"भूमि विवाद से हत्या तक: कैमूर जिले की सनसनीखेज वारदात पर अदालत का फैसला"

“भूमि विवाद से हत्या तक: कैमूर जिले की सनसनीखेज वारदात पर अदालत का फैसला”

 

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला बिहार के कैमूर जिले के चंद थाना क्षेत्र के सेहन गाँव में हुए हत्या के एक मामले से संबंधित है। अभियुक्त राम किशुन दुबे, विजय बहादुर दुबे और रामाशंकर दुबे पर राम सुरत दुबे की हत्या करने का आरोप था।

घटना 3 जुलाई 1993 की है, जब ज़मीन पर कब्जे को लेकर झगड़ा हुआ था। इसी दौरान गोलीबारी हुई, जिसमें राम सुरत दुबे की मृत्यु हो गई। इसके बाद अभियुक्तों ने मृतक के शव को घटनास्थल से हटाकर छिपाने का प्रयास किया।

पटना उच्च न्यायालय में 1996 से लंबित आपराधिक अपील (DB) संख्या 7 और 54 में अभियुक्तों ने आजन्म कारावास की सजा को चुनौती दी थी। लेकिन अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और उनकी अपील को खारिज कर दिया।


अपराध की संक्षिप्त रूपरेखा

  • घटना का कारण:
    राम किशुन दुबे अपने घर की दीवार का निर्माण कर रहे थे, जो केश नाथ दुबे (सूचक) और उनके पिता राम सुरत दुबे की ज़मीन पर हो रहा था
  • हत्या का तरीका:
    जब पीड़ित पक्ष ने इस निर्माण का विरोध किया, तो कहासुनी हुई और फिर झगड़ा बढ़ गया।

    • राम किशुन दुबे ने अपने साथी रामाशंकर दुबे और विजय बहादुर दुबे को बुलाया।
    • रामाशंकर दुबे ने देशी कट्टे से गोली चलाई, जिससे राम सुरत दुबे की मौके पर ही मौत हो गई
    • इसके बाद अभियुक्तों ने मृतक के शव को उठाकर विजय बहादुर दुबे के घर में छिपा दिया

पुलिस जांच और आरोप पत्र

  • घटना के बाद सूचक केश नाथ दुबे ने पुलिस को फर्दबयान दिया और मामला दर्ज किया गया।
  • पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ हत्या (IPC धारा 302/34), शव छिपाने (IPC धारा 201) और शस्त्र अधिनियम (Section 27 Arms Act) के तहत चार्जशीट दायर की
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि मृतक को कई गोलियां लगी थीं, जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी।

निचली अदालत का फैसला (1995)

  • सत्र न्यायालय, कैमूर, भभुआ ने 21 दिसंबर 1995 को अपना फैसला सुनाया।
  • सभी अभियुक्तों को हत्या और सबूत मिटाने का दोषी ठहराया गया
  • राम किशुन दुबे और रामाशंकर दुबे को उम्रकैद (Life Imprisonment) की सजा दी गई

उच्च न्यायालय में अपील (1996)

अभियुक्तों ने पटना उच्च न्यायालय में इस सजा को चुनौती दी। मुख्य तर्क यह थे:

  1. अभियुक्तों को झूठा फंसाया गया है
  2. हत्या की घटना अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार नहीं हुई
  3. गवाह विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि वे मृतक के परिवार से जुड़े हैं
  4. रामाशंकर दुबे ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि घटना के समय वह स्कूल में पढ़ा रहे थे (अलीबी का दावा)

पटना उच्च न्यायालय का फैसला (2021)

  • सुनवाई के दौरान विजय बहादुर दुबे की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए उनके खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया
  • शेष अभियुक्तों राम किशुन दुबे और रामाशंकर दुबे की अपील पर सुनवाई की गई।
  • कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की कहानी को सही ठहराया और कहा कि:
    • गवाह विश्वसनीय हैं और उनके बयान मेडिकल सबूतों से मेल खाते हैं
    • घटना के समय रामाशंकर दुबे की स्कूल में मौजूदगी साबित नहीं हो सकी
    • मृतक का शव घटनास्थल से अभियुक्तों के घर तक घसीटकर ले जाने के सबूत मिले
    • फॉरेंसिक रिपोर्ट में घटनास्थल पर खून के धब्बे मिले, जो अभियुक्तों की संलिप्तता दर्शाते हैं
  • अदालत ने अभियुक्तों की अपील खारिज कर दी और उनकी उम्रकैद की सजा बरकरार रखी

निष्कर्ष

  1. हत्या के मामलों में न्यायालय केवल गवाहों पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि मेडिकल और फॉरेंसिक सबूतों की भी जांच करता है
  2. यदि आरोपी अपना बचाव (अलीबी) साबित नहीं कर पाता, तो अदालत उसे दोषी मान सकती है
  3. हत्या करने के बाद शव को छिपाने का प्रयास भी एक गंभीर अपराध माना जाता है
  4. पटना उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अपराधियों को कोई राहत नहीं दी और उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा

इस केस से क्या सीख मिलती है?

  • कानून का उल्लंघन करने वाले अपराधियों को सजा से बचना मुश्किल होता है।
  • अदालत सबूतों और गवाहों की विश्वसनीयता की गहराई से जांच करती है।
  • हत्या के मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने में भले ही समय लगे, लेकिन आखिरकार न्याय होता है
  • हत्या और सबूत छुपाने जैसे अपराधों में न्यायपालिका कड़ा रुख अपनाती है

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSM3IzE5OTYjMSNO-NEqJEDbJh1s=

Abhishek Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News