निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में एक ट्रांसपोर्टर ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) द्वारा उसकी गाड़ियों को ब्लैकलिस्ट करने और ₹17 लाख का जुर्माना लगाने के आदेश को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने ट्रांसपोर्टर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए IOCL का आदेश रद्द कर दिया।
मामले की शुरुआत 2014 में हुई जब ट्रांसपोर्टर को IOCL के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन का ठेका मिला। अनुबंध की अवधि दो साल थी जिसे बाद में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया। लेकिन 2016 में IOCL ने शिकायत की कि ट्रांसपोर्टर की चार टैंक ट्रक गाड़ियाँ निर्धारित जगहों पर माल नहीं पहुँचा पाईं। इस पर ट्रांसपोर्टर ने जाँच की और पाया कि ड्राइवरों ने गड़बड़ी की थी। ट्रांसपोर्टर ने संबंधित ड्राइवरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और IOCL को पूरा नुकसान भरपाई कर दी।
इसके बावजूद IOCL ने ट्रांसपोर्टर की 11 गाड़ियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया और ₹17 लाख का जुर्माना भी लगाया। IOCL ने कहा कि चार अलग-अलग घटनाएं चार बार की गलती हैं और अनुशासनात्मक गाइडलाइन के अनुसार प्रत्येक पर अलग पेनाल्टी लगेगी।
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि यह तरीका गलत है। जब तक किसी मामले में ट्रांसपोर्टर की संलिप्तता (complicity) स्पष्ट रूप से साबित नहीं होती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती। सिर्फ ड्राइवरों की गलती की वजह से पूरी कंपनी को ब्लैकलिस्ट करना न्यायसंगत नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया अनुबंध की अवधि के दौरान ही की जा सकती थी, जो कि इस मामले में समाप्त हो चुकी थी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि सरकारी कंपनियाँ अनुशासनात्मक कार्यवाही करते समय नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करें। बिना स्पष्ट जाँच और ट्रांसपोर्टर की संलिप्तता साबित किए, कठोर दंड देना न केवल अनुचित है बल्कि व्यापार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि वेंडरों और ठेकेदारों को मनमानी से परेशान नहीं किया जा सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ट्रांसपोर्टर ड्राइवरों की गलती के लिए पूरी तरह जिम्मेदार था?
- कोर्ट ने कहा कि हानि की भरपाई की जा सकती है, लेकिन ब्लैकलिस्टिंग तभी जब संलिप्तता साबित हो।
- क्या IOCL ने ब्लैकलिस्टिंग के लिए सही प्रक्रिया अपनाई?
- नहीं, कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया में गंभीर खामी थी और गाइडलाइन को गलत समझा गया।
- क्या अनुबंध की समाप्ति के बाद ब्लैकलिस्टिंग वैध है?
- नहीं, ब्लैकलिस्टिंग केवल अनुबंध की वैधता के दौरान ही की जा सकती थी।
- क्या चार गाड़ियों की गलती चार अलग-अलग घटनाएं मानी जा सकती हैं?
- नहीं, कोर्ट ने कहा कि चारों को मिलाकर एक ही ब्लैकलिस्टिंग माना जाना चाहिए था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Deepak Kumar v. State of Bihar, 2019 (2) BLJ 479
- Piyush Kumar v. State of Bihar, CWJC No. 12554 of 2019
- Bombay Burmah Trading Corporation v. Mirza Mahomed, 4 Cal 116 (PC)
- Ishwar Chunder v. Satis Chunder, 30 Cal 207
- Barwick v. English Joint-Stock Bank, (1867) LR 2 Exch 259
- McLaren Morrison v. Verschoyle, 6 CWN 429
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Kulja Industries Ltd. v. Chief Gen. Manager, BSNL, AIR 2014 SC 9
- Erusian Equipment & Chemical Ltd. v. State of West Bengal, (1975) 1 SCC 70
- Municipal Council Neemuch v. Mahadeo Real Estate, 2019 SCC Online SC 1215
- Ravi Oil Carriers v. Union of India, MANU/PH/0358/2015
- Morris v. CW Martin & Sons Ltd., (1965) 2 All ER 725
- United Africa Co. Ltd. v. Saka Owoade, (1957) 3 All ER 216
मामले का शीर्षक
M/s Ganpati Roadways v. Indian Oil Corporation & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 12695 of 2017
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 165
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री गौतम कुमार केजरीवाल — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अंकित कटियार — प्रतिवादी की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI2OTUjMjAxNyMxI04=-jTcPvxG–am1–Qek=
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