"सरकारी ठेके और भुगतान विवाद: न्यायालय का अहम निर्णय"

“सरकारी ठेके और भुगतान विवाद: न्यायालय का अहम निर्णय”

यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर सिविल रिट याचिका संख्या 6520/2021 से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता मि. जमुरत लाल अब्दुल राशिद टेंट ठेकेदार और उनके मालिक हारून राशिद द्वारा बिहार सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता एक टेंट सप्लाई करने वाली फर्म है, जिसने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान सुपौल जिले में चुनावी कार्यों के लिए टेंट, शमीयाना, पाइप पंडाल, कुर्सियां, टेबल, कालीन आदि की आपूर्ति की थी। इसके लिए एक निविदा निकाली गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को सबसे कम दर वाले ठेकेदार के रूप में चुना गया था और उन्हें कार्यादेश दिया गया था।

विवाद का मूल कारण

चुनावी कार्यों के लिए किए गए सप्लाई और सेवाओं के बदले याचिकाकर्ता ने सरकार से ₹1,99,16,043.57 की राशि की मांग की थी। हालांकि, सरकार द्वारा गठित पाँच-सदस्यीय समिति ने केवल ₹20,66,161.00 की राशि को ही स्वीकृत किया और बाकी ₹1,78,49,882.00 की कटौती कर दी। याचिकाकर्ता ने इस कटौती को अवैध बताते हुए अदालत में याचिका दायर की थी और शेष राशि के भुगतान की मांग की थी।

सरकार का पक्ष

सरकारी पक्ष के अनुसार, इस मामले में कई अन्य ठेकेदारों ने भी अपने बिल प्रस्तुत किए थे, जिनकी राशि याचिकाकर्ता के बिल की तुलना में काफी कम थी। इसीलिए, जिला चुनाव अधिकारी के आदेश पर एक समिति गठित की गई, जिसने सभी प्रस्तुत किए गए बिलों की जांच की और आवश्यकतानुसार कटौती की। समिति की रिपोर्ट के आधार पर केवल ₹20,66,161.00 की राशि को ही वैध पाया गया।

न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान यह पाया कि यह विवाद पूरी तरह से एक संविदात्मक (contractual) मामला है और इसमें सरकार द्वारा लिए गए निर्णय में किसी भी प्रकार की मनमानी या भेदभाव का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के विवादों को हल करने के लिए संविदा कानून के अंतर्गत अन्य कानूनी उपाय उपलब्ध हैं, और यह मामला उच्च न्यायालय की संवैधानिक अधिकारिता (Article 226) के अंतर्गत आने योग्य नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियां

  1. समिति की रिपोर्ट को कोई न्यायिक या अर्ध-न्यायिक निर्णय नहीं माना जा सकता, इसलिए इसमें सुनवाई का अवसर देने की कोई बाध्यता नहीं थी।
  2. जब कोई मामला केवल पैसे की मांग से संबंधित हो और उसमें जटिल तथ्यात्मक विवाद शामिल हो, तो इसे सामान्य रूप से अनुबंध कानून के तहत अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों से हल किया जाना चाहिए।
  3. उच्चतम न्यायालय के कई निर्णयों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि अनुबंध आधारित मामलों में रिट याचिका दायर करना तब तक उचित नहीं होता जब तक कि इसमें सार्वजनिक कानून का कोई महत्वपूर्ण पहलू न जुड़ा हो।
  4. याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी गई कि वह अपने दावे को उचित सिविल कोर्ट या अन्य प्राधिकृत मंच पर ले जा सकता है।

निष्कर्ष

न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपनी राशि की वसूली के लिए उपयुक्त मंच पर दावा प्रस्तुत करे।

इस निर्णय का प्रभाव

  • यह निर्णय सरकारी ठेकेदारों के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है कि अनुबंध आधारित विवादों को हल करने के लिए संवैधानिक अदालतों की शरण में जाने से पहले अन्य कानूनी उपायों का उपयोग करना चाहिए।
  • इस मामले में उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारी भुगतान से संबंधित मामलों को रिट याचिका के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसमें मौलिक अधिकारों या सार्वजनिक कानून का मुद्दा न हो।
  • ठेकेदारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अनुबंध में विवाद निवारण तंत्र (Dispute Resolution Mechanism) स्पष्ट रूप से उल्लिखित हो, ताकि भविष्य में इस प्रकार की कानूनी समस्याओं से बचा जा सके।

सारांश

पटना उच्च न्यायालय ने इस मामले में सरकारी समिति की रिपोर्ट को वैध माना और याचिकाकर्ता की मांग को खारिज कर दिया। यह फैसला सरकारी भुगतान विवादों को कानूनी रूप से हल करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है और सरकारी अनुबंधों से जुड़े विवादों के लिए अनुबंध कानून के तहत उपलब्ध उपायों को अपनाने की सलाह देता है।

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjUyMCMyMDIxIzEjTg==-f0YBt2–ak1–qUic=

Abhishek Kumar

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