह अंतर आया।
- एफआईआर में भी वह निर्दोष साबित हुए और 04 नवंबर 2015 को उन्हें बरी कर दिया गया।
- विभागीय जांच में महत्वपूर्ण दस्तावेज़ (ट्रांसफर सर्टिफिकेट, मैट्रिक प्रमाणपत्र, आवेदन पत्र) का सही से परीक्षण नहीं किया गया।
- इसलिए, बर्खास्तगी का आदेश अवैध और पक्षपातपूर्ण है।
4. सरकार (उत्तरदाता) के तर्क
सरकार के वकील अशोक कुमार दुबे (AC to AAG-11) ने कोर्ट में कहा कि:
- याचिकाकर्ता ने जानबूझकर दो जन्मतिथियाँ प्रस्तुत की थीं –
- 20.10.1968 (होम गार्ड के लिए)
- 02.06.1975 (कांस्टेबल के लिए)
- उन्होंने आवेदन पत्र में अपना नाम भी गलत लिखा था, जो उनके मैट्रिक प्रमाणपत्र से मेल नहीं खाता।
- विभागीय जांच पूरी तरह कानूनी थी और सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया।
- याचिकाकर्ता ने भर्ती प्रक्रिया के दौरान चयन समिति को गुमराह किया था, इसलिए बर्खास्तगी उचित थी।
अदालत का निर्णय
1. विभागीय जांच में त्रुटियाँ
कोर्ट ने पाया कि:
- विभागीय जांच में ट्रांसफर सर्टिफिकेट, मैट्रिक प्रमाणपत्र और आवेदन पत्र को उचित रूप से विश्लेषण नहीं किया गया।
- चार्जशीट में इन दस्तावेजों को महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया था।
- कोई भी गवाह इन दस्तावेजों की सत्यता की पुष्टि करने के लिए पूछताछ या जिरह में शामिल नहीं किया गया।
2. क्या याचिकाकर्ता ने जानबूझकर गलत जानकारी दी?
- याचिकाकर्ता का मैट्रिक प्रमाणपत्र (02.06.1975) ही उनकी आधिकारिक जन्मतिथि होनी चाहिए थी।
- अगर गलत जन्मतिथि दी गई थी, तो चयन समिति को शुरू में ही उनकी भर्ती को रद्द कर देना चाहिए था।
- चयन प्रक्रिया में हुई प्रशासनिक गलतियों के लिए याचिकाकर्ता को पूरी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
3. सेवा में पुनः बहाली
- तकनीकी आधार पर विभागीय जांच अवैध घोषित की गई और बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया गया।
- याचिकाकर्ता को कांस्टेबल पद पर बहाल करने का आदेश दिया गया।
- हालांकि, 13.09.2013 (बर्खास्तगी की तिथि) से लेकर बहाली की तिथि तक कोई वेतन नहीं मिलेगा।
- लेकिन उन्हें सभी सेवा लाभ (वेतन वृद्धि, वरिष्ठता, पेंशन आदि) उनके जूनियर कर्मचारियों के समान दिए जाएंगे।
4. अंतिम आदेश
- याचिका स्वीकार की गई।
- बर्खास्तगी रद्द की गई और पुनः बहाली का आदेश दिया गया।
- कोई वेतन लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन अन्य सेवा लाभ मिलेंगे।
- सरकार को 2 महीने के भीतर आदेश लागू करना होगा।
निष्कर्ष
इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने यह माना कि विभागीय जांच त्रुटिपूर्ण थी, और याचिकाकर्ता को नौकरी से निकालने का कोई ठोस आधार नहीं था। इसलिए, उन्हें पुनः बहाल करने का आदेश दिया गया। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भर्ती प्रक्रिया में हुई प्रशासनिक गलतियों के लिए सरकार भी ज़िम्मेदार थी, और यह निर्णय याचिकाकर्ता को राहत देने के लिए दिया गया, न कि उनकी गलती को सही ठहराने के लिए।
इस फैसले से यह साफ़ होता है कि कोई भी विभागीय जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, और बिना ठोस साक्ष्य के किसी कर्मचारी को दंडित नहीं किया जा सकता।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTczOTgjMjAxNCMxI04=-mRCmU510–ak1–9s=