पटना हाई कोर्ट का निर्णय: वसीयतनामा मामले में ट्रायल शुरू होने के बाद भी संशोधन की अनुमति, कुछ शर्तों के साथ

पटना हाई कोर्ट का निर्णय: वसीयतनामा मामले में ट्रायल शुरू होने के बाद भी संशोधन की अनुमति, कुछ शर्तों के साथ


निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण वसीयतनामा से जुड़े मामले में यह तय किया कि ट्रायल (सुनवाई) शुरू होने के बाद भी यदि कोई पक्ष केवल तथ्य स्पष्ट करने के लिए संशोधन चाहता है, तो कुछ शर्तों के साथ उसकी अनुमति दी जा सकती है।

इस मामले में, याचिकाकर्ता ने निचली अदालत द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें प्रतिवादी को वसीयत याचिका के पैराग्राफ 8 में संशोधन की अनुमति दी गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि जब तीन गवाहों की गवाही पूरी हो चुकी है, तब संशोधन की अनुमति देना अनुचित होगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले Vidyabai बनाम Padmalatha का हवाला देते हुए कहा कि ट्रायल शुरू होने के बाद संशोधन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

दूसरी ओर, प्रतिवादी का कहना था कि यह संशोधन केवल पहले से दर्ज तथ्य को स्पष्ट करने के लिए है, कोई नया दावा नहीं जोड़ा जा रहा है। उनके अनुसार, याचिकाकर्ता ने खुद अपनी पहचान और निवास स्थान से जुड़े तथ्य छुपाए थे, और अब उन्हें केवल स्पष्ट किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता अब भी ससुराल में रह रही हैं और संपत्ति में लेनदेन कर रही हैं, जो विवादित वसीयत की संपत्ति से संबंधित है। ये तथ्य उनके आधार कार्ड और शपथ पत्र से साबित होते हैं।

प्रतिवादी ने दो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला भी दिया:

  • State of Bihar बनाम Modern Tent House (2017)
  • Raj Kumar Bhatia बनाम Subhash Chander Bhatia (2018)

इन फैसलों में कहा गया कि यदि कोई संशोधन केवल पूर्व में लिखी गई बातों को स्पष्ट करने या विस्तार देने के लिए हो और उससे दूसरे पक्ष को नुकसान न हो, तो कोर्ट ऐसे संशोधन की अनुमति दे सकती है।

पटना हाई कोर्ट ने माना कि भले ही प्रतिवादी यह नहीं बता सके कि ट्रायल शुरू होने से पहले उन्होंने संशोधन क्यों नहीं मांगा, लेकिन संशोधन का उद्देश्य विवाद के वास्तविक मुद्दे को स्पष्ट करना है, न कि कोई नया मामला बनाना। इसलिए न्याय के हित में संशोधन को मंजूरी दी जा सकती है।

हालांकि, कोर्ट ने संशोधन की अनुमति कुछ शर्तों के साथ दी:

  • प्रतिवादी को ₹10,000 याचिकाकर्ता को भुगतान करना होगा।
  • ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर दे ताकि वह संशोधन का जवाब दे सके।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय यह बताता है कि अदालत केवल प्रक्रियागत नियमों का पालन करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य है विवाद के वास्तविक मुद्दों का समाधान करना। जब कोई पक्ष पहले से कही गई बातों को स्पष्ट करने के लिए संशोधन चाहता है और उससे दूसरे पक्ष को कोई असली नुकसान नहीं होता, तो कोर्ट ऐसा संशोधन अनुमति दे सकती है।

इसका सीधा लाभ आम जनता को मिलेगा, विशेषकर उन लोगों को जो संपत्ति या वसीयतनामा से जुड़ी कानूनी प्रक्रिया में फंसे हैं। यह फैसला स्पष्ट करता है कि जरूरी होने पर कोर्ट प्रक्रिया में लचीलापन दिखा सकती है, बशर्ते न्याय बना रहे।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या ट्रायल शुरू होने के बाद Order 6 Rule 17 के तहत संशोधन की अनुमति दी जा सकती है?
    ✔ हां, यदि वह नया दावा न हो और दूसरी पार्टी को नुकसान न पहुंचे।
  • क्या बिना पूर्व सतर्कता के भी संशोधन की अनुमति मिल सकती है?
    ✔ हां, न्यायहित में यदि संशोधन जरूरी हो तो।
  • कोर्ट का अंतिम निर्णय क्या रहा?
    ✔ संशोधन की अनुमति दी गई, ₹10,000 का जुर्माना और याचिकाकर्ता को उत्तर देने का पूरा अवसर।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Vidyabai बनाम Padmalatha, Civil Appeal No. 7251 of 2008

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of Bihar बनाम Modern Tent House, (2017) 8 SCC 567
  • Raj Kumar Bhatia बनाम Subhash Chander Bhatia, (2018) 2 SCC 87

मामले का शीर्षक
Shipu Devi बनाम Piyush Kumar

केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 336 of 2024

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 37

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री रंजन कुमार सिन्हा एवं सुश्री सीमा — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री प्रभात रंजन सिंह — प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक
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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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