दवा निर्माण विवाद में दायर धोखाधड़ी के मामले को पटना हाईकोर्ट ने खारिज किया

दवा निर्माण विवाद में दायर धोखाधड़ी के मामले को पटना हाईकोर्ट ने खारिज किया

निर्णय का सरलीकृत विवरण:

पटना हाईकोर्ट ने एक ऐसे विवाद में हस्तक्षेप किया जिसमें एक फार्मास्युटिकल कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे, जबकि मामला स्पष्ट रूप से व्यापारिक अनुबंध से जुड़ा हुआ था। यह मामला गुजरात की एक दवा निर्माता कंपनी और पटना स्थित एक लाइसेंसधारी कंपनी के बीच ट्रेडमार्क लाइसेंसिंग समझौते से उत्पन्न हुआ था।

2013 में दोनों कंपनियों के बीच एक ट्रेडमार्क लाइसेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत गुजरात की कंपनी को पटना की कंपनी के नाम से दवाइयाँ निर्माण करनी थी। शुरुआत में दोनों पक्षों के बीच व्यापार सामान्य रूप से चला। लेकिन 2015 में, पटना की कंपनी ने आरोप लगाया कि गुजरात की कंपनी ने घटिया गुणवत्ता की दवाइयाँ बनाईं, जिन्हें विदेशों (विशेषकर नाइजीरिया) से वापस कर दिया गया।

पटना की कंपनी ने ₹25 लाख की क्षति का दावा करते हुए एक आपराधिक मामला दर्ज कराया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 417 (धोखाधड़ी) और 418 (धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी को छिपाना) के तहत शिकायत की गई। मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत पर संज्ञान ले लिया।

गुजरात की कंपनी ने इस आदेश को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि यह विवाद पूरी तरह से सिविल (नागरिक) प्रकृति का है और इसे मध्यस्थता (arbitration) के माध्यम से सुलझाना चाहिए, जैसा कि समझौते में स्पष्ट रूप से वर्णित था। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक व्यापारिक संबंध अच्छे थे, तब तक कोई शिकायत नहीं की गई थी, लेकिन जब विवाद उत्पन्न हुआ, तब इसे आपराधिक रंग देने की कोशिश की गई।

पटना हाईकोर्ट ने इन सभी दलीलों को ध्यानपूर्वक सुना और यह स्पष्ट किया कि इस मामले में आपराधिक मंशा का कोई साक्ष्य नहीं है। अदालत ने पाया कि शिकायत का पूरा आधार एक व्यावसायिक अनुबंध का विवाद था, जिसे आपराधिक मुकदमेबाज़ी के माध्यम से नहीं निपटाया जा सकता।


निर्णय का महत्व और इसके प्रभाव:

यह निर्णय न केवल संबंधित पक्षों के लिए बल्कि समस्त व्यापारिक समुदाय और आम नागरिकों के लिए एक मील का पत्थर है। यह स्पष्ट करता है कि हर व्यावसायिक विवाद को आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता।

व्यवसायिक जगत के लिए सीख: कई बार व्यावसायिक साझेदारी में मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। लेकिन यदि उन मतभेदों को अनुबंध के प्रावधानों और सिविल प्रक्रिया के अनुसार निपटाया जाए, तो यह व्यावसायिक नैतिकता और कानूनी प्रक्रिया दोनों का सम्मान होगा। इस फैसले ने व्यवसायों को यह भरोसा दिया है कि उन्हें अनुचित रूप से आपराधिक मामलों में घसीटा नहीं जाएगा।

न्यायिक तंत्र पर प्रभाव: इस निर्णय से न्यायपालिका पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ को कम करने में मदद मिलेगी। जब सिविल विवादों को आपराधिक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह न केवल संसाधनों की बर्बादी करता है, बल्कि असल आपराधिक मामलों की सुनवाई में भी देरी होती है।

सामान्य नागरिकों के लिए मार्गदर्शन: यह फैसला आम जनता को यह समझने में मदद करता है कि किसी व्यावसायिक अनुबंध या नुकसान के मामले में पहले सिविल उपाय अपनाने चाहिए और केवल अत्यंत स्पष्ट आपराधिक मंशा होने पर ही आपराधिक कार्यवाही की ओर बढ़ना चाहिए।

निर्णय के मुख्य मुद्दे और कोर्ट का निष्कर्ष:

  • क्या यह विवाद आपराधिक धोखाधड़ी है या सिविल अनुबंध का उल्लंघन? — केवल सिविल उल्लंघन
  • क्या मध्यस्थता क्लॉज इस विवाद पर लागू होता है? — हाँ
  • क्या मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया संज्ञान सही था? — नहीं, आदेश खारिज किया गया
  • क्या आपराधिक कार्यवाही न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है? — हाँ

पक्षकारों द्वारा उल्लेखित निर्णय:

  • ए.एम. मोहन बनाम राज्य (2024 SCC OnLine 339)
  • माधवराव जीवाजी राव सिंधिया बनाम संभाजीराव चंद्रोजीराव अंग्रे (1988 (1) SCC 692)
  • इंडियन ऑयल कॉर्प बनाम एनईपीसी इंडिया लिमिटेड (2006 (6) SCC 736)

कोर्ट द्वारा अपनाए गए निर्णय:

  • इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर बनाम निमरा सेरग्लास टेक्निक्स (2016 (1) SCC 348)
  • एस.डब्ल्यू. पालनीटकर बनाम राज्य बिहार (2002) 1 SCC 241
  • अनिल महाजन बनाम भोर इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (2005) 10 SCC 228

मामले का नाम: जसविंदर सिंह व अन्य बनाम बिहार राज्य व अन्य

मामला संख्या: CRIMINAL MISCELLANEOUS No.32095 of 2023

उद्धरण: 2025 (1) PLJR 1

पीठ एवं न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति संदीप कुमार

वकीलों के नाम:

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री राजेश कुमार शर्मा, श्री यश आनंद
  • राज्य की ओर से: श्री बिनोद कुमार, सहायक अभियोजन पदाधिकारी
  • प्रति पक्षकार संख्या 2 की ओर से: श्री सुनील कुमार, श्री पंकज कुमार

निर्णय का लिंक:

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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