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यदि किसी पुरुष ने महिलाओं से विवाह किया है, तो उसे अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पालन करना होगा: पटना उच्च न्यायालय

 

प्रस्तावना

भारतीय समाज में विवाह न केवल सामाजिक परंपरा है बल्कि एक कानूनी अनुबंध भी है। जब विवाह से जुड़े विवाद न्यायालय तक पहुँचते हैं, तो वे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। पटना उच्च न्यायालय में दायर मिसलेनियस अपील संख्या 35/2016 इसी प्रकार का एक मामला है।

यह मामला पति-पत्नी के बीच विवाह की वैधता और दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना से जुड़ा था। न्यायालय को यह तय करना था कि क्या पेटिशनर, अपीलकर्ता की पहली और वैध पत्नी हैं और क्या वे वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की हकदार हैं।


मामला: मुख्य तथ्य

पत्नी का दावा

  • विवाह:
    पत्नी ने दावा किया कि उनकी और पति की शादी 9 नवंबर, 2003 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुई।

    • विवाह उनके निवास स्थान पर एक पंडित द्वारा संपन्न कराया गया।
    • विवाह में गवाह के रूप में कई लोग उपस्थित थे।
  • वैवाहिक जीवन:

    • शादी के बाद वे तीन वर्षों तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे।
    • बाद में, पति ने उनकी उपेक्षा की और दूसरी शादी कर ली।

पति का पक्ष

  • उन्होंने शादी की बात से इनकार किया।
  • उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 23 नवंबर, 2005 को किसी अन्य महिला से शादी की, जो उनकी कानूनी पत्नी हैं।
  • पत्नी के आरोपों को उन्होंने झूठा और मनगढ़ंत बताया।

न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्य

पत्नी की ओर से

  1. विवाह प्रमाणपत्र (एक्सहिबिट-1):

    • पंडित द्वारा जारी प्रमाणपत्र, जिसमें शादी की तिथि और गवाहों के नाम दर्ज थे।
  2. होटल रजिस्टर और अन्य दस्तावेज:

    • होटल में पति-पत्नी के रूप में उनके रहने का रिकॉर्ड।
    • एलआईसी कार्यालय के दस्तावेज, जिनमें उन्होंने पति को अपना जीवनसाथी बताया।
  3. महिला शिकायत समिति की रिपोर्ट (एक्सहिबिट-9):

    • एलआईसी की महिला शिकायत समिति ने यह निष्कर्ष दिया कि पति और पत्नी ने शादी की थी।
  4. गवाहों की गवाही:

    • कई गवाहों ने विवाह समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पत्नी के दावों का समर्थन किया।

पति की ओर से

  1. दूसरी शादी के दस्तावेज:

    • 23 नवंबर, 2005 को उनकी दूसरी शादी का प्रमाण।
  2. गवाहियों का विरोध:

    • उनके परिवार के सदस्यों और दूसरी पत्नी ने दावा किया कि पत्नी के आरोप झूठे हैं।
    • विवाह प्रमाणपत्र को फर्जी और मनगढ़ंत बताया गया।
  3. आधिकारिक दस्तावेज:

    • उन्होंने यह भी दिखाया कि पत्नी ने 2007 तक एलआईसी के रिकॉर्ड में खुद को अविवाहित बताया था।

गवाहों की गवाही

पत्नी के पक्ष के गवाह

  1. पत्नी:

    • उन्होंने बताया कि विवाह 9 नवंबर, 2003 को संपन्न हुआ।
    • शादी के बाद, वे पति-पत्नी के रूप में तीन साल तक साथ रहे।
    • पति ने दहेज की मांग को लेकर उन्हें छोड़ दिया और दूसरी शादी कर ली।
  2. अन्य गवाह:

    • विवाह समारोह में शामिल अन्य गवाहों ने शादी की पुष्टि की।
    • एलआईसी महिला शिकायत समिति की रिपोर्ट ने विवाह की वैधता को समर्थन दिया।

पति के पक्ष के गवाह

  1. पति:

    • उन्होंने शादी से इनकार किया।
    • उन्होंने दावा किया कि वे केवल सहकर्मी थे।
  2. परिवार के सदस्य:

    • उनके परिवार के सदस्यों ने भी विवाह को झूठा बताया।
    • उनकी मां ने कहा कि पत्नी ने उनके घर में जबरदस्ती घुसने की कोशिश की थी।

न्यायालय का निर्णय

विवाह की वैधता

न्यायालय ने यह माना कि:

  • प्रस्तुत साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि पति और पत्नी के बीच विवाह हुआ था।
  • विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ।
  • एलआईसी की महिला शिकायत समिति की रिपोर्ट ने इस तथ्य को और मजबूती दी।

दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना

न्यायालय ने कहा कि:

  • पत्नी, पति की पहली और वैध पत्नी हैं।
  • उन्हें दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का पूरा हक है।

अन्य टिप्पणियाँ

  • पति का यह दावा कि विवाह प्रमाणपत्र फर्जी है, न्यायालय ने खारिज कर दिया।
  • महिला शिकायत समिति की रिपोर्ट को विश्वसनीय माना गया।

निष्कर्ष

पटना उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उन महिलाओं के लिए भी एक उदाहरण है जो अपने अधिकारों के लिए न्यायालय का सहारा लेती हैं।

इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि:

  • विवाह की वैधता के लिए साक्ष्य और गवाहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
  • न्यायालय केवल तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय करता है।

क्या आप इस निर्णय से सहमत हैं? अपनी राय साझा करें।

Abhishek Kumar

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