यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दाखिल एक आपराधिक अपील (DB) संख्या 269/1994 से संबंधित है, जिसमें अभियुक्त प्रदीप कुमार ने सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती दी थी।
मामले का सारांश:
घटना:
12 अगस्त 1992 को, पन्ना लाल साह (पीड़िता के पति) जब दोपहर 3 बजे अपनी दुकान से घर लौटे, तो उन्होंने अपने भतीजे प्रदीप कुमार और एक अज्ञात व्यक्ति को घर से बाहर निकलते देखा। जब उन्होंने घर में प्रवेश किया, तो उनकी बेटी सुनीता ने बताया कि उनकी माँ (रामसवारी देवी) प्रदीप कुमार और उसके दोस्त से घर के एक कमरे में बात कर रही थीं। जब पन्ना लाल कमरे में गए और बल्ब जलाया, तो उन्होंने अपनी पत्नी की खून से लथपथ लाश पलंग के नीचे पाई। घर के अंदर उनके बेटे की अलमारी टूटी हुई थी और गहने गायब थे।
प्राथमिकी और जांच:
घटना की सूचना पुलिस को दी गई और FIR दर्ज हुई। मामले की जांच के दौरान, अभियोजन पक्ष ने 10 गवाहों को पेश किया, जिनमें मुख्य गवाह पीड़िता की बेटी सुनीता और पति पन्ना लाल थे। पुलिस ने यह भी पाया कि हत्या धारदार हथियार से की गई थी और आरोपी को मोटरसाइकिल पर घटनास्थल से जाते हुए देखा गया था।
साक्ष्य और गवाही:
- मुख्य गवाह: सुनीता (PW-7) और पन्ना लाल (PW-8) ने अभियुक्त प्रदीप कुमार को हत्या से पहले और बाद में घर में मौजूद देखा था।
- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट: डॉक्टर ने बताया कि गले और शरीर पर धारदार हथियार से कई वार किए गए थे।
- अन्य गवाह: कुछ लोगों ने देखा कि आरोपी खून से सने कपड़े धो रहे थे।
- जांच में खामी: अभियोजन ने खून से सने चप्पलों और अन्य सबूतों को फॉरेंसिक लैब नहीं भेजा।
न्यायालय का निर्णय:
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सत्र न्यायालय (1994):
- प्रदीप कुमार को IPC की धारा 302/34 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
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उच्च न्यायालय (2022):
- कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत प्रस्तुत करने में असफल रहा।
- मेडिकल रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही में विरोधाभास था।
- घटना स्थल से मिले खून के नमूने का परीक्षण नहीं किया गया।
- अभियोजन द्वारा चोरी का मामला साबित नहीं किया जा सका।
फैसला:
पटना उच्च न्यायालय ने 3 मार्च 2022 को यह कहते हुए सत्र न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे अपराध साबित नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप, अभियुक्त प्रदीप कुमार को बरी कर दिया गया।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों (circumstantial evidence) पर आधारित था।
- न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के “Sharad Birdhichand Sarda vs State of Maharashtra” (AIR 1984 SC 1622) में दिए गए पांच नियमों के आधार पर साक्ष्यों की समीक्षा की।
- अभियोजन की कमजोरियों और जांच की खामियों के कारण आरोपी को दोषमुक्त कर दिया गया।
निष्कर्ष:
यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों की सटीकता और निष्पक्ष जांच के महत्व को दर्शाता है। अभियोजन पक्ष का मामला मजबूत न होने के कारण आरोपी को संदेह का लाभ मिला और अंततः बरी कर दिया गया।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMyNjkjMTk5NCMxI04=-INY–ak1–3axs3H0=