"गया नगर निगम विवाद: हाई कोर्ट ने लोकायुक्त के आदेश को किया निरस्त"

“गया नगर निगम विवाद: हाई कोर्ट ने लोकायुक्त के आदेश को किया निरस्त”

 

परिचय

यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर सिविल रिट याचिका (CWJC No. 3599/2020) से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता धर्मेंद्र कुमार ने गया नगर निगम में ग्रुप-D कर्मचारियों की सेवा समाप्ति के आदेश को चुनौती दी थी।

याचिका में कहा गया कि बिहार लोकायुक्त (Lokayukta) ने आदेश दिया था कि सभी नगर निगम ग्रुप-D कर्मचारियों (झाड़ू लगाने वाले, सफाईकर्मी, दैनिक वेतनभोगी) की सेवाएं समाप्त करें और आउटसोर्सिंग के माध्यम से नई नियुक्ति करें। इस आदेश का परिणाम यह हुआ कि हजारों सफाईकर्मियों की नौकरी चली गई और पूरे गया शहर में कूड़ा-करकट का अंबार लग गया

याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि लोकायुक्त के आदेश को अवैध घोषित किया जाए और नगर निगम को कर्मचारियों की सेवा जारी रखने का निर्देश दिया जाए


मामले की पृष्ठभूमि

बिहार लोकायुक्त ने 28 नवंबर 2019 को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया था कि:

  • सभी नगर निगम ग्रुप-D कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करें और आउटसोर्सिंग के माध्यम से नई भर्ती करें
  • नगर निगमों को इस आदेश का पालन करने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी
  • जो नगर निगम इसका पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी

इसके बाद, बिहार शहरी विकास और आवास विभाग ने 9 दिसंबर 2019 को सभी नगर निगमों को लोकायुक्त के आदेश का पालन करने के निर्देश दिए


मुख्य विवाद के बिंदु

  1. क्या लोकायुक्त को सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करने का अधिकार है?

    • लोकायुक्त का गठन भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए किया गया था, न कि सरकारी सेवा नियमों को तय करने के लिए।
    • लोकायुक्त को केवल अनुशंसा (recommendation) देने का अधिकार है, कोई बाध्यकारी आदेश (binding order) जारी करने का अधिकार नहीं है
  2. क्या लोकायुक्त का आदेश कानूनन वैध था?

    • बिहार लोकायुक्त अधिनियम, 2011 (Bihar Lokayukta Act, 2011) के तहत लोकायुक्त केवल भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की जांच कर सकता है
    • लोकायुक्त ने बिना किसी ठोस जांच के यह मान लिया कि ग्रुप-D कर्मचारियों की भर्ती भ्रष्टाचार का स्रोत है
    • कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया कि इन कर्मचारियों की भर्ती में भ्रष्टाचार हुआ था
  3. क्या नगर निगम को इस आदेश का पालन करना चाहिए था?

    • नगर निगमों को राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग से निर्देश लेने चाहिए थे, न कि लोकायुक्त के आदेश को सीधे लागू करना चाहिए था।
    • लोकायुक्त किसी भी नगर निगम को सेवा समाप्त करने का आदेश नहीं दे सकता

याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट के समक्ष निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए:

  1. लोकायुक्त को ग्रुप-D कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करने का अधिकार नहीं था।
  2. बिना उचित जांच के कर्मचारियों को हटा दिया गया, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए।
  3. नगर निगम को लोकायुक्त के आदेश का पालन करने के बजाय कानूनी सलाह लेनी चाहिए थी।
  4. यह आदेश नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ था, क्योंकि इससे पूरे शहर में सफाई व्यवस्था प्रभावित हुई।

राज्य सरकार और नगर निगम का पक्ष

  1. लोकायुक्त का आदेश लागू करने के लिए विभागीय आदेश जारी किया गया था
  2. आउटसोर्सिंग नीति के तहत ग्रुप-D कर्मचारियों को हटाने की योजना बनाई गई थी
  3. लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण आउटसोर्सिंग नीति को 2021 तक टाल दिया गया
  4. राज्य सरकार अब हाई कोर्ट के फैसले का पालन करेगी

पटना हाई कोर्ट का फैसला

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस. कुमार की पीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिए:

  1. लोकायुक्त का आदेश अवैध घोषित किया गया
  2. लोकायुक्त के पास सरकारी सेवा मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है
  3. नगर निगम को कर्मचारियों को हटाने से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी
  4. कोई भी नगर निगम अब लोकायुक्त के इस आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगा
  5. बिहार सरकार को निर्देश दिया गया कि भविष्य में इस तरह के मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए

न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश

  1. लोकायुक्त के 28 नवंबर 2019 के आदेश को रद्द किया गया
  2. नगर निगमों को ग्रुप-D कर्मचारियों की सेवाएं जारी रखने का निर्देश दिया गया
  3. भविष्य में इस तरह के निर्णय बिना जांच और कानून की उचित व्याख्या के नहीं लिए जाने चाहिए

महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष

  • लोकायुक्त को सरकारी सेवा मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • यदि लोकायुक्त किसी आदेश की अनुशंसा करता है, तो सरकार को इसे लागू करने से पहले कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी।
  • बिहार सरकार को लोकायुक्त के आदेश को लागू करने के लिए नगर निगमों को बाध्य नहीं करना चाहिए था।

निष्कर्ष

यह मामला लोकायुक्त की सीमाओं, सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों और नगर निगम प्रशासन के कार्यक्षेत्र को लेकर एक ऐतिहासिक मिसाल बना है।

यह फैसला भविष्य में लोकायुक्त की सीमाओं को परिभाषित करने और सरकारी आदेशों को पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMzU5OSMyMDIwIzEjTg==-pvZc2Z1Y8tM=

 

Abhishek Kumar

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