"क्या भूमिहीन परिवारों को मिलेगा न्याय? पटना उच्च न्यायालय का फैसला"

“क्या भूमिहीन परिवारों को मिलेगा न्याय? पटना उच्च न्यायालय का फैसला”

 

यह मामला पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट न्यायक्षेत्र (CWJC) संख्या 22206/2018 से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने सुपौल जिले के कलेक्टर के एक आदेश को चुनौती दी थी। मामला भूमि अधिग्रहण और पट्टा जारी करने से संबंधित है, जहां याचिकाकर्ताओं का दावा था कि उन्हें दिए गए पट्टे को अवैध रूप से रद्द कर दिया गया।


मामले की पृष्ठभूमि

  • सुपौल जिले के कुछ गरीब और भूमिहीन लोगों को सरकारी भूमि का पट्टा (Purcha) दिया गया था, जिससे वे अपनी आजीविका चला रहे थे।
  • लेकिन जिला प्रशासन ने इसे अवैध मानते हुए पट्टा रद्द कर दिया और भूमि वापस लेने का आदेश दिया।
  • याचिकाकर्ताओं ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि वे लंबे समय से इस भूमि पर रह रहे थे और उन्हें पुनर्वास की आवश्यकता थी।

अदालत में प्रस्तुत तर्क

याचिकाकर्ताओं (भूमिहीन किसानों) का पक्ष:

  1. पट्टा कानूनी रूप से जारी किया गया था – उन्हें दिए गए पट्टे को अचानक अवैध घोषित करना अन्यायपूर्ण है।
  2. बिना सुनवाई के निर्णय लिया गया – प्रशासन ने उनकी कोई बात नहीं सुनी और न ही उन्हें पुनर्वास का विकल्प दिया।
  3. वर्षों से इस भूमि पर बसे हुए हैं – वे इस भूमि को छोड़कर कहीं और नहीं जा सकते, क्योंकि उनकी आजीविका इसी पर निर्भर करती है।

प्रशासन (राज्य सरकार) का पक्ष:

  1. पट्टा जारी करना ही अवैध था – उच्च न्यायालय ने पहले के एक आदेश में इसे गलत ठहराया था, इसलिए इसे रद्द करना आवश्यक था।
  2. भूमि अधिग्रहण कानूनों का उल्लंघन – जिस भूमि पर पट्टा जारी किया गया था, वह सरकारी योजनाओं के तहत सुरक्षित थी, इसलिए इसे वापस लेना जरूरी था।
  3. न्यायालय का पुराना आदेश – पहले ही 1999 में अदालत ने आदेश दिया था कि यह पट्टा अवैध रूप से जारी हुआ था और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

अदालत का फैसला

  • न्यायालय ने पाया कि चूंकि पट्टा पहले ही अवैध घोषित किया जा चुका था, इसलिए जिला प्रशासन का फैसला गलत नहीं था।
  • हालांकि, न्यायालय ने प्रशासन को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं के पुनर्वास पर विचार किया जाए, ताकि वे बेघर न हो जाएं।
  • याचिकाकर्ताओं को छः महीने के भीतर कलेक्टर से पुनर्वास के लिए अनुरोध करने की अनुमति दी गई।

निष्कर्ष

यह मामला सरकारी भूमि के आवंटन, पुनर्वास और गरीबों के अधिकारों से जुड़ा हुआ था। न्यायालय ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, जहां प्रशासन के कानूनी अधिकारों को बरकरार रखा, लेकिन साथ ही भूमिहीन परिवारों के पुनर्वास के लिए निर्देश भी दिए।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjIyMDYjMjAxOCMxI04=-2wJL8CQK4ww=

Abhishek Kumar

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