"बिना जांच बर्खास्तगी अवैध: पटना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला"

“बिना जांच बर्खास्तगी अवैध: पटना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला”

 

परिचय

यह मामला लाल बाबू मांझी बनाम बिहार सरकार से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता (लाल बाबू मांझी) को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने शराब के नशे में सार्वजनिक रूप से हंगामा किया और शांति भंग की। इस कारण बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2018 के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया और अनुशासनात्मक कार्रवाई के बिना ही उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया

पटना उच्च न्यायालय ने इस फैसले में कहा कि बर्खास्तगी के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाता है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को फिर से बहाल किया जाए और अनुशासनात्मक कार्यवाही नियमानुसार की जाए


मामले की पृष्ठभूमि

  1. याचिकाकर्ता की नियुक्ति और सेवा विवरण

    • लाल बाबू मांझी को 22 जनवरी 1990 को बिहार पुलिस में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किया गया था।
    • अपनी सेवा के दौरान उन्होंने प्रमोशन प्राप्त कर असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (ASI) के पद तक का सफर तय किया।
  2. आरोप और गिरफ्तारी

    • 16 फरवरी 2020 को मुफस्सिल (महादेवा आउट पोस्ट), सीवान पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ।
    • उन पर आरोप था कि उन्होंने शराब के नशे में हंगामा किया और जनता के लिए परेशानी पैदा की
    • उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अगले दिन 17 फरवरी 2020 को जमानत पर रिहा कर दिया गया
  3. अनुशासनात्मक कार्रवाई और बर्खास्तगी

    • 17 फरवरी 2020 को विभाग ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया।
    • 24 फरवरी 2020 को बिना कोई औपचारिक जांच किए उन्हें पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया
    • 8 जून 2020 को उनकी अपील भी खारिज कर दी गई।
  4. न्यायालय में चुनौती

    • लाल बाबू मांझी ने इस बर्खास्तगी के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और कहा कि उन्हें उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया
    • उन्होंने दलील दी कि बिना जांच के उनकी बर्खास्तगी असंवैधानिक है और अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत नियमों का उल्लंघन किया गया है

याचिकाकर्ता (लाल बाबू मांझी) की दलीलें

  1. संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन – अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत बर्खास्तगी से पहले उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही अनिवार्य है, लेकिन विभाग ने ऐसा नहीं किया।
  2. बिना जांच किए सेवा समाप्त करना अवैध – उन्हें बर्खास्त करने से पहले कोई औपचारिक जांच नहीं की गई, न ही उन्हें बचाव का कोई अवसर दिया गया।
  3. अपील में भी न्याय नहीं मिला – उन्होंने अपील दायर की थी, लेकिन बिना ठोस आधार के खारिज कर दी गई
  4. बिना साक्ष्य के बर्खास्तगी – विभाग ने यह नहीं बताया कि किस आधार पर उन्हें नौकरी से निकाला गया, केवल एक आरोप के आधार पर इतनी बड़ी कार्रवाई कर दी गई।

राज्य सरकार (प्रतिवादी) की दलीलें

  1. पुलिसकर्मी के लिए अनुशासन जरूरी – पुलिसकर्मी का शराब पीकर सार्वजनिक रूप से हंगामा करना अनुशासनहीनता है, इसलिए बर्खास्तगी जायज थी
  2. बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2018 का उल्लंघन – बिहार में शराबबंदी लागू है, ऐसे में पुलिसकर्मी का शराब पीना गंभीर अपराध है।
  3. अनुच्छेद 311(2)(b) लागू होता है – विभाग ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत अगर जांच करना संभव न हो, तो बिना जांच के भी बर्खास्तगी की जा सकती है

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय

  1. बर्खास्तगी आदेश रद्द – कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत बिना जांच किए बर्खास्तगी अवैध है
  2. याचिकाकर्ता की बहाली – याचिकाकर्ता को फिर से सेवा में बहाल किया जाए और आवश्यक हो तो विभागीय जांच की जाए
  3. बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम लागू होता है, लेकिन अनुशासनात्मक प्रक्रिया का पालन होना चाहिए – अगर कोई पुलिसकर्मी शराब पीकर हंगामा करता है, तो यह अनुशासनहीनता है, लेकिन फिर भी उसे सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए
  4. सरकार को अनुशासनात्मक प्रक्रिया फिर से शुरू करने का निर्देश – सरकार तीन महीने के भीतर उचित जांच प्रक्रिया पूरी करे और तय करे कि याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए या नहीं।

महत्वपूर्ण कानूनी संदर्भ

  1. अनुच्छेद 311(2) का सही उपयोग

    • यदि कोई सरकारी कर्मचारी अनुशासनहीनता में दोषी पाया जाता है, तो बर्खास्तगी से पहले उचित जांच आवश्यक है।
    • अनुच्छेद 311(2)(b) का इस्तेमाल केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जा सकता है, लेकिन इसमें ठोस कारण दर्ज किए जाने चाहिए
  2. ECIL बनाम बी. करूणाकर (1993) 4 SCC 727

    • यदि बर्खास्तगी को तकनीकी आधार पर रद्द किया जाता है, तो सरकार को नए सिरे से जांच करने का अधिकार है
  3. Coal India Ltd बनाम अनंता साहा (2011) 5 SCC 142

    • अगर बिना उचित जांच के कोई कर्मचारी बर्खास्त किया जाता है, तो उसे सेवा में बहाल किया जाएगा या फिर नए सिरे से जांच होगी

निष्कर्ष

  1. सरकारी नौकरी में बर्खास्तगी के लिए उचित प्रक्रिया का पालन जरूरी – कोई भी सरकारी कर्मचारी बिना जांच के बर्खास्त नहीं किया जा सकता
  2. अनुच्छेद 311(2)(b) का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता – यह नियम केवल असाधारण परिस्थितियों में लागू होता है, लेकिन इसका उपयोग मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता
  3. याचिकाकर्ता की सेवा बहाल होगी, लेकिन अनुशासनात्मक जांच का अधिकार विभाग को रहेगा – कोर्ट ने यह नहीं कहा कि याचिकाकर्ता निर्दोष हैं, लेकिन उन्हें उचित सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
  4. बिहार सरकार को पुलिस विभाग में अनुशासन बनाए रखने के साथ-साथ संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करना होगा – केवल शराब पीने के आरोप पर बिना जांच के बर्खास्तगी अनुचित है

आम जनता के लिए संदेश

  • अगर किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त किया जाता है, तो उसे न्यायपालिका के माध्यम से उचित सुनवाई का अवसर मिल सकता है।
  • बिना जांच के बर्खास्तगी अवैध हो सकती है, खासकर जब अनुच्छेद 311 के तहत अधिकारों का उल्लंघन हो।
  • सरकारी विभागों को भी अनुशासन लागू करते समय संवैधानिक अधिकारों का पालन करना होगा।

यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है, जो यह दर्शाता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना कठोर दंड नहीं दिया जा सकता।

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTA2NzAjMjAyMCMxI04=-PxTqGlVB33g=


Abhishek Kumar

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