निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी सरकारी कर्मी के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही समाप्त हो चुकी हो और उसमें दंड भी दिया जा चुका हो, तो केवल लंबित न्यायिक कार्यवाही के आधार पर ग्रैच्युटी रोकना अवैध है, जब तक कि इसके लिए कोई विशेष और स्पष्ट आदेश न हो।
इस मामले में याचिकाकर्ता बिहार पुलिस में उप-निरीक्षक के पद से 31 अगस्त 2020 को सेवानिवृत्त हुए। उनके खिलाफ वर्ष 2016 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत एक मामला दर्ज हुआ था, जिसमें उन्हें रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया। इसके बाद विभागीय कार्यवाही भी शुरू हुई, जिसमें उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
हालाँकि, पटना हाईकोर्ट ने पहले ही उस बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए उन्हें सेवा में पुनः बहाल करने और बकाया वेतन देने का आदेश दिया था। पुनः बहाली के बाद वे नियमित रूप से सेवानिवृत्त हो गए।
सेवानिवृत्ति के समय विभागीय कार्यवाही को बिहार पेंशन नियमावली की धारा 43(B) के तहत जारी रखा गया और एक साल तक 10% पेंशन रोकने तथा दो वेतनवृद्धियाँ रोकने का दंड दिया गया। लेकिन ग्रैच्युटी को रोकने का कोई स्पष्ट आदेश नहीं था।
सरकार का पक्ष था कि धारा 43(D) के अनुसार जब तक कोई न्यायिक या विभागीय कार्यवाही लंबित हो, तब तक ग्रैच्युटी नहीं दी जा सकती। लेकिन कोर्ट ने माना कि कानून केवल सरकार को यह अधिकार देता है, इसका स्वतः कोई प्रभाव नहीं होता। यदि सरकार ग्रैच्युटी रोकना चाहती थी तो उसे स्पष्ट आदेश जारी करना चाहिए था।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सरकारी कर्मियों के लिए राहतपूर्ण है जिनके सेवानिवृत्ति के बाद भी किसी कारणवश विभागीय या न्यायिक कार्यवाही जारी रहती है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि पेंशन और ग्रैच्युटी अधिकार हैं, न कि सरकार की मर्जी से मिलने वाली सुविधाएं। सरकार को इन अधिकारों को रोकने के लिए कानूनन स्पष्ट आदेश देने होंगे।
सरकार के लिए यह निर्णय यह सीख देता है कि बिना उचित प्रक्रिया के सेवानिवृत्ति लाभ नहीं रोके जा सकते, और विभागीय अधिकारों की सीमा तय की गई है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना स्पष्ट आदेश के ग्रैच्युटी रोकी जा सकती है?
➤ नहीं, इसके लिए धारा 43(D) के तहत स्पष्ट आदेश अनिवार्य है। - क्या विभागीय कार्यवाही समाप्त होने के बाद और दंड मिलने के बाद ग्रैच्युटी रोकी जा सकती है?
➤ नहीं, विभाग केवल तयशुदा दंड तक ही सीमित रह सकता है। - क्या लंबित आपराधिक मुकदमा ग्रैच्युटी रोकने के लिए पर्याप्त है?
➤ नहीं, जब तक स्पष्ट आदेश न हो।
मामले का शीर्षक
Dinesh Kumar Singh v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1757 of 2022
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 74
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री प्रभाकर सिंह, श्री प्रणव भास्कर, श्री बिरोत्तम नारायण सिंह – याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री मनीष कुमार (GP-4), श्री अजय कुमार – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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