"बिना सुनवाई बर्खास्तगी अवैध: हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला"

“बिना सुनवाई बर्खास्तगी अवैध: हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला”

 

यह मामला पटना उच्च न्यायालय (Civil Writ Jurisdiction Case No. 10088 of 2015) से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता दिनेश प्रसाद ने बिहार सैन्य पुलिस (Bihar Military Police – BMP) द्वारा अपने सेवा से बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए की गई थी


मामले की पृष्ठभूमि

  • दिनेश प्रसाद को 1988 में क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया था और वे मुजफ्फरपुर, दरभंगा, और बेगूसराय में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे।
  • 2010 में मुजफ्फरपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में वित्तीय अनियमितताओं (embezzlement) का मामला दर्ज किया गया, जिसमें कई लोगों को आरोपी बनाया गया।
  • हालांकि, एफआईआर में दिनेश प्रसाद का नाम नहीं था, लेकिन बाद में विभागीय जांच में उन्हें भी आरोपी बना दिया गया
  • उन्हें मार्च 2012 में निलंबित कर दिया गया और 2014 में उनकी सेवाएँ समाप्त कर दी गईं

अदालत में प्रस्तुत तर्क

याचिकाकर्ता (दिनेश प्रसाद) का पक्ष:

  1. जांच में पक्षपात और अनुचित प्रक्रिया अपनाई गई
    • जब पहली विभागीय जांच की गई, तब दिनेश प्रसाद न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) में थे, लेकिन फिर भी उनका पक्ष नहीं सुना गया
    • उन्हें सभी गवाहों से जिरह (cross-examine) करने का अवसर नहीं दिया गया
  2. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
    • बिहार सरकार के सर्विस नियम 2005 (Bihar Government Servant Rules, 2005) के तहत पेशकर्ता अधिकारी (Presenting Officer) की नियुक्ति अनिवार्य थी, लेकिन यह नहीं किया गया।
    • उन्हें दूसरी बार कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) का उत्तर देने के लिए केवल 7 दिन दिए गए, जबकि नियम के अनुसार 15 दिन मिलने चाहिए थे
  3. विभागीय जांच एकतरफा थी
    • 2012 में विभागीय जांच के दौरान उनकी अनुपस्थिति में ही रिपोर्ट फाइनल कर दी गई
    • 2014 में जांच दोबारा खोली गई, लेकिन पूर्व की रिपोर्ट में कोई बदलाव नहीं किया गया
  4. बर्खास्तगी अवैध थी
    • विभाग ने उनकी सेवाएँ समाप्त करने का निर्णय जल्दबाजी में लिया, जबकि वे बरी भी हो सकते थे

सरकार (बिहार सैन्य पुलिस) का पक्ष:

  1. वित्तीय अनियमितता और कर्तव्य में लापरवाही
    • दिनेश प्रसाद को सरकारी धन के दुरुपयोग और वित्तीय अनियमितताओं में संलिप्त पाया गया
    • मुजफ्फरपुर के एसपी कार्यालय में वे एकाउंटेंट थे, और विभागीय जांच में उनके खिलाफ गंभीर आरोप साबित हुए।
  2. उन्हें पर्याप्त अवसर दिया गया
    • सरकार ने दावा किया कि दिनेश प्रसाद को कई बार स्पष्टीकरण देने का अवसर दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा नहीं किया
  3. विभागीय जांच न्यायसंगत थी
    • जाँच अधिकारियों ने सही प्रक्रिया अपनाई और किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया
  4. नियमित अपील की जा सकती थी
    • बर्खास्तगी के खिलाफ दिनेश प्रसाद को अधिकारियों के समक्ष अपील का अवसर मिला था, लेकिन उन्होंने इसे पर्याप्त रूप से नहीं किया।

पटना हाईकोर्ट का फैसला

  1. याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया गया
    • न्यायालय ने पाया कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया
    • जांच रिपोर्ट एकतरफा थी और याचिकाकर्ता को उचित अवसर नहीं दिया गया
  2. बर्खास्तगी आदेश रद्द किया गया
    • अदालत ने कहा कि बिना उचित सुनवाई और बचाव का मौका दिए कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता
    • बिहार सरकारी सेवा नियम, 2005 के उल्लंघन के कारण बर्खास्तगी को अवैध घोषित किया गया
  3. फिर से विभागीय जांच करने का आदेश
    • बिहार सैन्य पुलिस को जांच प्रक्रिया दोबारा शुरू करने और निष्पक्ष सुनवाई करने का निर्देश दिया गया
    • छह महीने के भीतर जांच पूरी करने का आदेश दिया गया, अन्यथा याचिकाकर्ता को सभी बकाया वेतन और अन्य लाभ दिए जाएंगे

निष्कर्ष

  • यह मामला सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों और प्राकृतिक न्याय की अवधारणा से जुड़ा था
  • पटना हाईकोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को यह संदेश दिया कि किसी भी कर्मचारी को बिना उचित सुनवाई के बर्खास्त नहीं किया जा सकता
  • यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन सकता है, जो अनुचित निलंबन या बर्खास्तगी का सामना कर रहे हैं।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTAwODgjMjAxNSMxI04=-0qGtCSVnsNw=

 

Abhishek Kumar

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