निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक विधवा महिला से पेंशन की अधिक भुगतान की वसूली को अवैध करार दिया है। यह महिला अपने स्वर्गीय पति की पारिवारिक पेंशन प्राप्त कर रही थी, जो भारत सरकार के एक विभाग में वरिष्ठ ऑडिटर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। कोर्ट ने माना कि बैंक द्वारा ₹4.13 लाख से अधिक की राशि वसूलना नियमों के खिलाफ है, क्योंकि यह भुगतान बैंक की गलती से हुआ और इसकी वसूली की प्रक्रिया उचित नहीं थी।
महिला के पति ने वर्ष 1997 में सरकारी सेवा से अवकाश लिया था और 2001 में उनका निधन हो गया। इसके बाद महिला को पारिवारिक पेंशन मिलनी शुरू हो गई। लेकिन 2008 और फिर 2018 में बैंक (भारतीय स्टेट बैंक) की तरफ से उसे सूचित किया गया कि उससे गलती से ज्यादा पेंशन दी गई है और अब उसे यह राशि लौटानी होगी।
बैंक ने यह भी कहा कि जब 2008 में उसकी पेंशन फाइलें केंद्रीय पेंशन प्रोसेसिंग केंद्र, पटना में ट्रांसफर हुईं, तब सिस्टम की गलती से महिला को ज्यादा पेंशन मिलने लगी। बाद में डेटा शुद्धिकरण के दौरान यह गलती पकड़ में आई और बैंक ने ₹1,11,279 की कटौती शुरू कर दी।
महिला ने इस पर आपत्ति जताई और कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने पाया कि ‘डिफेंस पेंशन पेमेंट इंस्ट्रक्शंस, 2013’ के क्लॉज 103.2 के अनुसार, अगर पहली गलती के 12 महीने के अंदर वसूली का आदेश नहीं होता है, तो यह कार्य केवल रक्षा लेखा नियंत्रक (पेंशन) के आदेश से ही किया जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों से जुड़ा है, जहां यह तय किया गया है कि रिटायर या वर्ग III और IV कर्मचारियों से ऐसे वसूली करना अन्यायपूर्ण, कठोर और अवैध है, खासकर जब उनकी कोई गलती नहीं हो।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला लाखों पेंशनभोगियों और उनके परिजनों के लिए राहत लेकर आया है, खासकर उन लोगों के लिए जो केवल पेंशन पर निर्भर हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी विभाग या बैंक अपनी गलती के कारण दी गई अतिरिक्त राशि को वर्षों बाद बिना उचित प्रक्रिया के वसूल नहीं सकते। यह निर्णय सरकार और बैंकों को चेतावनी देता है कि वे प्रक्रियात्मक न्याय और मानवीय दृष्टिकोण को नजरअंदाज न करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या 12 महीने से अधिक समय बाद बिना उच्च प्राधिकरण की अनुमति के पेंशन वसूली की जा सकती है?
- नहीं, डिफेंस पेंशन नियमों के अनुसार यह गैरकानूनी है।
- क्या एक विधवा से, जिसकी कोई गलती नहीं है, अधिक भुगतान की वसूली की जा सकती है?
- नहीं, कोर्ट ने कहा कि यह अनुचित, कठोर और गैरकानूनी है।
- क्या बैंक द्वारा लिए गए सामान्य वचन-पत्र के आधार पर वसूली न्यायसंगत है?
- नहीं, कोर्ट ने कहा कि यह वचन-पत्र वैध वसूली का आधार नहीं हो सकता।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- High Court of Punjab & Haryana vs. Jagdev Singh, (2016) 14 SCC 267
- Paras Nath Singh vs. State of Bihar, (2009) 6 SCC 314
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of Punjab vs. Rafiq Masih, (2015) 4 SCC 334
मामले का शीर्षक
Kalawati Devi vs. The Union of India & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 4050 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 85
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री जितेंद्र कुमार – याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री एस.डी. संजय, अपर सॉलिसिटर जनरल – प्रतिवादी की ओर से
- श्री राजेश कुमार वर्मा, ए.एस.जी. – प्रतिवादी की ओर से
- श्री संजीव कुमार – बैंक की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNDA1MCMyMDE5IzEjTg==-z84QLoIIhSg=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।