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“स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा की पेंशन: न्यायिक परीक्षण”

 

मामले की पृष्ठभूमि:

स्वर्गीय त्रिवेणी कांत झा ने स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के आधार पर सम्मान पेंशन के लिए आवेदन किया था। उन्हें पहले पेंशन स्वीकृत की गई, लेकिन बाद में सरकार द्वारा इसे रद्द कर दिया गया। रद्दीकरण का मुख्य कारण यह था कि त्रिवेणी कांत झा ने अपनी जेल से रिहाई के बाद ब्रिटिश सरकार में पुलिस निरीक्षक के पद पर नौकरी स्वीकार की थी।

कानूनी प्रक्रिया:

1. त्रिवेणी कांत झा ने पेंशन रद्द करने के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की।

2. एकल न्यायाधीश ने उनके पक्ष में निर्णय दिया और पेंशन रद्दीकरण को अवैध करार दिया।

3. भारत सरकार ने इस निर्णय के खिलाफ पत्र याचिका अपील दायर की।

न्यायालय के मुख्य निष्कर्ष:

न्यायालय ने मामले की जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया:

1. कारावास का तथ्य: त्रिवेणी कांत झा द्वारा भुगा गया कारावास विवादित नहीं था।

2. स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी: हालांकि, उनकी स्वतंत्रता संग्राम में वास्तविक भागीदारी के बारे में स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले।

3. कारावास का कारण: यह स्पष्ट नहीं था कि क्या उन्हें 1942-43 के असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था या किसी अन्य कारण से।

4. नौकरी स्वीकार करना: ब्रिटिश सरकार में पुलिस निरीक्षक के रूप में नौकरी स्वीकार करने को स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी के विरुद्ध नहीं माना जा सकता।

न्यायालय के निर्देश:

न्यायालय ने गृह मंत्रालय को निम्न निर्देश दिए:

1. मामले की पुनः जांच करें।

2. त्रिवेणी कांत झा के परिवार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले नए साक्ष्यों पर विचार करें।

3. चार महीने के भीतर एक नया निर्णय जारी करें।

महत्वपूर्ण टिप्पणियां:

न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया कि ब्रिटिश शासन के दौरान, हर भारतीय नागरिक पर स्वतंत्रता संग्राम में संलिप्त होने का संदेह किया जाता था। इसलिए, किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर दंडित करना उचित नहीं था।

निष्कर्ष:

अंततः, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पेंशन केवल कारावास के आधार पर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में वास्तविक भागीदारी के आधार पर दी जानी चाहिए। साथ ही, नौकरी स्वीकार करने को स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के विरुद्ध नहीं माना जा सकता।

यह निर्णय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं के प्रति सम्मान और न्याय के सिद्धांतों को दर्शाता है।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxMjMxIzIwMTcjMiNO-yz8m2lrZPXE=

 

Abhishek Kumar

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