पटना हाई कोर्ट का फैसला: प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से पेंशन की गणना करने का निर्देश

पटना हाई कोर्ट का फैसला: प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से पेंशन की गणना करने का निर्देश

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाते हुए दरभंगा स्थित कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय और बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि दो सेवानिवृत्त व्याख्याताओं की पेंशन की गणना उनके प्रारंभिक नियुक्ति वर्ष 1979–1980 से की जाए, न कि स्थायी नियुक्ति वर्ष 2002 से।

इन दोनों याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्कृत कॉलेजों में हुई थी। उन्हें मान्यता प्राप्त स्वीकृत पदों पर 1979–1980 में अस्थायी रूप से नियुक्त किया गया और विश्वविद्यालय ने उनके कार्य को औपचारिक रूप से मान्यता दी। वे लगातार सेवा में बने रहे और बाद में बिहार कॉलेज सेवा आयोग की अनुशंसा पर 2002 में स्थायी रूप से नियुक्त हुए।

सेवानिवृत्ति (65 वर्ष) के बाद, उन्होंने “त्रैतीय लाभ योजना” यानी पेंशन, ग्रेच्युटी और भविष्य निधि की मांग की। हालाँकि, विश्वविद्यालय ने उनकी सेवा की संपूर्ण अवधि को मान्यता न देते हुए केवल 2002 से पेंशन गणना की, जिससे उन्हें कम पेंशन मिली।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई और विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त थी, इसलिए पूरी सेवा अवधि को पेंशन के लिए गिना जाना चाहिए। उन्होंने पुराने सरकारी आदेशों और अदालती फैसलों का हवाला दिया जिसमें अस्थायी सेवा को वेतन निर्धारण और पदोन्नति में मान्यता दी गई थी।

सरकारी पक्ष का तर्क था कि केवल स्थायी नियुक्ति की तिथि से ही पेंशन गणना होनी चाहिए, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की सेवा निरंतर, सरकारी अनुदान से वेतनयुक्त और विश्वविद्यालय द्वारा मान्य रही है, इसलिए उसे नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण होगा।

कोर्ट ने बिहार पेंशन नियमावली, 1950 के नियम 58 और 59 का हवाला देते हुए कहा कि यदि सेवा निरंतर है और सरकारी खर्च से चल रही है, भले ही वह अस्थायी रही हो, उसे पेंशन योग्य माना जा सकता है।

कोर्ट ने विश्वविद्यालय और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे 12 हफ्तों के अंदर याचिकाकर्ताओं की पेंशन दोबारा तय करें और संबंधित लाभ प्रदान करें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय उन सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेजों में काम करने वाले शिक्षकों के लिए बड़ा सहारा है, जिनकी सेवाएं वर्षों तक अस्थायी रूप में रहीं लेकिन उन्हें नियमित मान्यता मिली। यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि यदि सेवा में कोई बाधा नहीं रही और नियुक्ति स्वीकृत पद पर हुई हो, तो उस सेवा को पेंशन के लिए अनदेखा नहीं किया जा सकता।

राज्य सरकार के लिए यह संदेश है कि पूर्व निर्धारित नियमों और न्यायिक निर्देशों के अनुसार पेंशन गणना सुनिश्चित करनी चाहिए। इससे भविष्य में इसी तरह के मामलों में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या नियमित की गई अस्थायी सेवा पेंशन के लिए गिनी जा सकती है?
    • ✔ हाँ, कोर्ट ने इसे मान्य किया।
  • क्या केवल स्थायी नियुक्ति तिथि से पेंशन गणना करना उचित है?
    • ✘ नहीं, कोर्ट ने इसे अनुचित ठहराया।
  • क्या बिहार पेंशन नियम 1950 के नियम 58 और 59 लागू होते हैं?
    • ✔ हाँ, कोर्ट ने इन नियमों को निर्णय का आधार बनाया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Dr. Kedarnath Pandey v. State of Bihar (CWJC No. 7636/2014)
  • Dr. (Smt.) Abha Rani v. Magadh University (CWJC No. 511/2018)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • BR Ambedkar Bihar University Teachers Association v. State of Bihar, (1998) 2 PLJR 103
  • Dr. Sureshwar Jha v. State of Bihar, CWJC No. 20310/2010
  • Registrar General, Patna High Court v. Ram Vyas Dubey, LPA No. 198/2016

मामले का शीर्षक

  • Dr. Shambhudhar Jha v. Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University & Ors.
  • Dr. Shubha Chandra Mishra v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

  • CWJC No. 516 of 2019
  • CWJC No. 12689 of 2023

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 94

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री दुर्गानंद झा — याचिकाकर्ताओं की ओर से
  • श्री प्रभाकर झा, जीपी-27 — राज्य की ओर से (CWJC No. 516/2019)
  • श्रीमती बिनिता सिंह, एससी-28 एवं श्री विवेक आनंद अमृतेश — राज्य की ओर से (CWJC No. 12689/2023)
  • श्री दीपक कुमार एवं श्री मुकुंद मोहन झा — विश्वविद्यालय की ओर से

निर्णय का लिंक

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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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