पटना हाई कोर्ट ने दी किशोर न्याय मामले में नए सिरे से जांच के आदेश

पटना हाई कोर्ट ने दी किशोर न्याय मामले में नए सिरे से जांच के आदेश

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि गंभीर अपराधों में किशोर होने का दावा बहुत ही सावधानी से जांचा जाना चाहिए। यह मामला 1996 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है जिसमें एक किशोर द्वारा ट्रैक्टर से कुचलने के कारण एक लड़के की मौत हो गई थी। पीड़ित के पिता (याचिकाकर्ता) ने आरोपी के किशोर होने के दावे को चुनौती दी थी।

घटना 24 मई 1996 को हुई जब एक ट्रैक्टर ने लड़के को कुचल दिया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। ट्रैक्टर चला रहा व्यक्ति (विरोधी पक्ष संख्या 2) ने बाद में दावा किया कि वह घटना के समय नाबालिग था। यह मामला किशोर न्याय बोर्ड, समस्तीपुर को जांच के लिए भेजा गया।

बोर्ड ने आरोपी को नाबालिग मानते हुए सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। लेकिन हाई कोर्ट ने पाया कि इस निर्णय में कई गंभीर त्रुटियाँ थीं। याचिकाकर्ता ने एक स्कूल प्रमाणपत्र और प्रधानाध्यापक का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जिसमें आरोपी की जन्मतिथि 05.06.1977 दर्ज थी — इसका मतलब यह था कि वह घटना के समय 18 वर्ष से अधिक का था।

इसके बावजूद, किशोर न्याय बोर्ड ने बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड का एक अन्य प्रमाणपत्र मान्य माना जिसमें जन्मतिथि 22.01.1980 बताई गई थी। इस प्रमाणपत्र को केवल वकील की सत्यापना पर सही मान लिया गया, जबकि इसे जारी करने वाली संस्था से पुष्टि करवाना जरूरी था।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता (पीड़ित का पिता) को इस जांच में सुना जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई और उन्हें भाग लेने का अवसर नहीं मिला — जो प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है।

अदालत ने अभियोजन पक्ष की भी आलोचना की, क्योंकि उन्होंने गवाहों को पेश नहीं किया, जिससे पीड़ित पक्ष को नुकसान हुआ। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड का आदेश रद्द कर दिया और नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला इस बात को पुष्ट करता है कि किशोर होने का दावा सिर्फ प्रमाणपत्रों के आधार पर नहीं, बल्कि पूरी तरह जांच के बाद ही स्वीकार किया जाना चाहिए — खासकर जब मामला हत्या या सड़क दुर्घटना जैसे गंभीर अपराध से जुड़ा हो।

यह निर्णय यह भी स्थापित करता है कि पीड़ित के परिजन को भी जांच प्रक्रिया में भाग लेने का पूरा अधिकार है। यदि उन्हें नोटिस नहीं दिया गया और उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को नहीं देखा गया, तो पूरी प्रक्रिया अवैध मानी जा सकती है।

इस फैसले से यह भी संदेश जाता है कि सरकारी वकीलों और न्याय बोर्ड को सतर्क रहना चाहिए और किसी भी प्रकार की चूक से न्याय से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या किशोर न्याय बोर्ड का आरोपी को नाबालिग मानना सही था?
    ❌ नहीं, स्कूल प्रमाणपत्रों से साफ था कि वह बालिग था।
  • क्या पीड़ित के पिता को जांच में भाग लेने का अधिकार था?
    ✔ हां, उन्हें सुना जाना चाहिए था।
  • क्या एक वकील के सत्यापित दस्तावेज को ही मान्य मानना उचित है?
    ❌ नहीं, इसे जारी करने वाले विभाग से पुष्टि जरूरी है।
  • इन त्रुटियों का परिणाम क्या हुआ?
    ✔ हाई कोर्ट ने मामला नए सिरे से जांच के लिए लौटा दिया।

मामले का शीर्षक
Suresh Rai vs. The State of Bihar and Another

केस नंबर
Criminal Revision No. 38 of 2018
(Criminal Appeal (DB) No. 1375 of 2017 और बिभूतिपुर थाना कांड संख्या 60/1996 से संबंधित)

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 91

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री रमेश प्रसाद सिंह, श्री संजय कुमार सिंह, श्री रवि शंकर — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री मोहम्मद आरिफ, APP — राज्य की ओर से
  • श्री लक्ष्मेन्द्र कुमार यादव — प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NyMzOCMyMDE4IzEjTg==-b4yQSjLbvUs=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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