निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक सड़क दुर्घटना से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें मृतक के परिजनों ने मोटर वाहन दावा न्यायाधिकरण (MACT), खगड़िया द्वारा दिए गए मुआवजे को चुनौती दी थी। मृतक एक 22 वर्षीय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर था, जिसकी बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। यह हादसा तब हुआ जब जिस बस में वह सवार था, वह चालक की लापरवाही के कारण नदी में गिर गई।
परिजनों ने ₹13,64,500 का मुआवजा मांगा था, लेकिन MACT ने मात्र ₹2,02,500 का मुआवजा 7% वार्षिक ब्याज के साथ मंजूर किया। इस फैसले को मृतक के माता-पिता और छोटे भाइयों ने पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी।
मूल न्यायालय ने मृतक की नौकरी का पत्र (एपॉइंटमेंट लेटर) यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह वेतन पर्ची नहीं है और उसकी मासिक आय को ₹3,000 मान लिया गया। हाई कोर्ट ने माना कि इस फैसले में गंभीर त्रुटियां हैं क्योंकि बीमा कंपनी ने मृतक की आय पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की और न ही कोई विरोधी सबूत पेश किया।
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिए गए मार्गदर्शक निर्णयों का पालन करते हुए यह स्पष्ट किया कि अपील के दौरान उचित और न्यायसंगत मुआवजा तय किया जाना चाहिए, भले ही दुर्घटना पुराने समय की हो। इस आधार पर कोर्ट ने मृतक की आय ₹10,000 प्रति माह मानी, उस पर 40% भविष्य की संभावनाएं जोड़ी, और फिर उपयुक्त गुणक (multiplier) 18 का उपयोग करते हुए मुआवजा पुनः निर्धारित किया।
इसके अतिरिक्त, मृतक के माता-पिता को “पैरेंटल कंसोर्टियम” के तहत अलग से राशि दी गई, और अंतिम संस्कार तथा संपत्ति हानि के लिए भी अतिरिक्त राशि जोड़ी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन परिवारों के लिए एक मिसाल है जो अपने कमाऊ बेटे या बेटी को सड़क हादसे में खो देते हैं और उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। यह दिखाता है कि न्यायालय अब महज तकनीकी बातों पर नहीं टिकता बल्कि पीड़ित परिवारों की वास्तविक हानि को समझते हुए उचित मुआवजा देने की कोशिश करता है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि सिर्फ वेतन पर्ची न होने का मतलब यह नहीं कि मृतक की आमदनी को नकारा जाए, अगर अन्य साक्ष्य मौजूद हों। साथ ही, यह निर्णय बीमा कंपनियों को भी यह संदेश देता है कि वे केवल औपचारिक आपत्ति के सहारे मुआवजा घटवाने की कोशिश न करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या मृतक की ₹10,000 मासिक आय को स्वीकार किया जा सकता है?
- हां, कोर्ट ने नियुक्ति पत्र को विश्वसनीय साक्ष्य माना।
- क्या पुराने मामलों में भी भविष्य की संभावनाएं और उपयुक्त गुणक (multiplier) लागू हो सकते हैं?
- हां, कोर्ट ने कहा कि अपील में सुप्रीम कोर्ट के नए दिशा-निर्देश भी लागू होते हैं।
- क्या मृतक के नाबालिग भाई भी मुआवजा पाने के हकदार हैं?
- नहीं, कोर्ट ने कहा कि वे माता-पिता पर आश्रित हैं और अलग मुआवजा के पात्र नहीं हैं।
- कुल कितना मुआवजा तय किया गया?
- ₹15,82,000 प्लस 8% वार्षिक ब्याज आवेदन की तारीख से।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Sarla Verma v. Delhi Transport Corporation, (2009) 6 SCC 121
- National Insurance Co. Ltd. v. Pranay Sethi, 2017 (4) PLJR 261
- Reshma Kumari v. Madan Mohan, (2013) 9 SCC 65
- Magma General Insurance Co. Ltd. v. Nanu Ram, 2018 (4) PLJR 229
मामले का शीर्षक
Bibi Basrun Nishan & Others vs. Managing Director, Bihar State Road Transport Corporation & Others
केस नंबर
Miscellaneous Appeal No.420 of 2014
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 80
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री अब्दुल मन्नान खान, श्री अनमुल हक
- प्रतिवादी संख्या 1 की ओर से: श्री पी.के. वर्मा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अरविंद कुमार, श्री राम चंद्र लाल दास
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiM0MjAjMjAxNCMxI04=-gMFBB8oxEo4=
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