परिचय:
यह मामला बिहार सरकार और भूमि स्वामी रविंद्र सिंह के बीच भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत अधिग्रहण की गई भूमि और मुआवजे की राशि को लेकर विवाद से संबंधित है। इसमें राज्य सरकार ने पटना उच्च न्यायालय के एकलपीठ के फैसले को चुनौती देते हुए पत्र पेटेंट अपील (LPA) दायर की थी।
मामले की पृष्ठभूमि:
- बिहार सरकार ने आपातकालीन प्रावधानों (Emergency Provisions) के तहत 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम का उपयोग करते हुए खगड़िया जिले में भूमि का अधिग्रहण किया था।
- भूमि स्वामी (रविंद्र सिंह) को इस भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुआवजे की राशि को लेकर आपत्ति थी।
- डिवीजनल कमिश्नर, मुंगेर ने 7 अगस्त 2012 को एक आदेश जारी कर कहा कि यह भूमि आवासीय भूमि नहीं बल्कि “भिट” भूमि है और इसके लिए दिया गया मुआवजा बहुत अधिक था।
- भूमि स्वामी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट याचिका (CWC No. 7439/2013) दायर की।
पटना उच्च न्यायालय (एकलपीठ) का फैसला:
एकलपीठ (Single Judge Bench) ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:
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अंतिम मुआवजा घोषित नहीं किया गया था:
- अदालत ने पाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 3A और 17 के तहत अंतिम अवॉर्ड (Final Award) जारी नहीं किया गया था।
- भूमि स्वामी को केवल 80% मुआवजा दिया गया था, जो कि अंतिम अवॉर्ड का हिस्सा नहीं था।
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धारा 18 के तहत कोर्ट रेफरेंस अमान्य:
- चूंकि अंतिम अवॉर्ड जारी नहीं हुआ था, इसलिए भूमि स्वामी धारा 18 के तहत अधिक मुआवजे के लिए कोर्ट रेफरेंस नहीं मांग सकते थे।
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राज्य सरकार का आदेश अस्वीकार्य:
- डिवीजनल कमिश्नर, मुंगेर द्वारा जारी आदेश कानूनी रूप से अस्वीकार्य था।
- अदालत ने डिवीजनल कमिश्नर को भूमि की प्रकृति और मुआवजे की राशि की फिर से जांच करने का निर्देश दिया।
राज्य सरकार की अपील (Letters Patent Appeal – LPA 1889/2015):
- इस फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ में अपील दायर की।
- राज्य सरकार का तर्क:
- एकलपीठ ने गलत तरीके से डिवीजनल कमिश्नर के आदेश को खारिज किया।
- भूमि स्वामी को धारा 18 के तहत रेफरेंस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए थी।
- इस अपील पर सुनवाई के दौरान, पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश (Interim Order) जारी कर एकलपीठ के फैसले को स्थगित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
- भूमि स्वामी ने इस अंतरिम आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला (02.08.2019):
- उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब तक अंतिम अवॉर्ड जारी नहीं होता, तब तक भूमि स्वामी को धारा 18 के तहत रेफरेंस लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- हाईकोर्ट द्वारा अपील स्वीकार करने और आदेश को स्थगित करने का कोई औचित्य नहीं था।
पटना उच्च न्यायालय (खंडपीठ) का अंतिम निर्णय (29 मार्च 2022):
- राज्य सरकार के वकील (खुर्शीद आलम, AAG-12) ने स्वीकार किया कि राज्य सरकार को एकलपीठ के फैसले से कोई आपत्ति नहीं है।
- इसके आधार पर, खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील को समाप्त कर दिया और एकलपीठ के आदेश को बहाल कर दिया।
अंतिम निर्देश:
- डिवीजनल कमिश्नर, मुंगेर को भूमि की प्रकृति और मुआवजे की राशि की पुन: जांच करनी होगी।
- यह प्रक्रिया तीन महीने के भीतर पूरी करनी होगी।
- यदि भूमि स्वामी को पुन: जांच के परिणाम पर कोई आपत्ति नहीं होती, तो मुआवजा तुरंत जारी कर दिया जाएगा।
निष्कर्ष:
- यह मामला भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुआवजे और प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर एक महत्वपूर्ण न्यायिक उदाहरण है।
- मुख्य बिंदु:
- राज्य सरकार को भूमि स्वामी के अधिकारों का सम्मान करना होगा।
- जब तक अंतिम अवॉर्ड जारी नहीं होता, तब तक धारा 18 के तहत रेफरेंस नहीं लिया जा सकता।
- भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में कानूनी पारदर्शिता और न्यायसंगत मूल्यांकन आवश्यक है।
- इस फैसले से भूमि अधिग्रहण मामलों में मुआवजे को लेकर होने वाले विवादों पर प्रभाव पड़ेगा और भूमि स्वामियों के अधिकारों को मजबूत किया जाएगा।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxODg5IzIwMTUjMSNO-I92KQTuBy28=