भूमिका:
यह मामला बिहार सरकार और राज्य के विभिन्न शिक्षकों के बीच वेतन वृद्धि (Increment) और वेतन निर्धारण को लेकर विवाद से संबंधित है। पटना उच्च न्यायालय में दायर नागरिक रिट याचिका संख्या 4791/2020 में याचिकाकर्ताओं ने सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें दिए गए तीन प्रतिशत वेतन वृद्धि (3% Increment) की वसूली (Recovery) का निर्देश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
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याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति और पदोन्नति:
- याचिकाकर्ताओं (किशोर कुमार एवं अन्य) को 1991 और 1995 में बिहार के निचले अधीनस्थ शिक्षा सेवा संवर्ग (Lower Subordinate Education Service Cadre) में सहायक शिक्षक (Assistant Teacher) के रूप में नियुक्त किया गया था।
- इनकी प्रारंभिक वेतनमान ₹1200-1800/- थी।
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ACP और MACP योजनाएँ:
- 2003 में बिहार सरकार ने Assured Career Progression Scheme (ACP) लागू की।
- इस योजना के तहत 12 साल की सेवा पूर्ण करने पर उन्हें उच्च वेतनमान (₹5500-9000/-) प्रदान किया गया।
- बाद में 2010 में सरकार ने Modified Assured Career Progression Scheme (MACP) लागू की, जिसमें 10, 20 और 30 वर्षों की सेवा के बाद पदोन्नति लाभ दिया जाने लगा।
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MACP के तहत वेतन वृद्धि:
- 20 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद, याचिकाकर्ताओं को MACP के तहत ₹9300-34800/- ग्रेड पे ₹4800/- प्रदान किया गया।
- इसके बाद, उन्हें 2015 और 2016 में नियमित पदोन्नति देकर लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया।
- इस पदोन्नति के दौरान, 3% वेतन वृद्धि दी गई।
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राज्य सरकार का विवादित आदेश (03 फरवरी 2020):
- सरकार ने यह पाया कि MACP के तहत पहले ही 3% वेतन वृद्धि दी जा चुकी थी, इसलिए नियमित पदोन्नति के समय दोबारा वेतन वृद्धि देना गलत था।
- इसलिए, राज्य सरकार ने इस वेतन वृद्धि की राशि वापस लेने (Recovery) और वेतन निर्धारण दोबारा करने का आदेश दिया।
- इस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं के तर्क:
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F.R. Rule 22 (1) (a) (1) के तहत वेतन वृद्धि का अधिकार:
- याचिकाकर्ताओं का कहना था कि नियमित पदोन्नति मिलने पर उन्हें पुनः वेतन वृद्धि का अधिकार था।
- सरकार ने Fundamental Rules (F.R.) 22 (1) (a) (1) को सही तरीके से लागू नहीं किया।
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MACP और नियमित पदोन्नति अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं:
- याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि MACP केवल “स्टैग्नेशन” (प्रमोशन न मिलने की स्थिति) में दिया जाता है, लेकिन जब वास्तविक पदोन्नति मिलती है, तो दोबारा वेतन वृद्धि मिलनी चाहिए।
- इसलिए, वेतन वृद्धि की वसूली का आदेश गलत था।
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सरकार ने बिना सूचना दिए वेतन वापसी का आदेश दिया:
- पहले वेतन बढ़ाया और फिर उसे वापस लेने का आदेश देना अन्यायपूर्ण था।
- कई कर्मचारियों को उच्च न्यायालय से लाभ मिला, लेकिन सरकार ने उनके मामलों की समीक्षा नहीं की।
राज्य सरकार के तर्क:
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MACP और नियमित पदोन्नति एक ही वेतनमान में थे:
- सरकार ने कहा कि MACP में जो वेतनमान दिया गया था, वही नियमित पदोन्नति पर भी दिया गया।
- इसलिए, दोबारा वेतन वृद्धि देना अनुचित था।
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MACP में वेतन पहले ही बढ़ चुका था:
- सरकार ने MACP स्कीम के नियमों का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा था कि यदि MACP का वेतनमान और प्रमोशन का वेतनमान समान है, तो दोबारा वेतन वृद्धि नहीं दी जाएगी।
- इसलिए, अतिरिक्त वेतन वृद्धि को वापस लेना कानूनी रूप से उचित था।
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F.R. Rule 22 (1) (a) (1) का गलत उपयोग:
- सरकार ने स्पष्ट किया कि यह नियम केवल “वास्तविक पदोन्नति के कारण वेतन वृद्धि” पर लागू होता है, न कि MACP के कारण पहले से बढ़े वेतनमान पर।
पटना उच्च न्यायालय का निर्णय (21 मार्च 2022):
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नियमित पदोन्नति और MACP एक साथ वेतन वृद्धि की अनुमति नहीं देता:
- न्यायालय ने कहा कि यदि MACP और नियमित पदोन्नति के वेतनमान समान हैं, तो दोबारा वेतन वृद्धि नहीं दी जा सकती।
- इसलिए, याचिकाकर्ताओं को दूसरी बार 3% वेतन वृद्धि देने का कोई औचित्य नहीं था।
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राज्य सरकार का आदेश सही:
- अदालत ने सरकार के 03 फरवरी 2020 के आदेश को सही ठहराया और कहा कि सरकार ने कोई गलत निर्णय नहीं लिया।
- इसलिए, याचिकाकर्ताओं की याचिका को खारिज कर दिया गया।
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वसूली की प्रक्रिया:
- अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की वसूली प्रक्रिया जारी रहेगी।
- हालांकि, COVID-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए, यह राशि 10 किस्तों में वसूली जाएगी, ताकि याचिकाकर्ताओं को वित्तीय कठिनाई न हो।
निष्कर्ष:
- यह मामला सरकारी कर्मचारियों के वेतन संरचना, MACP और पदोन्नति में वेतन वृद्धि के बीच अंतर को स्पष्ट करता है।
- महत्वपूर्ण बिंदु:
- MACP और नियमित पदोन्नति अलग प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन यदि वे समान वेतनमान पर होते हैं, तो अतिरिक्त वेतन वृद्धि नहीं दी जा सकती।
- राज्य सरकार के पास पहले दी गई गलत वेतन वृद्धि को वापस लेने का अधिकार है।
- पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारी वेतन नीति का पालन करना अनिवार्य है और गलत भुगतान को सुधारने का अधिकार सरकार के पास सुरक्षित है।
- इस निर्णय से सरकारी कर्मचारियों की वेतन वृद्धि और पदोन्नति संबंधी दावों की स्पष्टता बढ़ेगी और सरकार के MACP नियमों को मजबूत किया जाएगा।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNDc5MSMyMDIwIzEjTg==-uFBmDpYh2Rc=