भूमिका:
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दाखिल सिविल रिट न्यायालयिक याचिका संख्या 2772/2022 से संबंधित है। याचिकाकर्ता सुदामा शर्मा हैं, जिनकी उम्र 60 वर्ष है और वे बिहार के औरंगाबाद जिले के खुडवां गाँव के निवासी हैं। उन्होंने राज्य सरकार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग (प्रमुख सचिव) और अन्य अधिकारियों के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की दुकान का लाइसेंस रद्द किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता का PDS लाइसेंस 29 जनवरी 2021 को अनुमंडल पदाधिकारी, दाउदनगर (औरंगाबाद) द्वारा रद्द कर दिया गया था। इस आदेश को 23 दिसंबर 2021 को अपीलीय प्राधिकारी द्वारा बरकरार रखा गया था। याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्होंने कहा कि उनका लाइसेंस बिना किसी ठोस कारण के रद्द किया गया और उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया।
मामले की सुनवाई:
मामले की सुनवाई 9 मार्च 2022 को हुई, जिसमें याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अशोक कुमार ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता उपेंद्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे।
न्यायालय का अवलोकन:
1. लाइसेंस रद्द करने का अस्पष्ट आधार
कोर्ट ने पाया कि लाइसेंस रद्द करने के आदेश में केवल PDS दुकानदार की सामान्य जिम्मेदारियों का उल्लेख किया गया था, लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ विशेष आरोप स्पष्ट रूप से नहीं बताए गए थे। आदेश में कोई ठोस कारण नहीं दिया गया था कि आखिर किन आधारों पर लाइसेंस रद्द किया गया।
2. अपीलीय प्राधिकरण का लचर निर्णय
कोर्ट ने यह भी पाया कि अपीलीय प्राधिकरण ने मूल आदेश को बरकरार रखते समय कोई स्वतंत्र जांच नहीं की। उन्होंने केवल अनुमंडल पदाधिकारी के आदेश की पुष्टि कर दी, बिना यह बताए कि लाइसेंस रद्द करने का कारण क्या था।
3. प्रशासन की अनियमितता एवं भ्रामक रिपोर्ट
मामले में परिशिष्ट-5 (Annexure-5) नामक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज सामने आया, जो अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी, ओबरा, औरंगाबाद को भेजा गया था। इस पत्र में अनुमंडल पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि दुकान की जांच रिपोर्ट 06 जनवरी 2021 को दी गई थी, लेकिन यह अपूर्ण और भ्रामक थी। उन्होंने आगे कहा कि इस रिपोर्ट को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता और रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया।
कोर्ट ने यह पाया कि यदि 6 जनवरी 2021 की रिपोर्ट को खुद प्रशासन ने अविश्वसनीय माना, तो फिर किस आधार पर लाइसेंस रद्द किया गया? इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि याचिकाकर्ता को सफाई देने का सही अवसर नहीं दिया गया और पूरी प्रक्रिया न्यायसंगत नहीं थी।
4. नोटिस में अनियमितता
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लाइसेंस रद्द करने के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि किस रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को नोटिस दिया गया था। यदि 6 जनवरी 2021 की रिपोर्ट को अविश्वसनीय माना गया, तो फिर कोई वैध नोटिस नहीं दिया गया होगा।
5. कानून के नजरिए से आदेश अवैध
न्यायालय ने कहा कि:
- अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा जारी आदेश में पर्याप्त कारणों का अभाव था।
- अपीलीय प्राधिकारी ने तर्कसंगत तरीके से समीक्षा नहीं की।
- जांच रिपोर्ट अस्पष्ट और भ्रामक थी, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
- याचिकाकर्ता को सही प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं मिला।
कोर्ट का फैसला:
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, पटना उच्च न्यायालय ने:
- लाइसेंस रद्द करने का आदेश निरस्त कर दिया।
- अपीलीय प्राधिकारी का आदेश भी रद्द कर दिया।
- मामला अनुमंडल पदाधिकारी को पुनः विचार करने के लिए भेज दिया।
- याचिकाकर्ता को 30 दिनों के भीतर इस आदेश की प्रति अनुमंडल पदाधिकारी को सौंपने का निर्देश दिया।
- अनुमंडल पदाधिकारी को याचिकाकर्ता को एक नया नोटिस जारी करने और 60 दिनों के भीतर नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया।
न्यायालय का निष्कर्ष:
- न्यायालय ने इस मामले में सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और अनियमितता को उजागर किया।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी नागरिक के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाया जाता है, तो उसे उचित अवसर दिया जाना चाहिए और निर्णय का कारण स्पष्ट होना चाहिए।
- सरकारी आदेशों को कानूनी कसौटी पर खरा उतरना चाहिए, न कि केवल प्रशासनिक औपचारिकता पूरी करने के लिए दिए जाने चाहिए।
मामले का महत्व:
- यह फैसला दर्शाता है कि प्रशासनिक आदेश बिना स्पष्ट कारणों के नहीं दिए जा सकते।
- यह उन PDS दुकानदारों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके लाइसेंस बिना पर्याप्त कारण बताए रद्द किए जाते हैं।
- यह मामले दर्शाता है कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
- यह सरकार को यह सीख देता है कि लाइसेंस रद्द करने जैसे मामलों में पूरी पारदर्शिता बरती जानी चाहिए।
निष्कर्ष:
यह मामला प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और विधिक मापदंडों के पालन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। कोर्ट का फैसला यह स्पष्ट करता है कि कोई भी निर्णय जो किसी नागरिक को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, उसे यथोचित कारणों और प्रक्रियात्मक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। यह फैसला प्रशासनिक अनुचितता को चुनौती देने वाले अन्य मामलों के लिए भी मिसाल बन सकता है।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjc3MiMyMDIyIzEjTg==-Iqtr626qEbI=