एनडीपीएस केस में प्रक्रियागत त्रुटियों के आधार पर आरोपी को बरी किया पटना हाई कोर्ट ने

एनडीपीएस केस में प्रक्रियागत त्रुटियों के आधार पर आरोपी को बरी किया पटना हाई कोर्ट ने

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक गंभीर अपराध के आरोपी को दोषमुक्त कर दिया, जिसे पहले नशीली दवाओं और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) के तहत 10 साल की सजा और ₹1 लाख का जुर्माना सुनाया गया था। यह मामला साल 2011 में मुजफ्फरपुर जिले में दर्ज हुआ था, जिसमें तीन लोगों को मोटरसाइकिल पर पकड़ा गया और उनके पास से चरस बरामद होने का दावा किया गया था। अपीलकर्ता के पास से 250 ग्राम चरस मिलने का आरोप था।

ट्रायल कोर्ट ने पुलिस गवाहों और जब्ती सूची के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराया था। लेकिन जब मामला हाई कोर्ट में पहुंचा, तब न्यायालय ने अभियोजन पक्ष की कई गंभीर गलतियों और संदेहास्पद बातों की ओर ध्यान दिया, जिनसे पूरी जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े हुए।

कोर्ट ने खासतौर पर निम्नलिखित बातों को आधार बनाया:

  • छापेमारी करने वाला पुलिस अधिकारी ही जांच अधिकारी भी था, जो निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • पुलिस ने दावा किया कि जब्त चरस का सैंपल मौके पर तैयार किया गया था, लेकिन कोर्ट में न तो वह सैंपल पेश किया गया और न ही संबंधित सबूत दिखाए गए।
  • सैंपल भेजने और न्यायाधीश द्वारा अनुमति देने की तारीखों में गड़बड़ी पाई गई, जिससे एफएसएल रिपोर्ट पर संदेह हुआ।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात, अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी को उसके वैधानिक अधिकार, यानी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी का विकल्प, धारा 50 NDPS अधिनियम के तहत बताया गया था।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Vijaysinh Chandubha Jadeja v. State of Gujarat पर भरोसा किया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि धारा 50 का पालन अनिवार्य है और इसका उल्लंघन तलाशी को अवैध बनाता है।

इसके अलावा, अभियोजन यह भी साबित नहीं कर सका कि जब्त पदार्थ कोर्ट में पेश किया गया था, और स्वतंत्र गवाहों की ठीक से गवाही भी नहीं ली गई। कोर्ट ने इन सब बातों को अभियोजन की कमजोरी बताया और अपीलकर्ता को बरी कर दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हो, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि NDPS जैसे सख्त कानूनों के अंतर्गत भी नागरिकों के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित हैं। कानून की प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना अनिवार्य है, चाहे मामला कितना भी गंभीर क्यों न हो।

यह निर्णय पुलिस और जांच एजेंसियों को यह याद दिलाता है कि किसी भी आरोप के लिए न्यायिक प्रक्रिया का पालन जरूरी है। कानूनी चूक और पारदर्शिता की कमी से मजबूत केस भी कमजोर पड़ सकता है।

आम जनता के लिए यह एक सकारात्मक संदेश है कि अदालतें कानून का पालन करवाने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सतर्क हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या आरोपी को NDPS अधिनियम की धारा 50 के तहत अपने अधिकार की जानकारी दी गई थी?
    • निर्णय: नहीं, और इसका पालन न करने से तलाशी अवैध हो गई।
  • मुद्दा: क्या अभियोजन की प्रक्रियात्मक चूकों से मामला प्रभावित हुआ?
    • निर्णय: हाँ, कई गंभीर चूकें पाई गईं जिससे अभियोजन की विश्वसनीयता खत्म हो गई।
  • मुद्दा: क्या दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाना चाहिए?
    • निर्णय: नहीं, कोर्ट ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

कोई विशेष निर्णय पक्षकारों द्वारा संदर्भित नहीं किया गया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Vijaysinh Chandubha Jadeja v. State of Gujarat, (2011) 1 SCC 609
  • State of Punjab v. Baldev Singh, (1999) 6 SCC 172
  • Karnail Singh v. State of Haryana, (2009) 8 SCC 539
  • Jitendra v. State of M.P., AIR 2003 SC 4236
  • Noor Aga v. State of Punjab, 2008 AIR SCW 5964
  • Vijay Jain v. State of M.P., (2013) 14 SCC 527
  • Mohinder Singh v. State of Punjab, AIR 2018 SC 3798
  • State of Rajasthan v. Sahi Ram, AIR 2019 SC 4723

मामले का शीर्षक

Barun Kumar Verma @ Prince Kumar Verma v. The State of Bihar

केस नंबर

CRIMINAL APPEAL (SJ) No.1085 of 2016

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 151

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री आदित्य कुमार त्रिवेदी, न्यायाधीश

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री रवि रंजन, अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री बिनोद बिहारी सिंह, अपर लोक अभियोजक, राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MjQjMTA4NSMyMDE2IzEjTg==-4aXGwAHJGms=

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Aditya Kumar

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