आपराधिक बरी होने के बाद भी सेवा में बहाली नहीं — पटना हाई कोर्ट का फैसला

आपराधिक बरी होने के बाद भी सेवा में बहाली नहीं — पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि आपराधिक मामले में बरी हो जाने से किसी सरकारी कर्मचारी की पूर्व की विभागीय बर्खास्तगी अपने आप समाप्त नहीं हो जाती। यह फैसला एक बर्खास्त सिपाही की याचिका पर सुनाया गया, जिसमें उसने बहाली की मांग की थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए विभागीय कार्रवाई को वैध ठहराया।

यह मामला 1998 के एक नक्सली हमले से जुड़ा है जिसमें गया जिले के एक पुलिस पिकेट पर हमला कर नक्सलियों ने 16 राइफल और 640 कारतूस लूट लिए थे और दो सिपाहियों की हत्या कर दी थी। घटना के समय याचिकाकर्ता (सिपाही) ड्यूटी पर नहीं था, जिससे उसे बिना अनुमति के पोस्ट छोड़ने के आरोप में विभागीय कार्रवाई का सामना करना पड़ा।

याचिकाकर्ता ने यह सफाई दी कि उसकी पत्नी की गंभीर बीमारी के कारण उसे 16 सितंबर 1998 को पोस्ट छोड़नी पड़ी और वह 18 सितंबर को ड्यूटी पर वापस लौटा। विभागीय जांच में आरोप प्रमाणित पाए गए और गया के तत्कालीन एसपी ने उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। बाद में डिप्टी आईजी ने भी अपील खारिज कर दी।

2005 में याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट में CWJC No. 15687/2005 दायर की थी, जिसे कोर्ट ने 2012 में खारिज कर दिया। इस बीच आपराधिक मुकदमा भी चला, जिसमें याचिकाकर्ता सहित सभी आरोपी 2019 में बरी हो गए।

बरी होने के आधार पर याचिकाकर्ता ने फिर से CWJC No. 19188/2019 दायर कर विभागीय बर्खास्तगी पर पुनर्विचार की मांग की। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई और आपराधिक केस दो अलग प्रक्रियाएं हैं। विभागीय जांच सेवा नियमों और आंतरिक साक्ष्यों के आधार पर होती है, जबकि आपराधिक मुकदमा न्यायालयीय साक्ष्यों पर आधारित होता है। जब एक बार कोर्ट ने पहले ही 2012 में बर्खास्तगी को वैध माना है, तो अब दोबारा उस पर विचार करने का कोई आधार नहीं है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला पुलिस और अन्य वर्दीधारी सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह स्पष्ट करता है कि:

  • आपराधिक मुकदमे में बरी हो जाना यह साबित नहीं करता कि विभागीय अपराध नहीं हुआ है।
  • विभागीय कार्रवाई सेवा नियमों और आंतरिक अनुशासन पर आधारित होती है, जो आपराधिक अदालतों की प्रक्रिया से स्वतंत्र है।
  • एक बार जब विभागीय कार्रवाई को कोर्ट द्वारा सही ठहरा दिया जाता है, तो आपराधिक बरी होने के आधार पर उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता।

सरकारी विभागों के लिए यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि आंतरिक अनुशासनात्मक कार्रवाई स्वतंत्र रूप से मान्य है और उसके लिए आपराधिक मुकदमों के फैसलों की प्रतीक्षा करना आवश्यक नहीं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या विभागीय कार्रवाई के बाद आपराधिक बरी होने पर कर्मचारी की बहाली संभव है?
    • नहीं, विभागीय कार्रवाई पर आपराधिक मुकदमे का कोई प्रभाव नहीं होता।
  • क्या पहले खारिज हो चुकी याचिका के बाद फिर से वही मुद्दा उठाया जा सकता है?
    • नहीं, 2012 में फैसला अंतिम था।
  • क्या विभागीय जांच और आपराधिक ट्रायल समान हैं?
    • नहीं, दोनों की प्रक्रिया और साक्ष्य अलग होते हैं।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

( CWJC No. 15687/2005 का उल्लेख किया गया है)

मामले का शीर्षक

Hari Yadav v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 19188 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 184

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

श्री सुनील कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री धुवेन्द्र कुमार (A.C. to GP-5) — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTkxODgjMjAxOSMxI04=-Mkk2Y0J2e2Y=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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