परिचय:
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर की गई एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कॉर्पस) से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता ओम प्रकाश सिंह ने अपने पुत्र कौशल किशोर सिंह की बरामदगी और उसे अवैध हिरासत से मुक्त कराने की माँग की थी।
मामले की पृष्ठभूमि:
ओम प्रकाश सिंह के बेटे कौशल किशोर सिंह, उम्र 23 वर्ष, का 29 अक्टूबर 2015 को अपहरण हो गया था। इस संबंध में 06 नवंबर 2015 को पत्रकार नगर थाना, पटना में एक प्राथमिकी (Patrakar Nagar P.S. Case No. 335/2015) दर्ज कराई गई थी।
कई वर्षों के बाद भी पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, जिसके कारण याचिकाकर्ता ने 2018 में पटना हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Criminal Writ Jurisdiction Case No. 1087 of 2018) दायर की और बेटे की बरामदगी की माँग की।
मुख्य बिंदु:
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बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) दाखिल करने का कारण:
- याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि उनके बेटे की बरामदगी के लिए पुलिस को निर्देशित किया जाए और उसे अवैध हिरासत से मुक्त किया जाए।
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पुलिस की कार्रवाई:
- पुलिस ने जांच के दौरान मनोज कुमार, अवधेश मुखिया, देवेंद्र, मनी चौधरी और अवधेश प्रसाद (उर्फ पप्पू) नाम के व्यक्तियों को आरोपी बनाया।
- इनमें से चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मुख्य आरोपी अवधेश प्रसाद उर्फ पप्पू अभी भी फरार है।
- पुलिस ने विभिन्न स्थानों पर छापेमारी की, लेकिन कोई ठोस सबूत हाथ नहीं लगा।
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याचिकाकर्ता के आरोप:
- उन्होंने कहा कि पुलिस शुरुआत में जांच में लापरवाह रही।
- पुलिस को अदालत के निर्देशों के बाद ही सक्रियता दिखाई दी।
- उन्होंने दावा किया कि मुख्य आरोपी (अवधेश प्रसाद) की गिरफ्तारी से बेटे का पता चल सकता है।
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पुलिस की दलील:
- पुलिस का कहना था कि उन्होंने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन अभी तक पीड़ित को बरामद नहीं किया जा सका।
- अदालत ने पहले ही पुलिस को कई बार निर्देश जारी किए थे, और वे सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं।
- पुलिस के अनुसार, अदालत को सीधे जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
अदालत का अवलोकन और फैसला:
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क्या बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार्य है?
- अदालत ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका केवल तभी दी जा सकती है जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया हो।
- चूँकि यह अपहरण (किडनैपिंग) का मामला है और पीड़ित किसी ज्ञात व्यक्ति की अवैध हिरासत में नहीं है, इसलिए यह मामला हैबियस कॉर्पस के दायरे में नहीं आता।
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क्या पुलिस की जांच संतोषजनक है?
- अदालत ने कहा कि पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और एक आरोपी अभी भी फरार है।
- पुलिस ने छापेमारी की है, चार्जशीट दाखिल की है, और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच की निगरानी की जा रही है।
- अदालत ने माना कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है, और ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उनकी जांच में कोई दुर्भावना थी।
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निष्कर्ष:
- अदालत ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका इस मामले में उपयुक्त नहीं है।
- लेकिन अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पुलिस अपनी जांच को जारी रखे और इस मामले में पूरी गंभीरता बरते।
- याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी गई कि वह किसी अन्य उचित कानूनी मंच पर अपनी बात रख सकते हैं।
निष्कर्ष और महत्व:
- यह मामला सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही, पुलिस जांच की प्रभावशीलता, और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सीमाओं को उजागर करता है।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण केवल तब स्वीकार्य होती है जब कोई व्यक्ति सरकारी एजेंसियों या किसी ज्ञात व्यक्ति की अवैध हिरासत में हो।
- अपहरण के मामलों में, उचित कानूनी कार्रवाई (जैसे कि पुलिस जांच और ट्रायल) ही सही तरीका होता है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMTA4NyMyMDE4IzEjTg==-McUYsgRs0bA=