पटना हाई कोर्ट का फैसला: किरायेदार द्वारा मुकदमा टालने की कोशिश नाकाम, अदालत ने याचिका खारिज की

पटना हाई कोर्ट का फैसला: किरायेदार द्वारा मुकदमा टालने की कोशिश नाकाम, अदालत ने याचिका खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक किरायेदार की विशेष नागरिक याचिका (सिविल मिसलेनियस जुरिस्डिक्शन) को खारिज कर दिया, जो मकान खाली करने के मुकदमे में जानबूझकर देरी करना चाहता था। यह मामला एक ट्रस्ट द्वारा किरायेदार के खिलाफ व्यक्तिगत जरूरत के आधार पर दायर किए गए बेदखली के मुकदमे से जुड़ा था।

इससे पहले, किरायेदार ने साक्ष्य पेश नहीं किया था, जिसके कारण निचली अदालत ने उसका पक्ष बंद कर दिया था। इस पर किरायेदार ने पटना हाई कोर्ट में एक याचिका (CMJ No. 424 of 2019) दायर की, जिसमें अदालत ने उसे केवल एक मौका दिया कि वह 29.04.2019 को अदालत में उपस्थित होकर खुद गवाही दे सके। आदेश में स्पष्ट कहा गया था कि उसके अलावा कोई अन्य गवाह पेश नहीं किया जाएगा।

निर्धारित दिन पर किरायेदार कोर्ट में पेश हुआ और उसकी जिरह पूरी हुई। लेकिन उसी दिन उसने चार नए आवेदन दायर कर दिए — जिसमें पहले केस की फाइल मंगवाने, रजिस्ट्री दस्तावेज बुलवाने, नए दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति और उन दस्तावेजों को प्रमाण के रूप में दर्ज करने की मांग की गई।

निचली अदालत ने इन सभी आवेदनों को खारिज कर दिया और कहा कि हाई कोर्ट का आदेश केवल गवाही देने तक सीमित था। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बार-बार ऐसे आवेदन देकर जानबूझकर केस को टालने की कोशिश कर रहा है।

फिर से हाई कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी गई, लेकिन इस बार हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि निचली अदालत ने कोई गलती नहीं की है और उसने पूर्व आदेश का सही पालन किया है। कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता मुकदमे को अनावश्यक रूप से लंबा खींचना चाहता था।

इसलिए, याचिका को बिना किसी आधार के मानते हुए खारिज कर दिया गया और बेदखली का मामला आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह बताता है कि अदालतें अब देरी की रणनीति को बर्दाश्त नहीं करतीं। विशेषकर किराया और बेदखली जैसे मामलों में जहां मकान मालिकों को वैध ज़रूरत होती है, वहां न्यायालयों का यह दृष्टिकोण संतुलित और समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करता है।

इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया कि किसी भी पक्ष को मुकदमा अनावश्यक रूप से खींचने की छूट नहीं दी जा सकती, खासकर जब उच्च न्यायालय के आदेशों की सीमाएं स्पष्ट हों।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या निचली अदालत ने दस्तावेज बुलवाने और नए साक्ष्य देने से इनकार करके गलती की?
    • नहीं। हाई कोर्ट ने कहा कि उसने पूर्व आदेश का सही पालन किया।
  • क्या हाई कोर्ट का पिछला आदेश मुकदमे को फिर से खोलने की अनुमति देता था?
    • नहीं। आदेश केवल याचिकाकर्ता की गवाही तक सीमित था।
  • क्या याचिकाकर्ता का व्यवहार प्रक्रिया के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है?
    • हाँ। कोर्ट ने इसे देरी की रणनीति माना।

मामले का शीर्षक
Ravi Prakash @ Ravi Chopra बनाम Ashok Kumar Jivrajka (Secretary, Tormal Dilsukh Rai Trust)

केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 791 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 93

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बिमलेंदु मिश्रा
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री धनंजय कुमार पांडेय

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjNzkxIzIwMTkjMSNO-DTcWEUTqUFY=

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Aditya Kumar

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