पटना हाई कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल की बर्खास्तगी को किया रद्द: विभागीय जांच में न्यायसंगत प्रक्रिया का उल्लंघन

पटना हाई कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल की बर्खास्तगी को किया रद्द: विभागीय जांच में न्यायसंगत प्रक्रिया का उल्लंघन

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक कांस्टेबल की सेवा से बर्खास्तगी को रद्द कर दिया है क्योंकि विभागीय जांच प्रक्रिया में एक गंभीर तकनीकी खामी पाई गई। यह कांस्टेबल नालंदा जिले के हरनौत थाना अंतर्गत चेरो आउट पोस्ट पर पदस्थापित था। आरोप था कि वह 7 फरवरी 2019 को ड्यूटी के दौरान शराब के नशे में था और उपद्रव कर रहा था।

घटना के आधार पर बिहार उत्पाद एवं मद्य निषेध अधिनियम, 2016 के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया और साथ ही विभागीय कार्रवाई भी शुरू हुई। जांच अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, शराब सेवन का आरोप सही पाया गया। इसमें ब्रीथ एनालाइजर रिपोर्ट और तीन गवाहों के बयान शामिल थे। इसके आधार पर 12 अप्रैल 2019 को कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में अपीलीय प्राधिकारी और पुलिस महानिरीक्षक ने भी यह निर्णय बरकरार रखा।

कांस्टेबल ने इस फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। वकील ने दो तर्क दिए—पहला यह कि ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट का नतीजा निर्णायक नहीं है क्योंकि कांस्टेबल ने होम्योपैथिक दवा ली थी। दूसरा, यह कि जांच अधिकारी ने अनुचित तरीके से खुद आरोप सिद्ध करने की भूमिका निभाई जबकि विभाग की ओर से नियुक्त प्रेजेंटिंग ऑफिसर जांच में उपस्थित ही नहीं था।

राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि विभागीय जांच में आरोपों को साबित करने का स्तर आपराधिक मुकदमे जितना कठोर नहीं होता और “संभावनाओं के आधार पर” आरोप सिद्ध हो सकता है।

हालांकि, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत हर विभागीय जांच में अनिवार्य हैं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों जैसे प्रकाश कुमार टंडन बनाम भारत सरकार और एम.वी. बिजलानी बनाम भारत सरकार का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जांच अधिकारी एक न्यायिक अधिकारी के समान होता है और उसे पूरी तरह निष्पक्ष रहना चाहिए।

कोर्ट ने यह पाया कि विभागीय जांच में प्रेजेंटिंग ऑफिसर की गैर-मौजूदगी से पूरी प्रक्रिया अनुचित हो गई और इससे जांच रिपोर्ट की वैधता पर असर पड़ा। जांच अधिकारी ने स्वयं अभियोजन की भूमिका निभाई जो स्वीकार्य नहीं है।

अतः कोर्ट ने कांस्टेबल की बर्खास्तगी और अन्य संबंधित आदेशों को रद्द करते हुए मामले को पुनः विभाग के पास जांच के लिए भेज दिया। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, कांस्टेबल को निलंबित रखा जा सकता है। बकाया वेतन का निर्णय जांच के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ की गई विभागीय कार्रवाई में भी उचित प्रक्रिया और निष्पक्षता आवश्यक है। यह फैसले सरकारी विभागों को यह सिखाता है कि केवल आरोप लगाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि जांच प्रक्रिया में सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन भी आवश्यक है।

यह आम जनता और सरकारी कर्मियों दोनों के लिए यह भरोसा देता है कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा और अदालतें निष्पक्ष सुनवाई के लिए तत्पर हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या विभागीय जांच निष्पक्ष तरीके से की गई?
    • निर्णय: नहीं। प्रेजेंटिंग ऑफिसर की अनुपस्थिति से जांच प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण पाई गई।
  • क्या कांस्टेबल की बर्खास्तगी उचित थी?
    • निर्णय: नहीं। बर्खास्तगी को रद्द किया गया और मामले को पुनः जांच के लिए भेजा गया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. Prakash Kumar Tandon, AIR 2009 SC 1375
  • M.V. Bijlani v. Union of India, (2006) 5 SCC 88
  • State of Uttar Pradesh v. Saroj Kumar Sinha (संदर्भित)

मामले का शीर्षक

Lalan Kumar Sharma v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 17585 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 185

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री प्रभाकर सिंह — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री अजय कुमार, एसी टू जीपी-4 — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTc1ODUjMjAxOSMxI04=-JTmQq3bQ–am1–VM=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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