सेना पुलिस की महिला कांस्टेबल का त्यागपत्र वैध, 10 महीने बाद वापस लेने की मांग खारिज – पटना हाई कोर्ट का निर्णय

सेना पुलिस की महिला कांस्टेबल का त्यागपत्र वैध, 10 महीने बाद वापस लेने की मांग खारिज – पटना हाई कोर्ट का निर्णय

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महिला कांस्टेबल की अपील को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी का त्यागपत्र स्वेच्छा से दिया गया है और उसे सक्षम अधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, तो उसे बाद में वापस नहीं लिया जा सकता।

यह मामला बिहार मिलिट्री पुलिस की महिला विंग की एक पूर्व कांस्टेबल से जुड़ा है, जिन्होंने 12 जून 2012 को व्यक्तिगत कारणों से त्यागपत्र दिया था। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि उनके परिवार व पति इस नौकरी के पक्ष में नहीं हैं और उनका वैवाहिक जीवन भी तनावपूर्ण हो गया है। इसके अलावा वे मां बनने वाली थीं, और उनके पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

त्यागपत्र के बाद उन्होंने 13 और 14 जून को दो और पत्र देकर अपने फैसले की पुष्टि की। उनका त्यागपत्र 19 जून 2012 को स्वीकृत कर लिया गया। लगभग 10 महीने बाद, अप्रैल 2013 में उन्होंने निवेदन किया कि वे मानसिक तनाव में थीं और मातृत्व अवकाश न मिलने के कारण उन्होंने त्यागपत्र दिया, जिसे अब वापस लेना चाहती हैं।

लेकिन कोर्ट ने कहा कि:

  • उनके सभी पत्रों से स्पष्ट है कि त्यागपत्र पूरी तरह स्वेच्छा से दिया गया था।
  • उन्हें दो दिन का समय पुनर्विचार के लिए दिया गया और एक सप्ताह बाद त्यागपत्र स्वीकार किया गया।
  • कोई दस्तावेज या साक्ष्य ऐसा नहीं है जिससे यह साबित हो कि अवकाश देने से मना किया गया या कोई दबाव डाला गया।
  • उन्होंने खुद ही तुरंत प्रभाव से त्यागपत्र दे दिया, दो महीने की नोटिस अवधि का पालन नहीं किया।

कोर्ट ने माना कि यह मामला किसी भी तरह जबरन कराए गए त्यागपत्र का नहीं है। यह पूरी तरह व्यक्तिगत पारिवारिक परिस्थितियों के कारण लिया गया निर्णय था और कानून के अनुसार वैध था।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी कर्मचारियों, खासकर सुरक्षा बलों और अनुशासित सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों के लिए मार्गदर्शक है। इससे स्पष्ट होता है कि:

  • यदि त्यागपत्र स्वेच्छा से दिया गया है और स्वीकार कर लिया गया है, तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
  • भावनात्मक तनाव या पारिवारिक समस्याएं, यदि दस्तावेजी रूप में साबित न हों, तो उन्हें कानूनी आधार नहीं माना जा सकता।
  • “Rule 808” में दी गई “कुछ समय” की शर्त का पालन हो चुका था; एक सप्ताह का समय पर्याप्त माना गया।

यह फैसला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो जल्दबाज़ी या भावनात्मक दबाव में त्यागपत्र दे देते हैं और बाद में उसे वापस लेने की कोशिश करते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या त्यागपत्र जबरदस्ती दिया गया था?
    ➤ नहीं। यह पूरी तरह व्यक्तिगत कारणों से स्वेच्छा से दिया गया त्यागपत्र था।
  • क्या अधिकारी ने त्यागपत्र जल्दबाज़ी में स्वीकार किया?
    ➤ नहीं। दो दिन विचार करने का समय दिया गया और एक सप्ताह बाद स्वीकृति दी गई।
  • क्या त्यागपत्र को 10 महीने बाद वापस लिया जा सकता है?
    ➤ नहीं। एक बार स्वीकार होने के बाद त्यागपत्र को वापस लेना संभव नहीं होता।
  • क्या दो महीने की नोटिस अवधि जरूरी थी?
    ➤ यह नियम संगठनात्मक प्रबंधन के लिए होता है। यदि कर्मचारी खुद तत्काल त्यागपत्र देता है, तो यह अवधि बाध्यता नहीं बनती।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Dr. Prabha Atri v. State of U.P., (2003) 1 SCC 701
  • Dr. N.P. Rao v. Tata Iron and Steel Co., 1990 BBCJ 149
  • Rakhi Kumari v. State of Bihar, 2014 (3) PLJR 443

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Chand Mal Chayal v. State of Rajasthan, (2006) 10 SCC 258

मामले का शीर्षक
Kavita Kumari बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 895 of 2018 in CWJC No. 5731 of 2015

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 107

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप साही
माननीय न्यायमूर्ति अंजना मिश्रा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री राम ह्रदय प्रसाद एवं श्रीमती मारुति कुमारी — अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री सरोज कुमार शर्मा (AC to AAG-3) — प्रतिवादी राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM4OTUjMjAxOCMxI04=-W4nqCMttVl8=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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