निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक निजी फार्मेसी कॉलेज की अपील खारिज करते हुए, एक क्लर्क को बकाया वेतन देने के लेबर कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। यह फैसला उन सभी गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है जो निजी शैक्षणिक संस्थानों में काम करते हैं और समय पर वेतन नहीं मिलने से परेशान रहते हैं।
मामले की शुरुआत तब हुई जब एक क्लर्क, जो 1980 से फार्मेसी कॉलेज में नियुक्त था, ने इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, 1947 की धारा 33(C)(2) के तहत लेबर कोर्ट में याचिका दायर की। उसने जून 1990 से जनवरी 2003 तक विभिन्न समयों में न दिए गए वेतन की मांग की, जो कुल मिलाकर ₹2,00,755.10 था। कॉलेज प्रशासन द्वारा बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद वेतन नहीं मिला।
लेबर कोर्ट ने जब देखा कि कॉलेज बार-बार नोटिस के बावजूद कार्यवाही में भाग नहीं ले रहा है, तो कई अवसर देने के बाद एकतरफा (ex-parte) कार्यवाही कर फैसला दिया। क्लर्क ने कोर्ट के सामने वेतन चार्ट, उपस्थिति रजिस्टर और अन्य दस्तावेज पेश किए जिससे उसने साबित किया कि वास्तव में वेतन बकाया था।
कॉलेज ने इस फैसले को पहले एक रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी, लेकिन वह बिना सुनवाई के खारिज हो गई। अंततः कॉलेज ने लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) दायर की और दलील दी कि वह इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट की परिभाषा के अनुसार “industry” नहीं है और क्लर्क “workman” नहीं माना जा सकता। लेकिन हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले Raj Kumar v. Director of Education (2016) 6 SCC 541 पर भरोसा करते हुए स्पष्ट कहा कि शैक्षणिक संस्थान “industry” की श्रेणी में आते हैं और गैर-शिक्षण कर्मचारी “workman” की परिभाषा में आते हैं।
हाई कोर्ट ने पाया कि क्लर्क ने सभी सबूत पेश किए जबकि कॉलेज ने जानबूझकर कार्यवाही में भाग नहीं लिया। इसलिए लेबर कोर्ट का फैसला सही माना गया और अपील खारिज कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार और देशभर के निजी शिक्षण संस्थानों में काम करने वाले गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए मिसाल है। यह दिखाता है कि यदि किसी कर्मचारी का वेतन बकाया है, तो वह कानून के तहत उसका दावा कर सकता है, भले ही संस्था कितनी भी बड़ी या प्रतिष्ठित क्यों न हो।
सरकार के लिए भी यह एक संकेत है कि निजी संस्थानों की निगरानी और श्रम कानूनों का पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है, खासकर उन संस्थानों में जो व्यावसायिक गतिविधियों से आय प्राप्त कर रहे हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या निजी शिक्षण संस्थान “industry” की परिभाषा में आते हैं?
- हां, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आते हैं।
- क्या क्लर्क जैसे कर्मचारी “workman” माने जाते हैं?
- हां, केवल शिक्षकों को इससे बाहर रखा गया है।
- क्या लेबर कोर्ट द्वारा की गई एकतरफा सुनवाई उचित थी?
- हां, कॉलेज को कई अवसर दिए गए थे लेकिन वह उपस्थित नहीं हुआ।
- क्या धारा 10 के तहत रेफरेंस के बिना धारा 33(C)(2) के तहत कार्यवाही वैध थी?
- हां, क्योंकि वेतन का अधिकार साबित हो चुका था और कोई विवाद नहीं था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kishore Kumar Ambashtha v. State of Bihar – 2016 (4) PLJR 929
- M/s Arun Chemicals Industries v. The Certificate Officer – 2009 (1) PLJR 682
- Prem Kumar Singh v. State of Bihar – 2009 (3) PLJR 131
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Raj Kumar v. Director of Education – (2016) 6 SCC 541
मामले का शीर्षक
Bihar College of Pharmacy v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
LPA No. 643 of 2017 in CWJC No. 15055 of 2012
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 181
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अरुण कुमार — अपीलकर्ता की ओर से
श्री अजय कुमार रस्तोगी (AAG-10) — प्रतिवादीगण की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM2NDMjMjAxNyMxI04=-BWSsCdvXIkw=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।