प्रेमचंद्र प्रसाद बनाम बिहार राज्य मामला (आपराधिक विविध संख्या 43769/2019)
मामले की पृष्ठभूमि:
– याचिकाकर्ता प्रेमचंद्र प्रसाद मिठनपुरा थाना कांड संख्या 481/2018 में आरोपी थे
– मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत दर्ज किया गया था
– याचिकाकर्ता को 20 दिसंबर 2018 को गिरफ्तार किया गया
– 21 दिसंबर 2018 को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया
विवाद का मूल कारण:
1. जाँच में विलंब:
– 90 दिनों की निर्धारित अवधि के बाद भी जाँच पूरी नहीं हुई
– दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के तहत जमानत का अधिकार उत्पन्न हुआ
2. जमानत के लिए आवेदन:
– याचिकाकर्ता ने 23 मार्च 2019 को जमानत के लिए आवेदन किया
– न्यायालय की शर्तों का पालन करने की तैयारी जताई
न्यायालय की कार्यवाही:
1. पहली सुनवाई:
– न्यायालय ने कार्यालय से आरोप पत्र दाखिल होने की स्थिति की जानकारी मांगी
2. दूसरी सुनवाई:
– कार्यालय ने बताया कि आरोप पत्र उसी दिन दोपहर 2:23 बजे दाखिल किया गया
महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु:
1. अवैध हिरासत:
– 90 दिनों के बाद जाँच लंबित रहने पर न्यायिक हिरासत अवैध हो गई
– जमानत का अधिकार स्वतः उत्पन्न हो गया
2. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
– संजय दत्त बनाम सी.बी.आई. (1994)
– हितेंद्र विष्णु ठाकुर बनाम महाराष्ट्र राज्य (1994)
– उदय मोहनलाल आचार्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2001)
उदय मोहनलाल आचार्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
1. मजिस्ट्रेट के कर्तव्य:
– जमानत आवेदन पर तत्काल निर्णय लेना चाहिए
– यह सुनिश्चित करना कि आरोपी 90/60 दिनों से हिरासत में है
– आरोप पत्र दाखिल नहीं होने की स्थिति में जमानत देना
2. जाँच एजेंसी की चूक:
– निर्धारित समय में जाँच पूरी न करने पर
– आरोपी को जमानत का अधिकार मिलता है
अपवाद की स्थितियाँ:
1. जमानत अधिकार के प्रयोग से पहले:
– 90 दिनों के बाद भी आरोप पत्र दाखिल हो सकता है
– जमानत का अधिकार समाप्त नहीं होगा
2. जमानत आदेश के बाद:
– जमानत बांड जमा करने से पहले आरोप पत्र दाखिल
– आरोपी का अधिकार समाप्त हो सकता है
वर्तमान मामले में न्यायालय का निष्कर्ष:
1. अवैध हिरासत:
– 90 दिनों में जाँच पूरी नहीं हुई
– जमानत का अधिकार उत्पन्न हो गया
2. निचली अदालत की त्रुटियाँ:
– मामले को स्थगित करना
– आरोप पत्र की स्थिति की जानकारी मांगना
– पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करने का अवसर देना
आदेश का महत्व:
1. कानूनी सिद्धांत:
– जमानत का अधिकार मौलिक है
– प्रक्रियात्मक विलंब से प्रभावित नहीं होना चाहिए
2. पुलिस और न्यायपालिका के लिए निर्देश:
– समय सीमा का पालन आवश्यक
– जमानत अधिकार का सम्मान करना जरूरी
3. आरोपी के अधिकार:
– उचित समय में जाँच का अधिकार
– विलंब की स्थिति में जमानत का अधिकार
न्यायालय का अंतिम आदेश:
1. निचली अदालत का आदेश रद्द
2. याचिकाकर्ता को तत्काल जमानत पर रिहा करने का निर्देश
3. जमानत बांड निचली अदालत की संतुष्टि के अनुसार
इस निर्णय का महत्व:
1. आपराधिक न्याय प्रणाली में:
– समय सीमा का महत्व
– आरोपी के अधिकारों की रक्षा
– न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता
2. पुलिस जाँच में:
– समयबद्ध जाँच की आवश्यकता
– आरोपी के अधिकारों का सम्मान
– कानूनी प्रक्रिया का पालन
3. न्यायिक प्रशासन में:
– त्वरित निर्णय का महत्व
– प्राकृतिक न्याय का पालन
– कानूनी अधिकारों की रक्षा
शिक्षाएं और निहितार्थ:
1. पुलिस के लिए:
– समय सीमा का कड़ाई से पालन
– जाँच में तत्परता
– कानूनी प्रावधानों का सम्मान
2. न्यायपालिका के लिए:
– जमानत आवेदनों पर त्वरित कार्रवाई
– आरोपी के अधिकारों की रक्षा
– कानून के शासन को बनाए रखना
3. आम जनता के लिए:
– कानूनी अधिकारों की जानकारी
– न्यायिक प्रक्रिया की समझ
– कानूनी सहायता का महत्व
इस प्रकार, यह निर्णय आपराधिक न्याय प्रणाली में जमानत के अधिकार और समयबद्ध न्याय के महत्व को रेखांकित करता है। यह पुलिस और न्यायपालिका दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा।
पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM0Mzc2OSMyMDE5IzEjTg==-KwEKGNlrVZ8=