यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दर्ज हुआ है, जिसमें डॉ. सरयुग कुमार, जो मंजर में एक होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य थे, पर भ्रष्टाचार अधिनियम, 1988 के तहत मुकदमा दायर किया गया। उन्हें एक छात्र से हाउस सर्जनशिप प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया। यह केस विभिन्न कानूनी और प्रशासनिक बिंदुओं पर केंद्रित है।
मुख्य मुद्दे:
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रिश्वत का आरोप:
छात्र अमृत कुमार सिंह ने शिकायत की कि डॉ. सरयुग कुमार ने हाउस सर्जनशिप और चरित्र प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए ₹50,000 की रिश्वत मांगी। इस आरोप की पुष्टि के लिए एक छापा मारा गया, जिसमें डॉ. सरयुग कुमार को ₹30,000 की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। -
सार्वजनिक सेवक होने का प्रश्न:
डॉ. सरयुग कुमार का तर्क था कि कॉलेज एक निजी और गैर-सहायता प्राप्त संस्थान है, और वह “सार्वजनिक सेवक” की श्रेणी में नहीं आते। न्यायालय ने पाया कि चूंकि कॉलेज सरकारी सहायता प्राप्त करता है, इसलिए यह उन्हें सार्वजनिक सेवक की परिभाषा में लाता है। -
सेंक्शन की वैधता:
अभियोजन की अनुमति (सेंक्शन) विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा दी गई, जो सक्षम प्राधिकारी नहीं माने गए। हालांकि, न्यायालय ने यह कहा कि अगर उच्च अधिकारी द्वारा अनुमति दी गई है तो इसे अमान्य नहीं माना जाएगा, जब तक कि इससे न्याय में बाधा न उत्पन्न हो। -
भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 19(1):
यह स्पष्ट किया गया कि अभियोजन से पहले सक्षम प्राधिकारी की अनुमति आवश्यक है। लेकिन अगर इस प्रक्रिया में कोई त्रुटि होती है, तो यह तभी मान्य होगी जब इससे न्याय में बाधा उत्पन्न हो।
न्यायालय का निर्णय:
न्यायालय ने पाया कि:
- डॉ. सरयुग कुमार “सार्वजनिक सेवक” के दायरे में आते हैं।
- कुलपति द्वारा दी गई अभियोजन की अनुमति वैध है।
- यह मामला परीक्षण के लिए जारी रह सकता है और इस पर अंतिम निर्णय निचली अदालत द्वारा ट्रायल के बाद होगा।
व्यापक संदेश:
यह मामला प्रशासनिक प्रक्रियाओं, भ्रष्टाचार के खिलाफ कानूनी उपायों और न्याय की निष्पक्षता के महत्व को रेखांकित करता है। निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि कानून के तहत कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी संस्था से हो, भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं सकता।
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMxOTM5MSMyMDE2IzEjTg==-f7UMhV–ak1–BAEc=